Sadhguru: क्या होता है योग और कैसे यह आपके जीवन को बदलता है? यहां समझें सबकुछ
मानव शारीरिक रूप से कमजोर होते हुए भी अन्य प्राणियों से अलग है क्योंकि उसकी संभावनाएं केवल अस्तित्व से परे हैं। जानवरों के विपरीत, इंसान की मूल आवश्यकताएं पूरी होने पर जीवन शुरू होता है, और वह लगातार सीमाओं से आगे बढ़ने की जिज्ञासा रखता है। सद्गुरु बताते हैं कि मनुष्य एक 'होने' वाला प्राणी नहीं, बल्कि 'बनने' वाला प्राणी है, जो निरंतर विकसित हो रहा है। इस अद्वितीय मानव क्षमता का लाभ उठाने के लिए योग एक व्यवस्था प्रदान करता है।

Sadhguru: मानव तंत्र बिल्कुल अलग संभावना के साथ रचा गया है
सद्गुरु (आध्यात्मिक गुरु)। शारीरिक बल के मामले में आप मानव की तुलना किसी भी जीव-जंतु से नहीं कर सकते। एक कीट टिड्डे को ही लें- वह अपने शरीर की लंबाई के पचास से सौ गुना लंबी छलांग लगा सकता है। उस हिसाब से अगर आप पांच या छह फीट लंबे हैं तो आपको पांच सौ फीट उछलना चाहिए।
शारीरिक क्षमता के मामले में प्रकृति का कोई भी प्राणी चाहे वह कोई कीड़ा-मकोड़ा हो या पशु-पक्षी, आपसे अधिक सक्षम बनाया गया है। एक मानव के रूप में आपमें कुछ अलग तरह की संभावनाएं हैं- अपने को जीवित रखने की स्वाभाविक इच्छा से परे जाकर कुछ अलग करने की संभावना। यही मानव में सबसे विशेष बात है।
जानवरों की अगर भोजन की व्यवस्था हो जाए तो वे उसी पल संतुष्ट हो जाते हैं, लेकिन इंसान का स्वभाव कुछ ऐसा है कि उसका जीवन शुरू ही तब होता है, जब उसके जीवन की मूल जरूरतें पूरी हो जाती हैं। यही बात हमें वास्तव में जानवरों से अलग करती है। मानव की विशेषता यह है कि वह एक सहज जिज्ञासु होता है, वह किसी एक बिंदु पर नहीं ठहर सकता। आपके भीतर कुछ ऐसा है, जिसे किसी सीमा में कैद रहना पसंद नहीं हैं, जो लगातार सीमाओं से परे जाने को तड़प रहा है।
हालांकि, अभी अधिकतर लोग जीवन की मूल आवश्यकताओं से परे जाने के बजाय जीवन की आवश्यकताओं को ही बढ़ा रहे हैं। एक समय था, जब मूल आवश्यकताओं का अर्थ था दो जून की रोटी, लेकिन अब मर्सीडीज लोगों की बुनियादी जरूरत बन गई है। हम बस मानदंड ऊंचे कर रहे हैं, लेकिन बात अभी भी खुद के अस्तित्व को बचाए रखने की ही है। यह मानव तंत्र का कोई समझदारी भरा इस्तेमाल नहीं है।
मानव तंत्र बिल्कुल अलग संभावना के साथ रचा गया है। इस शरीर को चाहे आप एक हाड़-मांस के पिंड के रूप में इस्तेमाल करें या फिर एक जबरदस्त उपकरण के रूप में करें, जो ईश्वर का प्रत्यक्ष अनुभव करा सकता है। चार्ल्स डारविन ने हमें बताया कि हम सब पहले बंदर थे। हमारी पूंछ समाप्त हुई और हम मनुष्य बन गए। हम सब यह कहानी जानते हैं। जब आप बंदर थे, तो आपने इंसान बनने की इच्छा नहीं की थी, बस प्रकृति आपको आगे धक्का देती रही। लेकिन एक बार मानव शरीर में आने के बाद, विकास अनजाने में नहीं होता है। आप सिर्फ चेतनतापूर्वक ही विकास कर सकते हैं।
हां, एक बार मानव शरीर पाने के बाद, आपके लिए कुछ विकल्प और संभावनाएं खुल गई हैं, आपके जीवन में एक स्वाधीनता आ गई है। जिसे हम इंसान या मानव कहते हैं, वह अभी तक एक संपूर्ण प्राणी भी नहीं है। अन्य जानवरों को देखें तो वे अपने आप में पूर्ण होते हैं।
उदाहरण के लिए एक चीता जन्म लेता है, बड़ा होता है, लेकिन उसे यह चिंता नहीं होती कि मैं अच्छा चीता कैसे बनूं। उसे बस भरपूर भोजन मिल जाता है और वह अच्छा चीता बन जाता है। लेकिन आपका जन्म मानव के रूप में हुआ है। अच्छा इंसान बनने के लिए आपको कितनी चीजें करनी पड़ती हैं।
ये सब काम करने के बाद भी आपको नहीं पता कि आप कहां खड़े हैं। किसी और की तुलना में तो आप कह सकते हैं, कि इस आदमी से मैं बेहतर हूं, लेकिन अपने आप में एक इंसान के तौर पर आप कहां हैं, आपको पता नहीं होता। मानव की अवस्था निरंतर परिवर्तनशील है।
आप एक पल देवतुल्य हो सकते हैं और अगले ही पल राक्षसी हो सकते हैं। एक पल खूबसूरत तो अगले ही पल बदसूरत होते हैं। जिसे आप ‘मैं’ कहते हैं, वह एक तय स्थिति नहीं है।
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वह दिन के किसी पल कुछ भी हो सकता है। हम कह सकते हैं ‘अ ह्यूमन इज नाट अ बीइंग, ही इज बिकमिंग’ यानी मानव अभी भी मानव बनने की प्रक्रिया में है। यह एक अनवरत प्रक्रिया है, एक संभावना है। इस संभावना का लाभ उठाने के लिए, एक पूरी व्यवस्था है, जिसे हम योग कहते हैं। योग हमें समझाता है कि यह जीवन कैसे काम करता है और हम इसके साथ क्या कर सकते हैं।
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