कितने तरह के होते हैं 5G बैंड? जानिए इसका इस्तेमाल?
5G नेटवर्क के लिए भारत में तीन तरह के फ्रिक्वेंसी बैंड लो-बैंड 5G हाई बैंड-5G और मिड-बैंड 5G को पेश किया जा सकता है। इन बैंड्स का क्या है इस्तेमाल? आइए जानते हैं इनके बारे में पूरी डीटेल..

नई दिल्ली, टेक डेस्क। भारत में जल्द 5G नेटवर्क को रोलआउट किया जा सकता है। केंद्र सरकार की तरफ से 5G स्पेक्ट्रम आवंटन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। टेलिकॉम कंपनियों ने नीलामी प्रक्रिया में शामिल होने के लिए आवेदन कर दिया है। ऐसे में साल के अंत तक 5G नेटवर्क को भारत में कॉमर्शियल इस्तेमाल के लिए रोलआउट किया जा सकता है। आइए जानते हैं कि आखिर कितने तरह के 5G बैंड्स होते हैं? साथ ही इसका क्या इस्तेमाल है?
लो-बैंड 5G
लो-बैंड 5G 600-850 MHz फ्रिक्वेंसी के बीच काम करता है। इससे 50-250 Mbps के बीच स्पीड हासिल की जा सकती है। लो-बैंड 5G मौजूदा 4G नेटवर्क से थोड़ा फास्ट होगा। ऐसे में 4G नेटवर्क को 5G में अपग्रेड किया जा सकेगा। ऐसे में नेटवर्क प्रोवाइडर कंपनियां घनी आबादी में लो-बैंड 5G टावर नहीं लगा रहे हैं। टेलिकॉम कंपनियां लिमिटेड मिड-बैंड टावर के साथ शुरुआत कर सकती हैं। ऐसे में 5G डिवाइस के लिए लो-बैंड 5G नेटवर्क से कनेक्ट होना और 4G/LTE के समान गति प्राप्त करना संभव है।
मिड-बैंड 5जी
मिड-बैंड 5G फ्रिक्वेंसी 2.5-3.7 गीगाहर्ट्ज़ के बीच काम करती है। इस फ्रिक्वेंसी बैंड से 100-900 mbps की स्पीड हासिल की जा सकती है। यह भारत में शायद सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला 5G बैंड होगा। इसे शहरों की घनी आबादी और ग्रामीण इलाकों में बेहतर नेटवर्क कवरेज के लिए लगाया जा सकता है।
हाई-बैंड 5G
हाई फ्रिक्वेंसी 5G बैंड 25-39 गीगाहर्ट्ज के बीच काम करता है। इसे "मिलीमीटर वेव " स्पेक्ट्रम के नाम से जाना जाता है। इससे 3 Gbps तक की स्पीड हासिल की जा सकती है। लेकिन इस नेटवर्क का दायरा काफी कम होता है। साथ ही ऊंची बिल्डिंग समेत कई तरह के अवरोध की वजह से नेटवर्क बाधित हो जाते हैं। ऐसे में बेहतर कवरजे के लिए एक सीमित दायरे में कई सारे नेटवर्क लगाए जाते हैं, जिससे mm-बैंड 5G के लिए ज्यादा चार्ज वसूला जाता है।
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