Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    ध्यान-अभ्यास से बदलती है जीवन की दिशा, जरूर करें इनका पालन

    By Jagran NewsEdited By: Vaishnavi Dwivedi
    Updated: Mon, 01 Dec 2025 05:37 PM (IST)

    मन और बुद्धि से परे चले जाने की कला है ध्यान, जो हमारी दुखद भावनाओं से निजात दिलाता है। ध्यान के माध्यम से आत्मा से जुड़ जाना ही आध्यात्मिक उन्नति की अवस्था है।

    Hero Image

    आध्यात्मिक उन्नति की अवस्था।

    श्री श्री रवि शंकर (आर्ट आफ लिविंग के प्रणेता आध्यात्मिक गुरु)। हम सामान्यतः सुखद भावनाओं को छोड़ देते हैं और दुखद भावनाओं को थामे रहते हैं। संसार के 99 प्रतिशत लोग ऐसा ही करते हैं। लेकिन जब ध्यान के माध्यम से चेतना मुक्त और सुसंस्कृत हो जाती है, तब नकारात्मकता को पकड़े रहने की प्रवृत्ति का स्वतः ही अंत हो जाता है। हम वर्तमान में जीने लगते हैं और अतीत को भूल पाते हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    किसी भी संबंध में, चाहे लोग कितने भी अच्छे क्यों न हों, गलतफहमियां हो ही जाती हैं। एक छोटी-सी गलतफहमी भी हमारी भावनाओं को विकृत कर सकती है और नकारात्मकता ला सकती है। लेकिन यदि हम इन सबको छोड़ने की कला सीख लें और अपनी चेतना की हर पल आनंद लेने की क्षमता पर ध्यान केंद्रित करें, तो हम इससे सुरक्षित रहते हैं। यह सत्य हमारे सामने प्रकट होता है कि हर पल हमारे विकास में सहायक है। उच्चतर चेतना की अवस्थाओं को प्राप्त करने के लिए किसी जटिल योजना की आवश्यकता नहीं होती। केवल “छोड़ देने की कला” सीखनी है - यही ध्यान है।

    ध्यान का अर्थ 

    ध्यान का अर्थ है इस क्षण को पूर्ण रूप से स्वीकार करना और हर पल को गहराई से जीना। बस यही समझ, और कुछ दिनों के निरंतर ध्यान-अभ्यास से, आपके जीवन की गुणवत्ता पूरी तरह बदल सकती है। हमें बीती घटनाओं और भविष्य की योजनाओं के बारे में सतत विचारते नहीं रहना है, बल्कि वर्तमान क्षण में रहने का प्रयास बार-बार करना चाहिए।

    ध्यान हमें खुशी, संतोष और गहरी अंतर्दृष्टि की ओर ले जाता है। यह हमें संसार को अपने एक हिस्से के रूप में देखने में सहायता करता है, और तब हमारे भीतर और संसार के बीच प्रेम का प्रवाह प्रबल हो उठता है। यह प्रेम हमें जीवन की विपरीत परिस्थितियों और उथल-पुथल को सहजता से सहने की शक्ति देता है। क्रोध और निराशा क्षणभंगुर भावनाएं बन जाती हैं।

    समझ और अभ्यास

    ज्ञान, समझ और अभ्यास - इन तीनों का संगम ही जीवन को पूर्ण बनाता है। जब आप उच्चतर चेतना की अवस्था में पहुंचते हैं, तब परिस्थितियां या बाधाएं आपको विचलित नहीं कर पातीं। आप कोमल होते हैं, फिर भी दृढ़। जीवन के विविध मूल्यों को सहजता से समेटने में सक्षम, जैसे एक सुंदर, सुगंधित पुष्प। ध्यान एक बीज की तरह है। बीज को जितना बेहतर तरीके से उगाया जाता है, वह उतना ही अधिक फलता-फूलता है। इसी प्रकार ध्यान का अभ्यास जितना श्रद्धा और निरंतरता से किया जाए, वह हमारे समस्त तंत्रिका-तंत्र और शरीर को उतना ही संस्कारित करता है। हमारी शारीरिक क्रियाओं में परिवर्तन आता है, और शरीर की प्रत्येक कोशिका ‘प्राण’ से भर जाती है। और जैसे-जैसे शरीर में प्राण का स्तर बढ़ता है, हम आनंद से भर जाते हैं। ध्यान करने के समय तीन सिद्धांतों को याद रखें - अकिंचन, अचाह, अप्रयत्न अर्थात मैं कुछ नहीं हूं, मुझे कुछ नहीं चाहिए और मुझे कुछ नहीं करना है। यदि आपके भीतर ये तीन गुण हैं, तो आप गहराई से ध्यान कर पाएंगे।

    अगर आप ध्यान नहीं कर पा रहे हैं, यदि मन बहुत बातें कर रहा है और कुछ भी काम नहीं कर रहा, तो बस यह महसूस करें कि आप कुछ नहीं जानते। तब आप भीतर गहराई तक उतर पाएंगे। आपकी बुद्धि आपकी चेतना का केवल एक छोटा हिस्सा मात्र है। यदि आप केवल बुद्धि में अटके रहते हैं, तो बहुत कुछ खो देते हैं। सुख तब मिलता है जब आप बुद्धि से परे चले जाते हैं।

    ध्यान की अवस्था 

    विस्मय (आश्चर्य) में भी आप बुद्धि से परे चले जाते हैं। यदि आप किसी भी वस्तु या घटना की गहराई में जाएं, तो आप विस्मय से भर उठते हैं। यह विस्मय आपकी चेतना को जागृत करता है, यही विस्मय आपको ध्यान की अवस्था में ले जाता है। इसलिए विस्मय में रहना सीखें। जब भी आपके भीतर “वाह!” का भाव उठे, जान लें कि आप अपने आत्मा से जुड़ गए हैं। आप उसी क्षण आध्यात्मिक उन्नति की अवस्था में होते हैं।

    यह भी पढ़ें: Jeevan Darshan: जीवन में रहना चाहते हैं सुखी और प्रसन्न, तो इन बातों का जरूर रखें ध्यान

    यह भी पढ़ें: जीवन को आसान बनाने के लिए बदलाव को करें स्वीकार, खुशियों से भर जाएगा घर-संसार