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    ज्ञान शारीरिक और बौद्धिक अहंकार से करता है मुक्त

    वैराग्य का प्रथम अध्याय है वृत्ति की पूजा करना। पूजा के तहत प्रथम पूजा गणेश की वंदना की जाती है। गणेश का अर्थ है अपने विवेक की रक्षा करना। और विवेक केवल बुद्ध पुरुषों के सत्संग से ही प्राप्त होता है- ‘बिनु सतसंग बिबेक न होई’। सत्संग का अर्थ वैसे संतों के सानिध्य से है जिनमें सत्य का अंश ज्यादा मिले।

    By Kaushik SharmaEdited By: Kaushik SharmaUpdated: Mon, 12 Feb 2024 05:50 PM (IST)
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    प्रसिद्ध कथावाचक मोरारी बापू के अनमोल विचार

    नई दिल्ली, मोरारी बापू (प्रसिद्ध कथावाचक)। विद्या ज्ञान है। एक विचारधारा यह भी है कि जहां बुद्धि हमें बंधन में डाल सकती है, वहीं ज्ञान हमें मुक्त कर देता है। बुद्धि एक अमूल्य संपत्ति है। विद्या ही भक्ति योग है। हनुमान चालीसा में गोस्वामी तुलसीदास हनुमान जी से हमें तीन गुणों का आशीर्वाद देने के लिए कहते हैं - 'बल, बुद्धि, विद्या देहि मोहिं।' बल यानि शक्ति, ताकत। बुद्धि अर्थात बुद्धिमत्ता और विद्या अर्थात ज्ञान। इस त्रिपक्षीय अनुरोध के बहुपक्षीय अर्थ हैं। बल महत्वपूर्ण है, लेकिन विवेक बुद्धि के बिना शक्ति व्यक्ति को हिंसक बना देगी।

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    श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं- "ददहमि बुद्धि योगम।" इसका अर्थ है - "जो कोई भी भक्ति के माध्यम से खुद को मुझसे जोड़ता है, मैं उसे बुद्धि देता हूं।" जब हमारे पास शक्ति होगी तो हम 'कर्म योग' कर सकते हैं। एक कमजोर व्यक्ति सोचने में सक्षम हो सकता है, लेकिन उसे अपनी योजनाओं को क्रियान्वित करने में कठिनाई होती है। 'बल' का अर्थ 'आत्मबल या मनोबल' भी है, जिसका अर्थ है जीवन के उतार-चढ़ाव को सहने की मानसिक शक्ति।

    बुद्धि में नहीं है कोई भावना

    अब बात करते हैं बुद्धि की। जिस बुद्धि में कोई भावना नहीं है, वह निरर्थक है। वह विनाशकारी भी हो सकती है। हालांकि, यह हमारे जीवन में बुद्धि के महत्व को कम नहीं करता है। कहते हैं, अगर किस्मत में किसी को बर्बाद करने की योजना हो तो सबसे पहले उस इंसान की बुद्धि बर्बाद होती है। बुद्धि हमें 'ज्ञान योग' में सहायता करती है। 

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    विद्या ज्ञान है। एक विचारधारा यह भी है कि जहां 'बुद्धि' हमें 'बंधन' में डाल सकती है, वहीं ज्ञान हमें मुक्त कर देता है। बुद्धि एक अमूल्य संपत्ति है। मेरी निजी राय में 'विद्या' ही 'भक्ति योग' है। इसे रामायण का हवाला देकर समझाया जा सकता है, जिसमें माया को भ्रम या 'अविद्या' (ज्ञान की कमी) कहा गया है और भक्ति को ज्ञान या विज्ञान कहा गया है। एक भक्त गा सकता है या नृत्य कर सकता है, लेकिन वह पागलपन नहीं है, बल्कि वह जागरूकता से भरा हुआ है। ऐसा ज्ञान हमें शारीरिक अहंकार या बौद्धिक अहंकार से मुक्त करता है। हमें यहां 'विद्या' की व्याख्या आध्यात्मिक ज्ञान के रूप में करनी चाहिए।

    श्रद्धा से ज्ञान की प्राप्ति होती है

    बुद्ध पुरुष के लक्षण अनंत हैं। नारद द्वारा भगवान श्रीराम से पूछे जाने पर उन्होंने भी इसके सटीक और सारगर्भित लक्षण बताने में असमर्थता व्यक्त की। बुद्ध पुरुष के प्रथम लक्षण के रूप में वैराग्य का स्थान दिया गया है। मानस निरंतर मुक्तता देती है। वृत्ति का काफी अंश मानस में मिलता है, लेकिन मानस के अतिरिक्त वृत्ति के कुछ अनछुए पहलू हैं। मानस ने वृत्ति की कुछ अद्भुत परिभाषाएं दी हैं। यह भी वैराग्य का एक मार्ग है। वैराग्य का प्रथम अध्याय है वृत्ति की पूजा करना। पूजा के तहत प्रथम पूजा गणेश की वंदना की जाती है। गणेश का अर्थ है अपने विवेक की रक्षा करना। और विवेक केवल बुद्ध पुरुषों के सत्संग से ही प्राप्त होता है- ‘बिनु सतसंग बिबेक न होई’। सत्संग का अर्थ वैसे संतों के सानिध्य से है, जिनमें सत्य का अंश ज्यादा मिले, लेकिन भगवत कृपा के बिना संत मिलेंगे कैसे? ‘बिनु हरि कृपा मिलहि नहिं संता’। सत्संग से विवेक की प्राप्ति होती है और विवेक से श्रद्धा। गीता में कहा गया है कि श्रद्धा से ज्ञान की प्राप्ति होती है।

    जीवन से जुड़ें हैं ये तीन सूत्र

    जीवन से तीन सूत्र जुड़े हैं- कर्म, विश्वास और संबंध। जीवन के इन तीनों पहलुओं पर बिना विवेक के नहीं चलना चाहिए। विवेक सिर्फ सत्संग से ही आ सकता है। जीवन में बदलाव के लिए सही दिशा में बढ़ने के लिए सत्संग जरूर करें- बिनु सतसंग बिबेक न होई/ रामकृपा बिनु सुलभ न सोई। सत्संग से प्राप्त विवेक हमें बताता है कि हमें सबका द्वार बनना चाहिए। किसी के लिए दीवार नहीं बनानी चाहिए। भक्ति मार्ग पर चलने वालों को किसी की राह का रोड़ा नहीं बनना चाहिए। व्यक्ति किसी की राह का रोड़ा न बने और स्वयं किस राह पर है, इस पर नज़र रखता रहे। अगर व्यक्ति के ज्ञान, बुद्धि और विवेक की दिशा ठीक है तो वह समझ जाएगा कि परमात्मा की निकटता पाने के लिए चाहे कितने ही रास्ते उपलब्ध हों, लेकिन सबसे आवश्यक है कि हमारे भीतर सत्य, प्रेम व करुणा का भाव हो। इसके लिए राम नाम का सहारा लेना ही उपाय है। मैं तो यहां तक कहता हूं कि कोई भी नाम, जिसमें आपकी श्रद्धा है, उसका आसरा लो।

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    प्रस्तुति: राज कौशिक