दिल्ली में लचर जांच और कमजोर सजा तंत्र ने बढ़ाया नकली दवा का कारोबार, बन चुका है संगठित उद्योग
दिल्ली में नकली दवाओं का कारोबार बढ़ रहा है, जिसका कारण कमजोर जांच और सजा का लचर तंत्र है। यह अब संगठित उद्योग बन चुका है। जांच प्रक्रिया में खामियां और अपराधियों को सख्त सजा न मिलने से उनका हौसला बढ़ रहा है। नकली दवाओं के सेवन से लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ रहा है।
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अनूप कुमार सिंह, नई दिल्ली। दिल्ली देश का सबसे बड़ा दवा व्यापारिक केंद्र है। इसीलिए यह पांच हजार करोड़ के वार्षिक दवा कारोबार के साथ स्वास्थ्य सेवा का सिरमौर है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) जैसे शीर्ष चिकित्सालयों के कारण दिल्ली में प्रतिदिन देशभर से हजारों मरीज उत्कृष्ट चिकित्सा और गुणवत्तापूर्ण दवाओं की उम्मीद से यहां आते हैं लेकिन नकली और अधोमानक दवाओं का बढ़ता कारोबार न केवल मरीजों के भरोसे को तोड़ रहा है, बल्कि दिल्ली के योग्य चिकित्सकों के मनोबल पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है, मेहनत नष्ट कर रहा है।
सीमित दवा जांच संसाधन और कम सजा दर इस संकट को गहरा रहे हैं। इसी का लाभ उठाकर धंधेबाज कैंसर, किडनी, लीवर और हृदय संबंधी गंभीर रोगों की महंगी दवा की नकल बना यहां खपा रहे हैं। उनमें सरकारी कार्रवाई का कोई भय ही नहीं रह गया है, क्योंकि दिल्ली में सजा दर 10 प्रतिशत से भी कम है। यानी 90 प्रतिशत आरोपित बच निकलते हैं। जबकि राष्ट्रीय स्तर पर सजा की दर 22 प्रतिश्त है। यही वजह है कि नकली दवा का यह धंधा धीरे-धीरे कर दिल्ली में संगठित कारोबार और चांदनी चौक का भागीरथ पैलेस इसका गढ़ बन चुका है।
औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के तहत राज्य औषधि नियंत्रण विभागों से प्राप्त डेटा पर आधारित केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) की नौ अक्टूबर 2025 को जारी दैनिक डिस्पैच रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली में हाल में दवाओं के 150 में से 25 नमूने मानकों पर खरे नहीं उतर पाए।
इनमें ब्लड प्रेशर से जुड़ीं और एंटीबायोटिक दवाएं शामिल हैं। नकली दवाओं के पांच मामले सामने आए, जिनमें से दो दिल्ली के बाजार (भागीरथ पैलेस क्षेत्र) से जुड़े थे। रिपोर्ट का उद्देश्य बाजार में दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करना और उल्लंघनों पर त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करना है। पर, कमजोर साक्ष्य और निगरानी तंत्र, जांच और सजा मिलने में देरी के कारण नकली दवाओं पर त्वरित कार्रवाई संभव नहीं।
रिपोर्ट सजा दर बढ़ाने को त्वरित जांच को आवश्यक बताती है जबकि यहां जांच रिपोर्ट आने में 30 से 60 दिन का समय लगता है। रिपोर्ट में दिल्ली में नकली दवा जांच संसाधनों की कमी का भी स्पष्ट उल्लेख है। यह भी कहा गया कि दिल्ली में दवा जांच के लिए कोई स्वतंत्र सीडीटीएल (सेंट्रल ड्रग्स टेस्टिंग लैबोरेटरी) नहीं है।
इस कारण राष्ट्रीय राजधानी की चंडीगढ़ आरडीटीएल (रीजनल ड्रग्स टेस्टिंग लैबोरेटरी) पर निर्भरता बनी हुई है, जिसकी दैनिक दवा जांच क्षमता मात्र 20 सैंपल है। ऐसे में दिल्ली में नकली दवाओं की धर-पकड़, जांच और सजा को लेकर क्या होता होगा, सहज अनुमान लगाया जा सकता है। हालांकि दिल्ली सरकार की तथा निजी लैब से सहायता मिल रही है पर यह दिल्ली जैसे महानगर जहां नकली दवाओं का इतना बड़ा कारोबार है, के लिए यह पर्याप्त नहीं।
यह स्थिति नकली दवा के आरोपितों को समय से सजा दिलाने में बड़ी बाधा है। राजधानी में 2,000 कुल नमूनों में 1,183 मानक से कम और 400 नकली पाए गए। दिल्ली में 2022 से 2025 के बीच 18 करोड़ से अधिक की नकली दवा पकड़ी गई है। 43 आरोपित गिरफ्तार भी किए गए पर, इनमें से एक को भी अब तक सजा नहीं हुई।
प्रमुख कार्रवाई
तिथि | दवा मूल्य (रुपये में) | आरोपित एफआईआर | स्थिति |
मई 2025 | 5 लाख | 2 59/2025 | आरोपपत्र दाखिल |
अप्रैल 2025 | 2.5 लाख | 1 41/2025 | विचाराधीन |
दिसंबर 2024 | 1.10 करोड़ | 3 312/2024 | आरोपपत्र दाखिल |
मार्च 2024 | 4 करोड़ | 4 76/2024 | साक्ष्य चरण |
अप्रैल 2023 | - | 2 128/2023 | अभियोजन लंबित |
दिसंबर 2022 | 50 लाख | 2 255/2022 | सुनवाई जारी |
नवंबर 2022 | 8 करोड़ | 3 243/2022 | विचाराधीन |
विशेषज्ञों की सलाह : त्वरित जांच आवश्यक
दिल्ली औषधि नियंत्रण विभाग के एक अधिकारी ने चेताया, ‘दिल्ली में सीडीटीएल (सेंट्रल ड्रग्स टेस्टिंग लैबोरेटरी) न होना मरीजों के लिए खतरा है। त्वरित वैज्ञानिक रिपोर्ट से ही अभियोजन मजबूत होगा। जब तक ऐसा नहीं होगा, धंधेबाज कड़ी सजा से बचते रहेंगे।’ उन्होंने रिस्क-बेस्ड निरीक्षण और क्यूआर कोड जैसी डिजिटल तकनीक की सलाह भी दी।
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