ये है ऑनलाइन कंपनियों का डार्क पैटर्न, ऐसे करते हैं ग्राहकों को गुमराह; प्रोडक्ट खरीदने का बनाते हैं दबाव
हिडन फीस पहले से सेलेक्ट चेकबॉक्स और फर्जी काउंटडाउन टाइमर जैसे डार्क पैटर्न्स भारतीयों के ऑनलाइन शॉपिंग बुकिंग और ब्राउजिंग को प्रभावित कर रहे हैं। ये चालाक डिजाइन यूजर्स को अनजाने में फैसले लेने के लिए उकसाते हैं। सरकार अब इन पर सख्ती कर रही है। 28 मई को उपभोक्ता मंत्रालय ने ई-कॉमर्स कंपनियों को डार्क पैटर्न्स नियमों का पालन करने का निर्देश दिया।

टेक्नोलॉजी डेस्क, नई दिल्ली। हिडन फीस और पहले से सेलेक्ट कि हुए चेकबॉक्स से लेकर फर्जी काउंटडाउन टाइमर तक, ये तथाकथित डार्क पैटर्न्स एक इनविजिबल लेकिन शक्तिशाली ताकत बन गए हैं, जो भारतीयों के ऑनलाइन शॉपिंग, बुकिंग और ब्राउजिंग पर असर डालते हैं। ये चालाक डिजाइन टैक्टिक्स यूजर्स को ऐसे फैसले लेने के लिए उकसाते हैं, जो वे शायद नहीं लेना चाहते और अब सरकार इस पर सख्ती कर रही है।
28 मई को, उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने प्रमुख ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स के सीनियर प्रतिनिधियों के साथ एक हाई-लेवल मीटिंग की, जिसमें उन्हें डार्क पैटर्न्स नियमों का पालन करने, इंटरनल ऑडिट करने और ऑडिट रिजल्ट्स को पब्लिकली दिखाने का निर्देश दिया। उपभोक्ता मामलों के मंत्री प्रल्हाद जोशी ने कहा कि सरकार ने इस मुद्दे पर जांच के लिए एक जॉइंट वर्किंग ग्रुप बनाने का प्रस्ताव दिया है।
इस मीटिंग में Amazon, Flipkart, Swiggy, Zomato, Meesho, WhatsApp, Apple, Paytm, Ola, MakeMyTrip, Reliance Retail और अन्य कंपनियों के प्रतिनिधि शामिल हुए। ये भारत के कंज्यूमर प्रोटेक्शन फ्रेमवर्क के तहत चालाक डिजिटल डिजाइन को रोकने की सरकार की बढ़ती कोशिश का हिस्सा है।
डार्क पैटर्न्स क्या हैं?
डार्क पैटर्न्स यूजर इंटरफेस में छिपे डिजाइन एलिमेंट्स हैं, जो यूजर्स को ऐसे फैसले लेने के लिए प्रेरित करते हैं, जो वे पूरी जानकारी या इरादे के बिना नहीं लेते।
ये पैटर्न्स यूजर्स को सर्विसेज के लिए साइन अप करने, ज्यादा पैसे खर्च करने या पर्सनल डेटा देने के लिए प्रेरित करते हैं- अक्सर बिना साफ-साफ समझे। ये विजुअल मिडडायरेक्शन, उलझाने वाली भाषा या नॉन-ट्रांसपेरेंट सेटिंग्स पर निर्भर करते हैं, जो लोगों के जानकारी प्रोसेस करने और फैसले लेने के तरीके का फायदा उठाते हैं।
नवंबर 2023 में, उपभोक्ता मामलों के विभाग ने 13 प्रकार के डार्क पैटर्न्स को भारतीय कानून के तहत 'अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस' के रूप में परिभाषित किया था।
इनमें ड्रिप प्राइसिंग (जहां आखिरी चेकआउट स्टेप पर अतिरिक्त फीस दिखती है), फॉल्स अर्जेंसी (जैसे फर्जी काउंटडाउन टाइमर), बैट एंड स्विच (एक चीज का विज्ञापन लेकिन दूसरी देना), कंफर्म शेमिंग (यूजर्स को गिल्ट के जरिए सहमत कराना) और सब्सक्रिप्शन ट्रैप्स (जो सर्विस कैंसिल करना मुश्किल बनाते हैं) जैसे टैक्टिक्स शामिल हैं।
लिस्ट में दूसरे चालाक टैक्टिक्स जैसे फोर्स्ड एक्शन, इंटरफेस इंटरफेरेंस, डिसगाइज्ड ऐड्स, ट्रिक क्वेश्चन्स, SaaS बिलिंग, नैगिंग, बास्केट स्नीकिंग और रोग मैलवेयर जो वैलिड प्रॉम्प्ट्स की तरह दिखते हैं, भी शामिल हैं।
ये प्रैक्टिस यूजर की स्वतंत्रता को कमजोर करती हैं और डिजिटल सर्विसेज में भरोसा घटाती हैं, खासकर जब ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स रोजमर्रा की जिंदगी का अहम हिस्सा बन गए हैं।
भारत में डार्क पैटर्न्स कितने आम हैं?
