प्राइवेसी में दखल देती टेक्नोलॉजी! कैसे सर्विलांस और ट्रैंकिंग से हो रहा भारी नुकसान, जानिए यहां
WhatsApp की एन्क्रिप्टेड चैट की आड़ में झूठी ख़बरें साम्प्रदायिकता और अन्य गैर-कानूनी सामग्री फैलाई जाती हैं। इनको पकड़ने के लिए सरकार ने सोशल मीडिया के लिए कानून बनाया है। इस कानून के तहत WhatsApp को सरकार को किसी भी गैर-कानूनी सामग्री फ़ैलाने वाले का कच्चा-चिटठा देना होगा।

नई दिल्ली, सौरभ वर्मा। प्राइवेसी एक मौलिक अधिकार तो है, किन्तु उच्चतम न्यायालय के अनुसार इस अधिकार पर राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे करोणों के चलते प्रतिबन्ध लगाए जा सकते है। हर सरकारी सर्विलांस आर्डर को पुत्तास्वामी निर्णय मे दिए गए 4 मापदण्डों पे तोला जाता है।
- सर्विलांस आदेश किसी कानून के तहत पारित होना चाहिए।
- आदेश से किसी वैध राज्य के उद्देश्य की पूर्ती होनी चाहिए।
- आदेश पारित करना आवश्यक हो और कोई अन्य विकल्प नहीं होना चाहिए।
- आदेश के तहत मौलिक अधिकारों पर प्रतिबन्ध, संकट से खतरे के अनुसार ही होने चाहिए।
डायलॉग फ़ाउंडर के क़ाज़िम रिज़वी के मुताबिक ‘कानूनन सर्विलांस’ और ‘प्राइवेसी पर अनुचित-प्रतिबन्ध के बीच मे धागे भर का फरक है। पुत्तास्वामी का ये तराज़ू उसी धागे के समान है। धागे के इंगे कानूनन सर्विलांस और उंगे प्राइवेसी का उलंघन। संविधानिक परम्पराओं से लिप्त इस सकरे से धागे पे चलती है हमारी न्याय व्यवस्था। पुत्तास्वामी के किसी भी एक स्तम्भ के उलंघन से कोई भी सर्विलांस आदेश गैर-कानूनी घोषित कर प्राइवेसी पर अनुचित प्रतिबन्ध क़रार दिया जाता है।
नमूने के तौर पे अपनी व्हाट्सप्प की चैट ही ले लीजिये। अब बहुत से लोग व्हाट्सप्प की एन्क्रिप्टेड चैट की आड़ में झूठी ख़बरें, साम्प्रदायिकता, और अन्य गैर-कानूनी सामग्री फैलाते हैं। इन सभी को पकड़ने के लिए सरकार ने सोशल मीडिया के लिए कानून बनाया है। इस कानून के तहत, व्हाट्सप्प को सरकार के कहने पर किसी भी गैर-कानूनी सामग्री फ़ैलाने वाले का कच्चा-चिटठा देना होगा। इसके लिए व्हाट्सप्प को हर एक मैसेज पे नज़र रखनी पड़ेगी। अब क्या चंद चोर-उच्चकों को पकड़ने के लिए पूरे देश की प्राइवेसी को खतरे में डालना सही होगा? वैसे और भी रास्ते है, जहा बिना मैसेज पे निगरानी करें पुलिस के मदद की जा सकती है । व्हाट्सप्प जैसी कंपनियां पुलिस की मांग पे उपभोगता की अन्य जानकारी, नाकि निजी मैसेज, जैसे प्रोफाइल फोटो, स्टेटस, आखरी लॉगिन का समय वगेरा देती है जिससे की उच्चक्कों को पकड़ने मे सहायता मिलती है। दोनो ही रास्ते सर्विलांस कहलाते है। पहला रास्ता आसान है मगर सभी की प्राइवेसी खतरे मे दाल देता है, दूसरा रास्ता कठिन है किन्तु सबकी प्राइवेसी बनी रहती है। यही है वो धागे भर का फरक 'कानूनन सर्विलांस' मे और 'प्राइवेसी पर अनुचित प्रतिबन्ध' मे। फिलहाल इस मामले पे भारत के हाई कोर्ट मे जिरह चल रही है।
मुद्दे की बात इतनी है की सर्विलांस बहुत ही नाप-तोल के होना चाहिए। भारत को एक सर्विलांस कानून की सख्त आव्यशकता है जिसके तहत हर सर्विलांस आर्डर का न्यायिक निरीक्षण हो सके।
इंटिग्रेशन विज़ार्ड सलूशन के सीईओ एंड को-फ़ाउंडर कुणाल किसलय के मुताबिक निगरानी से एक डेटा तैयार करने और उसके विश्लेषण में मदद मिलती है। इससे किसी भी संभावित जोखिम से बचाव में मदद मिलती है। इसका इस्तेमाल किसी स्थान या स्थिति की निगरानी, ऑटोमेटेड एसओपी के जरिए सुचारु परिचालन सुनिश्चित करना और डिफॉल्टर्स की पहचान करने के लिए किया जा सकता है। प्रशासनिक कार्यों के लिए भी डेटा रिकॉर्ड किया जा सकता है। रिटेल, वेयरहाउस, हेल्थ और सेफ्टी जैसे अन्य सेक्टर्स की निगरानी से उनकी प्रोडक्टिविटी बढ़ाने में मदद मिल सकती है। सर्विलांस का मतलब किसी क्षेत्र की मॉनिटरिंग से जुड़ा है। यह किसी के व्यक्तिगत उद्देश्य या व्यक्ति से जुड़ा हुआ नहीं है।
दूसरी ओर, ट्रैकिंग किसी वस्तु या व्यक्ति को लक्ष्य करके की जाने वाली मॉनिटरिंग है। इसमें एक तरह के ट्रैकिंग आईडी का इस्तेमाल किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत सूचना या किसी वस्तु के विवरण को चिह्नित करने के लिए किया जा सकता है। यह स्वीकृति के आधार पर डेटा इकट्ठा करने और फिर उसके इस्तेमाल से जुड़ा प्रोसेस है। किसी भी ग्राहक के व्यवहार को समझने, खास सलाह देने और भविष्य के कारोबारी फैसलों को तय करने में इससे मदद मिलती है। डेटा को रिकॉर्ड किया जाता है और लंबी अवधि के लिए सेव करके रखा जाता है। ट्रैंकिंग का इस्तेमाल सबसे ज्यादा ई-कॉमर्स सेक्टर में किया जाता है। इसके अलावा डिलीवरी पर आधारित बिजनेस (उदाहरणः फूड डिलिवरी), मार्केटिंग और हेल्थ में इसका इस्तेमाल किया जाता है।
प्राइवेसी पर हमला तब होता है जब एकत्र डेटा को पार्टी की सहमति के बिना किसी और मकसद के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह की प्रकिया तब सुविधाजनक हो जाती है, जब डेटा को रीड करने और एकत्र करने की सहमति दे दी जाती है।
इन तीनों की बीच की रेखा काफी धुंधली हो जाती हैं क्योंकि उस पार्टी के पास डेटा का एक्सेस नहीं होता है, जिसके डेटा को कम्पाइल किया जाता है।
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