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    Vivah Panchami 2024: पढ़ें भगवान श्रीराम और माता जानकी के विवाह की पौराणिक कथा

    Updated: Mon, 02 Dec 2024 06:36 PM (IST)

    वर्ष 2024 में शुक्रवार 06 दिसंबर को विवाह पंचमी मनाई जाएगी। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार त्रेतायुग में मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर भगवान राम और माता सीता का विवाह हुआ था इसलिए इस दिन को विवाह पंचमी के रूप में मनाया जाता है। ऐसे में चलिए इस अवसर पर जानते हैं स्वामी मैथिलीशरण जी के विचार।

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    Vivah Panchami 2024: पढ़ें भगवान श्रीराम और माता जानकी के विवाह की पौराणिक कथा

    स्वामी मैथिलीशरण (संस्थापक अध्यक्ष, श्रीरामकिंकर विचार मिशन)। जब अर्थ धर्मानुगामी होगा, काम मोक्षानुगामी होगा, तब होगा सीताराम का विवाह। श्रीसीता-श्रीराम विवाह प्रसंग देह के मिलन का न होकर देह के धन्य होने का है। इसमें जनक की निष्कामता और दशरथ की सकामता दोनों ही धन्य हो गईं केवल मोक्ष-राम, धर्म-भरत, काम-लक्ष्मण और अर्थ-शत्रुघ्न को जन्म देकर। यही जीवन और व्यवहार का सत्य है, जिसकी परिणति है श्रीराम का राज्य और देह और विदेह की धन्यता और कृतकृत्यता।

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    चतुर सखीं लखि कहा बुझाई। पहिराबहु जयमाल सुहाई।

    सुनत जुगल कर माल उठाई। प्रेम बिबस पहिराई न जाई।।

    धनुष यज्ञ के पश्चात एक प्रबुद्ध सखी ने श्रीसीता जी से कहा, प्रिय सीता! जिसकी रचना तुमने अपने मन में पूर्व समय से ही कर रखी थी, उन्होंने आपके भाव रक्षा के लिए शंकर जी का धनुष तोड़कर दो भाग कर दिए। अब इन दोनों भागों के मिलने का समय आ गया है। सीता जी और राम का मिलना ही अद्वैत है, वही द्वैत है, विशिष्टाद्वैत तथा द्वैताद्वैत भी वही है। सखी के बार-बार कहने पर कि श्रीराम को जयमाला पहना दो, पर श्री श्रीराम के प्रति प्रेम में इतनी अभिभूत हैं कि प्रेम विवश होकर माला नहीं पहना रही है, पुष्प वाटिका में सीता जी पर के वश हो गई थीं।

    परबस सखिन्ह लखी जब सीता। वे प्रेम विवश हो गईं थीं। यहां “पर” जब परमात्मा ही अपना हो तो पर कहां रह सकता है? तो यहां पर, पर और प्रेम दोनों राम ही हैं। तब सीता जी ने श्रीराम को माला पहना दी और श्रीराम ने सीता जी को माला पहना दी। दोनों को माला का सुमेरु मिल गया। शक्ति और शक्तिमान जब मिलते है, तभी वे एक-दूसरे के पूरक होकर सृष्टि के आराध्य हो जाते हैं।

    जो विश्व के मित्र हैं, उन्हीं विश्वामित्र की दिव्य भूमिका थी इस विवाह में। गुरु जी के पूजन के लिए पुष्प लेने जाना श्री राम की साधना बनी और पार्वती जी का पूजन करने जाना श्री सीता जी की साधना बनी। पार्वती जी और गुरुदेव दोनों ने दोनों को आशीर्वाद दिया कि तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा और जो तुमने मन में रच रखा, वही सुंदर, सुजान, शील निधान वर तुम्हें मिलेगा। जब हृदय में श्रद्धा की ऋतु वसंत बनकर आती है, तभी कामना का बीज सुफल को जन्म देता है। तब सकामता और निष्कामता दोनों धन्य होकर सम समधी हो जाते हैं।

    गोस्वामी तुलसीदास जी के काव्य, कवि तथा उपमाओं का घनत्व जैसा विवाह प्रसंग में है, वैसा पूरे मानस में कहीं नहीं है।

    गाबहिं सुंदरि मंगल गीता। लै लै नाम राम और सीता।

    राम-सीता का नाम स्वयं ही सकल सुमंगल दायक है। राम और सीता का नाम लेकर तो मंगल गीत हो रहे हैं, पर जेवनार के समय जनकपुर की यही स्त्रियां दशरथ जी के पूर्वजों का नाम लेकर भोजन के समय गालियां दे रही हैं।

