Year End 2022: रक्षा और अंतरिक्ष में तकनीकी प्रगति, कैसा रहा इस साल का सफर
इस साल इसरो और डीआरडीओ ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं। इसरो ने जहां कई सफल मिशन किए वहीं डीआरडीओ ने नई सुरक्षा प्रणाली और डिवाइस पर काम किया। आज हम आपको इसकी कुछ उपलब्धियों के बारे में बताने जा रहे हैं।

नई दिल्ली, ब्रह्मानंद मिश्र। साल 2022 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के नाम अनेक उपलब्धियां दर्ज हुईं। इसरो ने जहां कई उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण किया, तो वहीं डीआरडीओ ने उन्नत और अत्याधुनिक रक्षा उपकरणों को विकसित तथा परीक्षण करने में सफलता प्राप्त की...
गगनयान के क्रायोजेनिक इंजन का परीक्षण
साल की शुरुआत में इसरो ने प्रपल्सन काम्पलेक्स महेंद्रगिरि, तमिलनाडु में गगनयान कार्यक्रम के लिए क्रायोजेनिक इंजन की क्षमता का परीक्षण किया। इसमें इंजन का प्रदर्शन सभी मानकों पर खरा उतरा। हालांकि, इसे अभी चार और परीक्षणों को पास करना है।
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कामर्शियल मार्केट में इसरो का प्रवेश
अक्टूबर में इसरो ने जीएसएलवी मार्क3 से 36 उपग्रहों को लांच कर वाणिज्यिक सेवाओं की शुरुआत की। लो-अर्थ आर्बिट सेटेलाइट इस श्रेणी के अन्य उपग्रहों के साथ मिलकर दुनियाभर में हाइ-स्पीड, लो-लेटेंसी कनेक्टिविटी की सुविधा प्रदान करेंगे। आने वाले साल में इससे देश के दूर-दराज गांवों और इलाकों में कनेक्टिविटी बेहतर होगी।
मार्स आर्बिटर की यात्रा हुई समाप्त
मार्स आर्बिटर क्राफ्ट का ईंधन और बैटरी खत्म होने के साथ ही इसरो के विज्ञानियों ने अक्टूबर में भारत के पहले अंतरग्रहीय अभियान, मंगलयान की समाप्ति की घोषणा की। इसे नवंबर 2013 में पीएसएलवी-सी25 से लांच किया गया था। मार्स आर्बिटर में पांच पेलोड थे, जो सर्फेस जियोलाजी, मार्फोलाजी, वायुमंडलीय प्रक्रियाओं, सतह के तापमान आदि से संबंधित आंकड़ों को जुटा रहे थे।
इसने मंगल ग्रह की हजारों तस्वीरें ली हैं, जिसे मार्स एटलस में प्रकाशित किया गया है। निजी तौर पर निर्मित राकेट का सफल प्रक्षेपण निजी क्षेत्र द्वारा निर्मित राकेट विक्रम-एस का इसरो के श्रीहरिकोटा लांचपैड द्वारा सफल प्रक्षेपण किया गया। इसके साथ ही इसरो के एकाधिकार वाले अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्र की शुरुआत हो गई है। यह अंतरिक्ष में लगभग 89.5 किलोमीटर की ऊंचाई तक पहुंचा और प्रक्षेपण के पांच मिनट बाद बंगाल की खाड़ी में गिर गया। हैदराबाद के स्टार्टअप स्काइरूट की इस सफलता के बाद कई अन्य कंपनियां भी अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रवेश की तैयारी कर रही हैं।
डीआरडीओ की उपलब्धियां
आकाश-एनजी : नयी पीढ़ी की सतह से हवा में मार करने वाली इस मिसाइल का सफल परीक्षण किया गया। इसमें मल्टीफंक्शन रडार, कमांड, कंट्रोल एंड कम्युनिकेशन जैसी प्रणाली को शामिल किया गया है। यह हवा में किसी टारगेट को तीव्रता से मार गिराने में सक्षम है।
आकाश प्राइम मिसाइल : उन्नत संस्करण की इस मिसाइल का आइटीआर, चांदीपुर से सफल परीक्षण किया गया। सटीकता को बढ़ाने के लिए इसमें स्वदेशी निर्मित रेडियो फ्रीक्वेंसी सीकर को जोड़ा गया है।
शार्ट स्पैन ब्रिजिंग सिस्टम-10एम : सैनिकों की तेज आवाजाही को सुनिश्चित करने के लिए यह सिस्टम छत वाली सड़क तैयार करता है।
उन्नत चैफ टेक्नोलाजी : भारतीय वायुसेना के एयरक्राफ्ट को दुश्मन के रडार और मिसाइल के खतरों से बचाने के लिए डीआरडीओ द्वारा इस तकनीक को विकसित किया गया है। यह इलेक्ट्रानिक काउंटर मीजर टेक्नोलाजी है, जिसका दुनियाभर में नेवल शिप को दुश्मन के राडार से बचाने के लिए किया जाता है।
लांग रेंज बम : स्वदेश निर्मित लांग रेंज बम का एरियल प्लेटफार्म से डीआरडीओ और आइएएफ द्वारा परीक्षण किया गया। फाइटर एयरक्राफ्ट से इसे जमीन पर एक्यूरेसी के साथ लांच किया जा सकता है।
स्मार्ट एंटी-एयरफील्ड वीपन : डीआरडीओ और आइएएफ द्वारा स्मार्ट एंटी-एयरफील्ड वेपन का परीक्षण किया गया, इससे दुश्मन के रडार, बंकर, टैक्सी ट्रैक और रनवे आदि को निशाना बनाया जा सकता है। यह भार में हल्का, लेकिन इस श्रेणी के अन्य हथियारों के मुकाबले अधिक प्रभावी है।
सुपरसोनिक मिसाइल असिस्टेड टारपीडो सिस्टम : डीआरडीओ द्वारा विकसित यह अगली पीढ़ी का मिसाइल आधारित स्टैंडआफ टारपीडो डिलीवरी सिस्टम है। इसे एंटी-सबमरीन युद्ध क्षमताओं को बढ़ाने के लिए विकसित किया गया है। इससे नौसेना की क्षमता में वृद्धि होगी और रक्षा आत्मनिर्भरता बढ़ेगी।
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