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    देवी अनसूया के पुत्र रूप में जब प्रकट हुए त्रिदेव, पढ़ें संपूर्ण कथा

    By Jagran NewsEdited By: Vaishnavi Dwivedi
    Updated: Mon, 01 Dec 2025 06:09 PM (IST)

    त्रिदेवों का प्रतिनिधित्व करने वाले भगवान दत्तात्रेय समत्व दृष्टि का प्रतीक हैं। इस बार उनकी जयंती 4 दिसंबर को मनाई जाएगी। आइए यहां उनसे जुड़ी कथा पर नजर डालते हैं।

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    समत्व दृष्टि के उपदेष्टा।

    आचार्य मिथिलेशनन्दिनीशरण (सिद्धपीठ श्रीहनुमन्निवास, अयोध्या)। ईश्वर के छठे अवतार भगवान दत्तात्रेय ने देवी अनसूया द्वारा मांगे हुए वरदान के अनुरूप उनकी कोख से महर्षि अत्रि के पुत्र के रूप में जन्म लिया। श्रीमद्भागवत महापुराण में कहा गया है कि ब्रह्मा के पुत्र महर्षि अत्रि भगवान को पुत्र रूप में पाना चाहते थे। भगवान द्वारा प्रदत्त होने के कारण उनके नाम में ‘दत्त’ तथा अत्रि के पुत्र होने से ‘आत्रेय’ कहलाए और उनका नाम ‘दत्तात्रेय’ प्रसिद्ध हुआ।

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    त्रिदेवों का प्रतिनिधित्व

    एक आख्यान के अनुसार, पतिव्रता देवी अनसूया की परीक्षा करने ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव जी उनके आश्रम पहुंचे। संन्यासी वेश में तीनों देवताओं ने अनसूया से भोजन हेतु याचना की। देवी ने जब भोजन के लिए आमंत्रित कर लिया, तब त्रिदेवों ने कहा कि हम पूर्णरूपेण निर्वस्त्र द्वारा प्रस्तुत भोजन ही ग्रहण कर सकते हैं। इस विचित्र व्रत से देवी अनसूया विचलित नहीं हुईं, अपितु अपने तपोबल से तीनों देवताओं को नवजात शिशु बनाकर उन्हें मातृवत दुग्धपान कराया। उनके असाधारण तप एवं पातिव्रत्य की निष्ठा से प्रसन्न देवों ने प्रकट होकर उनसे वर मांगने को कहा। देवी अनसूया ने कहा कि मैंने आपको पयपान कराया है, अतः आप मेरे पुत्र होकर जन्म लें। ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव ने संयुक्त रूप से देवी अनसूया के पुत्र रूप में जन्म लिया। त्रिदेवों का प्रतिनिधित्व करते हुए भगवान दत्तात्रेय त्रिमूर्त्ति अर्थात तीन मुख तथा छह भुजाओं से युक्त हैं।

    भगवान दत्तात्रेय की शिक्षा

    योग तथा तंत्र के महान उपदेष्टा के रूप में भी भगवान दत्तात्रेय पूजे जाते हैं। उनके द्वारा उपदिष्ट दत्तात्रेय वज्र कवच सहित अनेक विद्याओं का साधकों में समादर है। भक्तराज प्रह्लाद को उनके द्वारा किया 24 गुरुओं का उपदेश भारतीय बोध-परंपरा में अत्यंत प्रतिष्ठित है। अवधूत गीता के रूप में भगवान दत्तात्रेय की शिक्षा का अनुशीलन चिरकाल से हो रहा है। हैहयवंशीय राजा अर्जुन ने उन्हें प्रसन्न कर हजार भुजाएं व अजेयता प्राप्त की थी।

    भगवान कृष्ण के पूर्वज

    भगवान कृष्ण के पूर्वज महाराज यदु को भी दत्तात्रेय ने तत्वोपदेश किया। अवधूत संन्यासी के रूप में भगवान दत्तात्रेय के साथ गाय तथा श्वान के दर्शन होते हैं। वे संपूर्ण ब्रह्मांड में कहीं से भी शिक्षा लेने के अद्भुत सिद्धांत के प्रवर्तक हैं। कुत्ते और गाय में समत्व दृष्टि के प्रतीक वाले भगवान दत्तात्रेय नाथपंथ के भी आदि आचार्यों में पूजित हैं। योग तथा तंत्र का एक विशेष वर्ग भगवान दत्तात्रेय से ही प्रवर्तित माना जाता है। भगवान दत्तात्रेय प्रायः सर्वत्र किसी न किसी रूप में पूज्य हैं और उनकी शिक्षाएं सब जगह आदरणीय हैं।

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