    समय सुहावनि गाधि बिराजा।

    हसत राउ सुनि सहित समाजा।

    समय सुहावनि शब्द बहुत अर्थपूर्ण है। हर वस्तु समय पर ही अच्छी तथा सरस लगती है। विवाह में गालियां देना और सुनना, यह लोकरीति का सखोच्चार है, जो मंडप में वेद रीति के विद्वान ब्राह्मण जनक और दशरथ की सात पीढ़ियों का नाम लेकर सखोच्चार करते हैं। जीवन में हमेशा गंभीरता और हमेशा हंसी विनोद दोनों नहीं होने चाहिए। जैसा समय हो, उस तरह का कार्य और व्यवहार समाज और परिवार को जोड़ता है।

    सरजू नाम सुमंगल मूला। लोक बेद मुद मंगल कूला। सरयू की धारा का एक किनारा जनकपुर है, जो ज्ञानियों के लिए वेद का कूल है और सरयू की एक धारा भक्तों की लोकधारा है। श्री राम और सीता का जो मिलन है, वह केवल शरीर का विवाह न होकर संसार में एक विशुद्ध और व्यापक विचारधारा का सृजन है कि हम जीवन को कैसे जिएं, कैसे व्यवहार करें? समधी, गुरुओं, परिजनों, स्वजनों को स्त्री, पुरुष, युवा, वृद्ध सबको समान आनंद का अनुभव कैसे हो, यही राम विवाह का अर्थ और उद्देश्य है। कैसे एक-दूसरे को मिलाकर दोनों किनारों को मिला दें।

    ज्ञानी जनक की सीमाओं को और उनके ज्ञानमय स्वरूप को देखकर पूरे लीलाकाल में सीता जी ने अपनी सिद्धि का उपयोग पहली बार किया, क्योंकि इस समय अयोध्या के जो बराती हैं, बरात में आने के पश्चात उनसे किसी प्रकार की त्याग-तपस्या की आशा नहीं की जा सकती है, वे सब यहां तीर्थ और धाम की भावना से न आकर विवाह में सम्मान और सुविधा की आशा से आए हैं, उनका मन भी बरातियों वाला ही होता है, तो सीता जी ने बरात के स्वागत के लिए लोकपक्ष को चुना और रिद्धि-सिद्धियों से कहा कि जिस बराती को जो सुविधा चाहिए, वह सब कर दी जाए, तुरंत रिद्धि-सिद्धियों ने वही कर दिया।

    सिधि सब सिय आयसु अकनि गईं जहां जनवास।

    लिएं संपदा सकल सुख सुरपुर भोग बिलास।।

    स्वर्ग में जो व्यवस्था देवताओं को अनेक पुण्य फलों के पश्चात मिलती है, वह अयोध्या से आई बरात को सीता जी की महती कृपा के फलस्वरूप प्राप्त हो गई।

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    अपनी कन्या जानकी को हृदय से लगाकर जनक जी विलाप करने लगे, तुलसीदास जी कहते हैं कि यह विलाप अज्ञान और मोह नहीं है, अपितु यह तो ज्ञान का फल जनक को प्राप्त हो रहा है। ज्ञान जब पक जाता है तो हृदय नेत्रों के रास्ते बहने लगता है। यहां वही हो रहा है। जनक जी जैसे ज्ञानी राजा दशरथ जी से कहते हैं कि आपसे संबंध करके हम अब सब प्रकार से बड़े हो गए। आप हमें अपना सेवक मानते रहिएगा। बड़ी बात तो यह है ज्ञानी की वाणी से जब भक्ति निकलती है तो वह ज्ञान का फल होता है और फिर वही श्रुति हो जाती है। जो वाणी का विषय होगा, तभी तो श्रुति का विषय होगा। दशरथ जी को जनक जी के यहां जो भी दहेज मिला, उसका अधिकांश भाग वहीं याचकों को बांट दिया गया। जो कुछ हाथ में बचा, बस वही जनवासे में आया। राम विवाह में सकामता और निष्कामता दोनों आज परिपूर्ण हो गई।

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    दशरथ जी को अपने चार पुत्र और चार पुत्र वधुओं को एक साथ देखकर ऐसा लग रहा है कि मानो पुरुषार्थ के चारों फल कृपाफल बनकर अपनी क्रियाओं के साथ मुझे प्राप्त हो गए। मोक्ष-राम की पत्नी सीता, मोक्ष की क्रिया भक्ति हैं, धर्म-भरत की पत्नी मांडवी, धर्म की श्रद्धा क्रिया हैं, काम-लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला, काम की योग क्रिया हैं, अर्थ-शत्रुघ्न की पत्नी श्रुतिकीर्ति, अर्थ की दान क्रिया हैं। जब साधक अर्ध, धर्म, काम और मोक्ष को उनकी शुद्ध क्रियाओं के द्वारा प्राप्त करता है, तभी उसके जीवन में राम विवाह होकर उसका चरम फल भी प्राप्त हो जाता है।

    सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।

    तिन्ह कहुं सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु॥

    भगवान श्री सीताराम जी के विवाह के प्रसंग को जो प्रेमपूर्वक गाएगा-सुनेगा, उसके हृदय और घर में सदा आनंद और उत्साह बरसेगा, क्योंकि श्री राम जी का यश मंगल का धाम है।