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    Diwali 2025: कब और क्यों मनाई जाती है दीवाली? यहां पढ़ें प्रकाश पर्व का धार्मिक महत्व

    Updated: Mon, 13 Oct 2025 12:38 PM (IST)

    दीपावली (Diwali significance) पर हम धन की देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं, साथ में गणेश की भी। क्योंकि धन के उपयोग में यदि विवेक नहीं है तो सब व्यर्थ है। तब धन लक्ष्मी नहीं टिकतीं। धन तेरस को भी धन से ही जोड़ा जाता है। वस्तुत: असली धन केवल भौतिक संपत्ति, रुपया-पैसा या सोना-चांदी नहीं है। आध्यात्मिक और चारित्रिक मूल्य ही सच्चा धन हैं। व्यक्ति के पास जो है, उसमें संतोष करना ही सबसे बड़ा धन है।

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    Diwali 2025: दीपावली पर धन की देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है

    मोरारी बापू (कथावाचक)दीपावली का पर्व प्रकाश का पर्व है। जीवन में प्रकाश का बहुत महत्व है। ऋग्वेद का आरंभ ‘अग्निमीले पुरोहितम्’ श्लोक से होता है, जो अग्नि का आह्वान है, जो अग्नि को प्रकाश के वाहक के रूप में दर्शाता है। हमारे ऋषि-मुनियों की शिक्षाएं प्रकाश में रहने पर बल देती हैं। जैसा कि उपनिषद मंत्र ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ में प्रतिध्वनित होता है, जो हमें अहंकार, बुराइयों और अज्ञानता से दूर रहते हुए प्रकाश की ओर जाने का आग्रह करता है।

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    दीपावली का त्योहार (Lakshmi Puja) चंद्रविहीन रात्रि, अमावस्या पर आता है और अंधेरे पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। इस पर्व पर हनुमान जी के चरणों में प्रार्थना है कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में उत्साह और खुशी की वृद्धि हो। पूरे विश्व का कल्याण हो और सभी युद्धों का अंत हो। दुनिया में सद्भाव और शांति की स्थापना हो।

    दीपावली (Diwali origin) पर हम धन की देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं, साथ में गणेश की भी। क्योंकि धन के उपयोग में यदि विवेक नहीं है तो सब व्यर्थ है। तब धन लक्ष्मी नहीं टिकतीं। धन तेरस को भी धन से ही जोड़ा जाता है। वस्तुत: असली धन केवल भौतिक संपत्ति, रुपया-पैसा या सोना-चांदी नहीं है। आध्यात्मिक और चारित्रिक मूल्य ही सच्चा धन हैं। व्यक्ति के पास जो है, उसमें संतोष करना ही सबसे बड़ा धन है। धन का अत्यधिक संग्रह संतोष को नष्ट कर सकता है। दूसरों के प्रति सत्य, प्रेम और करुणा का भाव रखना वास्तविक संपत्ति है।

    यह वह धन है, जिसे कोई चुरा नहीं सकता और जो बांटने से कम नहीं होता। मन, कर्म और वचन की पवित्रता भी हमारा धन है। जब हृदय पवित्र होता है, तभी व्यक्ति को सच्ची प्रसन्नता और परमात्मा का प्रसाद प्राप्त होता है। किसी व्यक्ति का अच्छा आचरण और संस्कार भी उसकी असली विरासत और धन है। राम नाम या ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास और भक्ति भी असली धन है, जो जीवन के अंत तक साथ रहता है। असली धन वे आंतरिक गुण हैं, जो मनुष्य को एक अच्छा व्यक्ति बनाते हैं।

    एक बात याद रखें। आवश्यकताएं सरल होती हैं। उन्हें पूरा किया जा सकता है। भूख लगती है तो हम कुछ खाते हैं। प्यास लगती है तो पानी पीते हैं। नींद आती है तो सो जाते हैं। कितना सरल और सहज है यह सब। इसके विपरीत, इच्छाएं बड़ी जटिल होती हैं। हताशा इच्छाओं से होती है। यदि इच्छाएं ऊर्जा अधिक खा जाती हैं, तो हम अपनी आवश्यकताएं भी पूरी नहीं कर सकते। उन्हें पूरा करेगा कौन? तुम भविष्य के बारे में सोच रहे हो; तुम्हारा मन सपने देख रहा है, तब दिन की साधारण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वहां कौन है? तुम तो वहां हो ही नहीं।

    मैं कभी धन कमाने के लिए मना नहीं करता। व्यक्ति को धन खूब कमाना चाहिए और आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बचाकर भी रखना चाहिए। हां, मैं दशांश का दान करने पर बल देता हूं। खूब कमाओ, मगर उसका 10 प्रतिशत सामाजिक कार्यों के लिए अवश्य निकालो। आपके पास जो धन है, उसका उपयोग सत्य, प्रेम, और करुणा के प्रसार में होना चाहिए, जो समाज में बदलाव ला सके। धन का सही उपयोग सेवा और परोपकार के लिए करना चाहिए, न कि अत्यधिक संग्रह करने या भौतिक सुख-सुविधाओं पर खर्च करने के लिए। अत्यधिक संग्रह से बचना चाहिए।

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    याद रखें, अर्थ आवश्यक है, मगर परमार्थ सबसे आवश्यक है। हमेशा अर्थ की खोज में मत रहो। परमार्थ को खोजो। राम (Rama’s return) परमार्थ रूप है। रामनाम जपने वाला किसी का शोषण न करे। भरत की तरह पोषण करे। शत्रुघ्न की तरह शत्रु-बुद्धि का नाश करे। और लक्ष्मण की तरह सबका आधार बने। ये अर्थ से भी आगे, परमार्थ है। ये परम धन है। इस धन से ही विश्राम संभव है।