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    योग का अर्थ होता है-जोड़

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Tue, 30 Jun 2015 11:02 AM (IST)

    योग का अर्थ होता है-जोड़। भारत में योग विद्या प्राचीन काल से प्रचलन में है। अब प्रश्न उठता है कि योग तो गणित विज्ञान का शब्द है, यह अध्यात्म में किस अर्थ में प्रयुक्त होता है। यहां भी जोड़ने का ही शास्त्र है। आत्मा और परमात्मा को जोड़ने की विद्या

    योग का अर्थ होता है-जोड़

    योग का अर्थ होता है-जोड़। भारत में योग विद्या प्राचीन काल से प्रचलन में है। अब प्रश्न उठता है कि योग तो गणित विज्ञान का शब्द है, यह अध्यात्म में किस अर्थ में प्रयुक्त होता है। यहां भी जोड़ने का ही शास्त्र है। आत्मा और परमात्मा को जोड़ने की विद्या ही योग है। प्राणायाम के माध्यम से अपने प्राण को अनंत के महाप्राण से जोड़ना ही योग है। प्रकृति से हमारी सांस को एक लय मिली हुई है। उस लय के बिगड़ने से ही हम अस्वस्थ होते हैं।
    उसी के बिगड़ने से हमारे शरीर में विद्युत ऊर्जा और चुंबकीय ऊर्जा का जो प्रवाह हो रहा है उसमें गड़बड़ी आ जाती है। हमारे शरीर में ताकत, जोश और स्वास्थ्य इन्हीं ऊर्जाओं (जिसे अध्यात्म में प्राण ऊर्जा कहते हैं) से बनती है। योग विज्ञान में प्राण ऊर्जा को ब्रrा ऊर्जा से प्राणायाम के द्वारा जोड़ा जाता है, तब फिर से मनुष्य तन-मन से स्वस्थ हो जाता है। इसलिए योग का विज्ञान-जोड़ का विज्ञान है।
    योग शरीर पर प्रकृति से पड़ने वाले प्रभावों को भी नियंत्रित करता है। विज्ञान की भाषा में उस प्रभाव को आयन कहते हैं। पूरी पृथ्वी और हमारा शरीर ऋाणायन और धनायन से प्रभावित होता रहता हैं। ऋणायन की अधिकता शरीर को स्वस्थ कर देती है। इसलिए स्थान विशेष पर जाने से जहां ऋणायन वातावरण में अधिक घनीभूत है, वहां मनुष्य स्वस्थ एवं स्फूर्त हो जाता है। इसके विपरीत धनायन के प्रभाव से शरीर बीमार हो जाता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि पृथ्वी और शरीर ऋणायन से आवेशित हैं। योग शरीर पर ‘आयन’ के इसी नकारात्मक प्रभाव को नष्ट करता है। योग के द्वारा ही मन के नकारात्मक विचारों जैसे-निराशा, तनाव, शंका, ईष्र्या आदि का नाश होता है, क्योंकि योग द्वारा दिव्य प्राण ऊर्जा प्राप्त होती है।
    वर्तमान युग में पृथ्वी पर प्रदूषण बढ़ रहा है। इसलिए पृथ्वी पर धनायन का आवेश वातावरण में अधिक हो रहा है। फलत: बीमारियां बढ़ रही हैं। योग धनायन के दुष्प्रभावों को रोकने की निरोधक शक्ति पैदा करता है। वायु में विषैला तत्व रहने के कारण हमारी प्राण ऊर्जा विच्छिन्न होती है और हम बीमार पड़ते हैं। इसीलिए प्राणों को स्वस्थ रखने के लिए प्राणायाम का विज्ञान आवश्यक है। कठोपनिषद में भी कहा गया है कि इस संसार में जो कुछ भी है वह प्राण ही है। इसी के पोषण से हम जीवित हैं।

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