जानिए वर्धमान से महावीर बनने की कहानी
दिगम्बर मान्यता के अनुसार महावीर ने माता-पिता के जीवित रहते ही उनके समक्ष दीक्षा लने की बात रखी थी।
बचपन में भगवान महावीर को 'वर्धमान' नाम से संबोधित किया जाता था। उनके पिता का नाम सिद्धार्थ था, जो कि वैशाली गणतंत्र के शासक थे। और मां का नाम त्रिशला जोकि धर्मपरायण महिला थीं।
वर्धमान, तीसरी संतान के रूप में जन्मे थे। श्वेताम्बर सम्प्रदाय की मान्यता है कि वर्द्धमान ने यशोदा से विवाह किया था। उनकी बेटी का नाम था अयोज्जा (अनवद्या)। जबकि दिगम्बर सम्प्रदाय की मान्यता है कि वर्धमान का विवाह हुआ ही नहीं था। वे बाल ब्रह्मचारी थे।
महावीर की दीक्षा ग्रहण करने के सम्बंध में जैन ग्रन्थों में दो मान्यताएं प्राप्त होती है। श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार महावीर ने अपने माता-पिता के स्वर्गवासी होने के पश्चात श्रमण होने की भावना अपने भाई नन्दीवर्द्धन और चाचा सुपाश्र्व के समक्ष प्रकट की थी। अन्ततः उनकी अनुमति लेकर तीस वर्ष की अवस्था में महावीर दीक्षित हो गये थे।
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दिगम्बर मान्यता के अनुसार महावीर ने माता-पिता के जीवित रहते ही उनके समक्ष दीक्षा लने की बात रखी थी। माता-पिता ने उन्हें इस तरूण अवस्था में दीक्षित होने से बहुत रोका तथा राजपाट भोगने को कहा किंतु महावीर का विरक्त हृदय इस बात को स्वीकार न कर सका।
वे श्रमण जीवन की श्रेष्ठा के प्रतिपादन द्वारा में माता-पिता को समझा कर तीस वर्ष की अवस्था में दीक्षित हो गए थे। और अध्यात्म-विकास के मार्ग पर वे चल पड़े।
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