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    क्यों करते हैं हम प्रणाम, क्या होता है इसका प्रभाव

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    Updated: Mon, 15 Sep 2014 02:59 PM (IST)

    प्रणाम का सीधा संबंध प्रणत शब्द से है, जिसका अर्थ होता है विनीत होना, नम्र होना और किसी के सामने सिर झुकाना। प्राचीन काल से प्रणाम की परंपरा रही है। जब कोई व्यक्ति अपने से बड़ों के पास जाता है, तो वह प्रणाम करता है। हर व्यक्ति की कामनाएं अनंत होती हैं। कैसी कामना लेकर वह व्यक्ति अपने से बड़ों के पास गया है, यह उस व्यक्ति पर निर्भर

    प्रणाम का सीधा संबंध प्रणत शब्द से है, जिसका अर्थ होता है विनीत होना, नम्र होना और किसी के सामने सिर झुकाना। प्राचीन काल से प्रणाम की परंपरा रही है। जब कोई व्यक्ति अपने से बड़ों के पास जाता है, तो वह प्रणाम करता है।

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    हर व्यक्ति की कामनाएं अनंत होती हैं। कैसी कामना लेकर वह व्यक्ति अपने से बड़ों के पास गया है, यह उस व्यक्ति पर निर्भर करता है। प्रणत व्यक्ति अपने दोनों हाथों की अंजली अपने सीने से लगाकर बड़ों को प्रणाम इस तरह करता है कि वह अपने दोनों हाथ जोड़कर हाथों का पात्र बनाकर प्रणाम कर रहा है। प्रणाम के समय दोनों हाथ की अंजली सीने से सटी हुई होनी चाहिए।

    ऐसे ही प्रणाम करने की परंपरा रही है, लेकिन प्राचीन गुरुकुलों में दंडवत प्रणाम का विधान था जिसका अर्थ है बड़ों के पैर के आगे लेट जाना। इसका उद्देश्य यह था कि गुरु के पैरों के अंगूठे से जो ऊर्जा प्रवाह हो रहा है उसे अपने मस्तक पर धारण करना। इसी ऊर्जा के प्रभाव से शिष्य के जीवन में परिवर्तन होने लगता है। इसके अतिरिक्त हाथ उठाकर भी आशीर्वाद देने का विधान है। इस मुद्रा का भी वही प्रभाव होता है कि हाथ की उंगलियों से निकला ऊर्जा प्रवाह शिष्य के मस्तिष्क में प्रवेश करें।

    बहरहाल, आज के परिवेश में प्रणाम करने की जो परंपरा है, वह उचित प्रतीत नहीं होती। ऐसा इसलिए, क्योंकि प्रणाम करने वाला न कोई पात्र लेकर या कोई कामना लेकर अपने से बड़ों को प्रणाम करता है और न ही बड़े उन्हें समुचित रूप से आशीर्वाद देते हैं। दोनों तरफ से नकली कारोबार चलता रहता है। इसका परिणाम यह है कि प्रणाम करने वाले तमाम लोग जिस प्रकार इन दिनों प्रणाम करते हैं, उससे ऐसा लगता है कि वे एक नाटक कर रहे हैं। प्रणाम तो हृदय से निकलने वाली कामनाएं हैं, एक आमंत्रण है। केवल भक्त की आंखों को देखकर ही यह बताया जा सकता है कि प्रणाम असली है या नकली।

    हमारे यहां प्रणाम हृदय से किया जाता है और जब उस प्रणाम को आशीर्वाद मिलता है तो उसका प्रत्यक्ष फल भी मिलता है, लेकिन शर्त यह है कि प्रणाम कितनी सच्चाई से किया गया है। प्रणाम सीधी तरह से बड़ों के समक्ष आत्मनिवेदन है और आत्मनिवेदन कभी भी नकली नहीं होगा। जिन लोगों को अपने से बड़ों का आशीर्वाद चाहिए तो श्रद्धापूर्वक प्रणाम की मुद्रा में खड़ा होना चाहिए, तभी बड़ों के हृदय से निकला एक-एक शब्द उसके जीवन में परिवर्तन ला सकता है। 1