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    क्या है भगवान शिव और शंकर में अंतर

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Thu, 01 Dec 2016 05:10 PM (IST)

    शंकर को सदा तपस्वी मूर्त दिखाया जाता है और कई तस्वीरों में शिवलिंग का ध्यान करते हुए भी दिखाते हैं।

    अज्ञान के कारण बहुत से लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम मानते हैं। परंतु दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को सदा तपस्वी मूर्त दिखाया जाता है और कई तस्वीरों में शिवलिंग का ध्यान करते हुए भी दिखाते हैं।

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    परमात्मा शिव की स्थापना, पालना और विनाश के लिए ब्रह्मा विष्णु और शंकर तीन सूक्ष्म देवताओं की रचना करते हैं जिनमें शंकर के द्वारा केवल विनाश का कार्य ही कराते हैं। शिव परमात्मा रचयिता हैं और शंकर उनकी एक रचना हैं। शिव ब्रह्म लोक में परमधाम के निवासी हैं और शंकर सूक्ष्म लोक में रहने वाले हैं।

    शिव की यादगार में शिवरात्रि मनाई जाती है ना कि शंकर रात्रि। अतः शिव निराकार परमात्मा हैं और शंकर सूक्ष्म आकारी देवता है।

    क्या है कारण ?

    शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है तो कहते हैं शिव शंकर भोलेनाथ। शंकर जी को उंचे पर्वत पर तपस्या में लीन बताते हैं जबकि भगवान शिव ज्योति बिंदु स्वरूप हैं। जिनकी पूजा ज्योति र्लिंग के रूप में की जाती है। वास्तव में भगवान शिव के तीन प्रमुख कर्तव्य हैं। नई पावन दैवीय सतयुगी दुनिया की स्थापना, दैवीय दुनिया की पालना और पुरानी पतित दुनिया का विनाश। इसलिए भगवान शिव को गाॅड कहा जाता है। ये तीनों कर्तव्य तीन प्रमुख देवताओं ब्रह्मा, विष्णु, शंकर द्वारा करवाए जाते हैं। इसलिए शिव की त्रिमूर्ति शिव भगवान भी कहा जाता है। भगवान शिव सदा कल्याणकारी हैं, जन्म-मरण के चक्र या बंधन से सदा मुक्त हैं जबकि शंकर साकारी देवता है।

    शंकर को ही देव आदि देव महादेव भी कहा जाता है। भगवान शिव शंकर में प्रवेश करके वोमहान से महान कार्य करवाते हैंजो अन्य कोई देवी-देवता, साधु, संत, महात्मा नहीं कर पाते।

    ज्योति स्वरूप शिव सतधर्म अर्थात सतज्ञान देकर सत आचरण की धारणाओं को ब्रह्मा द्वारा स्थापित करते हैं। जैसा अभी तक होता आया था-कई विद्वान, महर्षि, धर्म संस्थापकों ने मूल्यों, सदगुणों की धारणाओं का महत्व बताया था। फिर भी आचरण में दिव्यता आने की बजाय गिरावट ही दर्ज होती गई, वैसा अब नहीं होगा क्योंकि यह सृष्टि चक्र का अंतिम समय है। जब स्वयं भगवान शिव परिवर्तन करवाने आते हैं और अपना कर्तव्य पूरा करके ही वापस परमधाम जाएंगे। बाकी लोगों ने मूल्यों की स्थापना तो की है लेकिन पूराने रिवाजों अंधविश्वासों, पतित परंपराओं को भस्म नहीं कर पाए। यह वैसी ही बात है जैसे किसी घड़े में विष के साथ अमृत भी मौजुद हो। इसलिए सृष्टि का परिवर्तन नहीं हो सका, किसी के भी द्वारा।

    इसलिए शिव करते हैं विनाश

    भगवान शिव इसलिए दूसरी मूर्ति शंकर द्वारा विकारी पतित मनुष्यों की भ्रष्ट बुद्धि का विनाश करते हैं फिर बाढ़ में स्थूल रूप से भी पतित प्रकृति, विकारी दुनिया का विनाश करते हैं जिससे पावन बनी आत्माएं पावन निर्विकारी प्रकृति, पवित्र वातावरण में रह सकें जहां कोई भी विकार, भ्रष्टाचार का नामोनिशान नहीं होता है।