Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Jagannatha Ratha Yatra 2024: कब और कैसे शुरू हुई थी भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा? जानें महत्व एवं परंपरा

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Mon, 01 Jul 2024 01:57 PM (IST)

    पुरुषोत्तम क्षेत्र पुरी में होने वाली भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा (Jagannatha Ratha Yatra Importance) सात जुलाई से आरंभ हो रही है। जगन्नाथ जी अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ दर्शन देने मंदिर के गर्भगृह से निकलते हैं। इसका वर्णन विशेष रूप से स्कंद पुराण के वैष्णव खंड में मिलता है। जानते हैं जगन्नाथ जी और इस यात्रा का माहात्म्य।

    Hero Image
    Jagannatha Ratha Yatra 2024: भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा का धार्मिक महत्व

    गजपति महाराज दिव्य सिंहदेव जी (महाप्रभु श्री जगन्नाथ जी के प्रथम सेवक)। स्कंद पुराण के अनुसार, जगन्नाथ जी की पहली रथ यात्रा तब हुई, जब परमात्मा परमेश्वर माधव रूप में पुरुषोत्तम क्षेत्र में साक्षात उपस्थित थे। उसी स्थान पर, जहां यह श्रीमंदिर है। जब वे अंतर्धान हो गए, उसके पश्चात अवंती (उज्जैन) के महाराजा इंद्रद्युम्न की प्रार्थना, भक्ति व तपस्या से परमात्मा का यहां दारु विग्रह के रूप में आविर्भाव हुआ। जिस स्थान पर भगवान का आविर्भाव हुआ, वह इस समय का गुंडिचा मंदिर है। उस समय यह मंदिर नहीं था।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    भगवान का आविर्भाव एक मंडप में हुआ। वहां पहला मंदिर महाराज इंद्रद्युम्न ने बनवाया। स्कंद पुराण के अनुसार, वहां तक की प्रथम रथयात्रा महाराज इंद्रद्युम्न के समय में हुई, जो प्रथम मन्वन्तर का द्वितीय सतयुग था। यह रथ यात्रा गुंडिचा मंदिर से उस वक्त के श्रीमंदिर तक हुई। इस पुराण में भगवान ने स्वयं कहा है कि साल में एक बार वह अपने श्रीमंदिर से अपने जन्म स्थान जाना चाहते हैं, क्योंकि वह उन्हें बहुत प्रिय है और यहां सात दिन रहना चाहते हैं।

    यह भी पढ़ें: पांच शुभ योग में शुरू होगी भगवान जगन्नाथ की यात्रा, नोट करें शुभ मुहूर्त एवं महत्व


    इस यात्रा में भगवान सात दिन बाद वापस आते हैं, जिसे हम बाहुड़ा यात्रा कहते हैं। फिर भगवान अपने श्रीमंदिर में पुन: विराजमान होते हैं। यह सनातन वैदिक धर्म की अलग-सी परंपरा है। वैदिक परंपरा में जब हमारे मूल विग्रह मंदिर में, गर्भगृह में अपने सिंहासन पर प्रतिष्ठित हो जाते हैं, तो उन्हें वहां से हटाया नहीं जाता है, पर यहां पर जगन्नाथ जी कहते हैं कि वह सबके नाथ हैं, ऐसे में उनके दर्शन व उनकी कृपा प्राप्त करने का सबका अधिकार है। अत: वे रथ पर सवार होकर दर्शन देने निकलते हैं। जगत के नाथ जगन्नाथ जी की रथयात्रा में सभी धर्म-संप्रदाय के लोग भाग लेते हैं।  

    शास्त्रों के अनुसार, परमात्मा दारु विग्रह के रूप में प्रकट हुए। वह मानवोचित लीला करते हैं। वैदिक सिद्धांत में हम सभी मनुष्य सप्तधातु में गठित हैं। हड्डी से लेकर चर्म तक सप्त आवरण है। उसी तरह तरह जगन्नाथ जी, बलभद्र, सुभद्रा एवं सुदर्शन जी सप्त आवरण से गठित हैं। हमारे शरीर में जो तत्व हैं, परिवर्तनशील है, उसी तरह से भगवान जी का शरीर भी है।

    यह भी पढ़ें: आखिर किस वजह से कौंच गंधर्व को द्वापर युग में बनना पड़ा भगवान गणेश की सवारी?

    भगवान स्नान-यात्रा के बाद अणवसर गृह में जाते हैं, तब कुछ परिवर्तन किए जाते हैं। कुछ दारु अंग निकाले जाते हैं और कुछ अंग नए डाले जाते हैं। यह भगवान जी के सामान्य परिवर्तन का समय होता है। स्नान यात्रा से लेकर रथयात्रा के पूर्व दिन तक। हम सामान्य भावना से कहते हैं, भगवान जी अस्वस्थ हैं। हमारा विश्वास है कि जगन्नाथ जी परमात्मा हैं और उनके शरीर में ब्रह्म है। यही ब्रह्म नवकलेवर में उनके शरीर में प्रवेश करता है।