Advertising Standards Council of India (ASCI) की 2024 की रिपोर्ट ने दिखाया कि डार्क पैटर्न्स भारतीय ऐप्स में कितने गहरे बसे हैं। रिपोर्ट में पाया गया कि भारत में सबसे ज्यादा डाउनलोड होने वाली 53 में से 52 ऐप्स ने कम से कम एक डिसेप्टिव डिजाइन का इस्तेमाल किया, जैसे छिपी हुई चार्जेस, पहले से चुने हुए कंसेंट बॉक्स, काउंटडाउन टाइमर या भटकाने वाले प्रॉम्प्ट्स।
ये टैक्टिक्स अलग-थलग या गलती से नहीं, बल्कि कई डिजिटल सर्विसेज की सिस्टमैटिक फीचर्स थे। सिटीजन एंगेजमेंट प्लेटफॉर्म LocalCircles की 18 महीने की व्यापक जांच ने भी यही रिजल्ट निकाला।
392 जिलों के 230,000 से ज्यादा ग्राहकों के इनपुट्स और 228 ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स की समीक्षा के आधार पर, सर्वे में पाया गया कि आधे से ज्यादा प्लेटफॉर्म्स ने फोर्स्ड एक्शन पैटर्न का इस्तेमाल किया, जहां यूजर्स को ऐप डाउनलोड करने या अनावश्यक पर्सनल जानकारी देने जैसे असंबंधित स्टेप्स लेने पड़े।
48 प्रतिशत प्लेटफॉर्म्स में ड्रिप प्राइसिंग देखी गई, इसके बाद बैट एंड स्विच, सब्सक्रिप्शन ट्रैप्स और इंटरफेस इंटरफेरेंस थे। सबसे ज्यादा प्रभावित सेक्टर्स में एडटेक, ट्रैवल, एयरलाइंस, ई-कॉमर्स, क्विक कॉमर्स, डिजिटल बैंकिंग, राइड हेलिंग और स्ट्रीमिंग सर्विसेज शामिल थे।
सरकार ने अब तक क्या किया?
भारत ने डार्क पैटर्न्स से निपटने के लिए जून 2023 में शुरुआत की, जब ASCI ने डिसेप्टिव ऐडवर्टाइजिंग और UI डिजाइन पर वॉलंटरी गाइडलाइन्स जारी कीं। नवंबर 2023 में, उपभोक्ता मामलों के विभाग ने गाइडलाइन्स जारी कीं, जिनमें 13 डार्क पैटर्न्स को कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट, 2019 के उल्लंघन के रूप में कानूनी तौर पर वर्गीकृत किया गया। सजा में 20 लाख रुपये तक का जुर्माना और छह महीने तक की जेल शामिल है।
अगस्त 2024 में, ASCI की रिपोर्ट ने इन प्रैक्टिसेस की व्यापकता का ठोस सबूत देकर इस मुद्दे को और गंभीरता दी। सरकार ने इसके बाद उपभोक्ताओं को सशक्त करने के लिए डिजिटल टूल्स की एक सीरीज लॉन्च की, जिसमें रिवैम्प्ड Jagriti App, Jago Grahak Jago App और Jagriti Dashboard शामिल हैं। ये प्लेटफॉर्म्स उपभोक्ताओं को डार्क पैटर्न्स पहचानने और शिकायत निवारण तक आसानी से पहुंचने में मदद करते हैं।
28 मई की मीटिंग केंद्र की अब तक की सबसे सख्त कार्रवाई थी। मंत्रालय के मुताबिक, स्टेकहोल्डर्स ने गाइडलाइन्स का पालन करने पर सहमति जताई। जोशी ने Ola, Uber, और Rapido जैसी राइड-हेलिंग ऐप्स पर 'एडवांस टिप' फीचर की हाल की शिकायतों को भी एड्रेस किया और कहा कि कंपनियों को सुधार के लिए कुछ समय दिया जाएगा।
'टिप सेवा के बाद प्रशंसा के तौर पर दी जाती है, न कि अधिकार के रूप में,' जोशी ने पहले X पर एक पोस्ट में कहा था।
ग्राहक कैसे अपनी सुरक्षा कर सकते हैं?
उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय द्वारा यूजर्स को Jagriti और Jago Grahak Jago ऐप्स का इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है ताकि डिसेप्टिव प्रैक्टिस की शिकायत करें और डिजिटल अधिकारों के बारे में जानें। ग्राहकों को चेकआउट पर बढ़ने वाली कीमतों, मना करने में मुश्किल बटन्स और ऑप्ट-आउट ऑप्शन्स छिपाने वाले फॉर्म्स जैसे आम चेतावनी संकेतों पर ध्यान देना चाहिए।
ये समझना कि हर डील या नोटिफिकेशन असली नहीं होता, यूजर्स को अनजाने कामों से बचने में मदद कर सकता है। Jagriti Dashboard जैसे टूल्स शिकायतों के नतीजों को ट्रैक करने और नॉन-कंप्लायंट प्लेटफॉर्म्स की निगरानी को आसान बनाते हैं।
LocalCircles ने मौजूदा गाइडलाइन्स के स्ट्रॉन्ग एन्फोर्समेंट की मांग की और कहा कि औपचारिक नियम लागू होने के 18 महीने बाद भी, डिसेप्टिव डिजाइन विभिन्न सेक्टर्स में गहरे बसे हुए हैं।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।