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    Jeevan Darshan: जीवन में रहना चाहते हैं सुखी और धनी, तो इन बातों पर जरूर करें गौर

    By Jagran News Edited By: Pravin Kumar
    Updated: Mon, 02 Dec 2024 06:26 PM (IST)

    आनंद सजगता और दया के क्षणों में जीना दिव्यता की प्राप्ति है। बच्चे की तरह रहना दिव्यता है। यह अपने अंदर से मुक्त होना तथा प्रत्येक से बिना किसी संकोच के सहज रहना है। दूसरे तुम्हारे बारे में क्या सोचते हैं इस बारे में मत सोचो और इसके अनुसार निर्णय मत करो। वे जो कुछ भी सोचते हैं वह स्थायी नहीं है।

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    Jeevan Darshan: आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर के अनमोल विचार

    श्री श्री रविशंकर (आध्यात्मिक गुरु, आर्ट ऑफ लिविंग)। प्रत्येक प्राणी सुख चाहता है। चाहे वह धन, शक्ति या इंद्रिय सुख हो। कुछ व्यक्ति दुख से भी आनंद प्राप्त करते हैं, क्योंकि इससे उन्हें सुख मिलता है। सुखी रहने के लिए हम किसी वस्तु की खोज करते हैं, परंतु उसे प्राप्त करने के बाद भी सुखी नहीं रहते हैं। विद्यालय जाने वाला विद्यार्थी सोचता है कि यदि वह विश्वविद्यालय जाता है तो वह अधिक स्वतंत्र और सुखी होगा।

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    वहीं, विश्वविद्यालय के छात्र का सुख यह है कि उसे नौकरी मिल जाए, तब वह सुखी होगा। अपने व्यवसाय या नौकरी में लगा हुआ व्यक्ति यह कहता है कि उसे सुखी रहने के लिए एक जीवनसाथी की आवश्यकता है। उसे जीवनसाथी मिल जाता है, फिर भी उसे सुखी रहने के लिए बच्चों की आवश्यकता होती है। जिन लोगों के बच्चे हैं, वे कहते हैं कि उन्हें सुख तब मिलेगा, जब बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त कर लें और अपने पैरों पर खड़े हो जाएंगे। जो लोग सेवानिवृत्त हो चुके हैं, उनसे पूछो तो वे उन दिनों को याद कर उन्हें अच्छा कहते हैं, जब वे नौजवान थे। एक व्यक्ति का पूरा जीवन भविष्य में प्रसन्न व सुखी रहने की तैयारी करने में बीत जाता है।

    आंतरिक रूप से प्रसन्न होने के लिए हमने अपने जीवन के कितने मिनट, घंटे या दिन बिताए हैं। केवल वही वे क्षण हैं, जिनमें आपने अपने जीवन को सही मायने में जिया है। शायद वे केवल वही दिन थे, जब तुम एक छोटे बच्चे थे, पूर्णतया प्रसन्नता और आनंद में या कुछ क्षणों में, जब तुम तैर रहे थे या लहरों से खेल रहे थे या किसी पर्वत के शिखर पर बैठे हुए वर्तमान क्षण में जीते हुए उसका आनंद ले रहे थे। जीवन को देखने के दो तरीके हैं।

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    पहला यह कि किसी एक उद्देश्य की प्राप्ति के पश्चात मैं सुखी रहूंगा। दूसरा यह कि जो भी हो, मैं सुखी हूं। तुम इनमें से किस तरह से जीना चाहते हो। जीवन 80 प्रतिशत आनंद है और 20 प्रतिशत दुख, लेकिन हम उस 20 प्रतिशत को पकड़ कर बैठ जाते है और उसे 200 प्रतिशत बना लेते हैं। यह जानबूझ कर नहीं होता है, बस केवल हो जाता है।

    आनंद, सजगता और दया के क्षणों में जीना दिव्यता की प्राप्ति है। बच्चे की तरह रहना दिव्यता है। यह अपने अंदर से मुक्त होना तथा प्रत्येक से बिना किसी संकोच के सहज रहना है। दूसरे तुम्हारे बारे में क्या सोचते हैं, इस बारे में मत सोचो और इसके अनुसार निर्णय मत करो। वे जो कुछ भी सोचते हैं, वह स्थायी नहीं है।

    दूसरे व्यक्तियों तथा वस्तुओं के बारे में तुम्हारी खुद की राय हर समय बदलती रहती है तो फिर दूसरे तुम्हारे बारे में क्या सोचते हैं, इसके लिए चिंता करने की क्या आवश्यकता है। चिंता करने से शरीर, मन, बुद्धि और सजगता पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। यह वह बाधा है, जो हमको अपने-आप से बहुत दूर ले जाती है। यह हमारे अंदर भय पैदा करती है।

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    भय प्रेम की कमी के अलावा कुछ नहीं है, यह अलगाव की तीव्र चेतना है। श्वसन क्रियाओं द्वारा इन्हें नियंत्रित किया जा सकता है। तब तुम्हें इस बात का अनुभव होगा कि मैं सबका प्यारा हूं, मैं हर व्यक्ति के समान हूं और संपूर्ण ब्रह्मांड का एक अंश हूं। यह तुम्हें मुक्त कर देगा और तुम्हारा मन पूर्ण रूप से बदल जाएगा। तब तुम्हें अपने चारों तरफ अत्यधिक एकरूपता मिलेगी।

    एकरूपता पाने के लिए कई वर्षों तक कहीं बैठकर साधना नहीं करनी पड़ती। जब भी तुम प्रेम में हो और आनंद का अनुभव करते हो, तो तुम्हारा मन वर्तमान में होता है। किसी स्तर पर, किसी मात्रा में प्रत्येक व्यक्ति अनजाने में ध्यान करता है। ऐसे क्षण होते हैं, जब तुम्हारे शरीर, मन और श्वास में एकरूपता होती है, तब तुम योग को प्राप्त करते हो।