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    शनिवार के दिन करें सुंदरकांड के इन दोहों का पाठ, शनिदेव के साथ मिलेगी हनुमान जी की कृपा

    Updated: Thu, 09 Oct 2025 07:00 PM (IST)

    गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित 'श्रीरामचरितमानस' के 'सुंदरकांड' का पाठ करना विशेष लाभकारी माना जाता ह। विशेषकर शनिवार और मंगलवार के दिन सुंदरकांड का पाठ करने से आपको हनुमान जी के साथ-साथ शनिदेव की भी कृपा प्राप्त हो सकती है। ऐसे में आप शनिवार के दिन सुंदरकांड के कुछ विशेष दोहों का पाठ कर सकते हैं।

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    Sunderkand Path on Saturday (Picture Credit: Freepik) (AI Image)

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित माना गया है। शनि देव, सूर्य देव के पुत्र हैं, जिन्हें न्याय के देवता और कर्मफल दाता के रूप में भी जाना जाता है। ऐसे में आप शनिदेव को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो इसके लिए शनिवार के दिन सुंदरकांड (Sunderkand Path) के इन दोहों का पाठ कर सकते हैं। चलिए पढ़ते हैं हनुमान जी के दोहे अर्थ सहित।

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    रामचंद्र गुन बरनैं लागा। सुनतहिं सीता कर दुख भागा॥
    लागीं सुनैं श्रवन मन लाई। आदिहु तें सब कथा सुनाई॥

    सुंदरकांड की इस चौपाई में हनुमान जी सीता जी के समक्ष प्रभु श्री रामचंद्रजी के गुणों का वर्णन करते हैं, जिसे सुनते ही सीता जी के सारे दुख दूर हो जाते हैं। सीता जी मन लगाकर श्रीराम का गुणगान सुनती हैं। हनुमान जी शरू से लेकर अंत तक सीता माता को सारी कथा सुनाते हैं।

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    (Picture Credit: Freepik) 

    हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम,
    राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहां बिश्राम

    इस दौहे में हनुमान जी की प्रभु श्रीराम के प्रति भक्ति के साथ-साथ उनके समर्पण और कर्तव्यनिष्ठा को भी दर्शाता है। इस दोहे का अर्थ है कि हनुमान जी ने मैनाक पर्वत को हाथ से छूकर प्रणाम किया और कहा कि श्री राम का कार्य किए बिना मुझे विश्राम नहीं है।

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    (Picture Credit: Freepik) (AI Image)

    काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ।
    सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत॥

    इस दोहे में कहा गया है कि काम, क्रोध, मद और लोभ नरक के रास्ते हैं, इसलिए इन सभी बुराइयों को त्याग कर भगवान श्रीराम को भजना चाहिए। ऐसे में शनिवार के दिन इस दोहे का पाठ जरूर करना चाहिए।

    प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदय राखि कोसलपुर राजा॥
    गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई॥

    इस दोहे में लंका की द्वारपालिका हनुमान जी से कह रही है कि आप अयोध्या के राजा श्रीराम को हृदय में रखकर लंका में प्रवेश कर अपने सार काम पूरे कीजिए। जो भी भक्त श्रीराम का ध्यान करते हैं हुए काम करता है, उसके लिए विष अमृत के समान हो जाता है और शत्रु भी मित्र बन जाते हैं। इसके साथ ही समुद्र की गहराई समाप्त हो जाती है और अग्नि में शीतलता आ जाती है

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।