मनुष्य की प्रवृत्ति ही स्वतंत्र रहने की है
प्रत्येक जीव को अपनी-अपनी अभिरुचि के अनुरूप कार्य करना चाहिए और अपना जीवन-यापन करना चाहिए। शास्त्रों का आदेश है कि जब कभी हम किसी व्यक्ति के जीवन पर प्रतिबंध लगाते हैं या उसकी गति को रोकने का प्रयास करते हैं तो वह विरोध करता है। अगर सरलता से नदी बहती
मनुष्य की प्रवृत्ति ही स्वतंत्र रहने की है। स्वतंत्रता बहुत विशिष्ट अहसास है। स्वतंत्रता वह अवस्था है जिसमें कोई भी जीव किसी दबाव के बगैर स्वेच्छा से कहीं भी आ-जा सकता है। ऐसा करने में उसे अच्छा भी लगता है, लेकिन जब कभी उसकी स्वतंत्रता पर कोई छोटा-सा आघात होता है तो वह तिलमिला जाता है। प्रकृति के नियमों के अनुसार संसार के प्रत्येक जीव को अपनी-अपनी अभिरुचि के अनुरूप कार्य करना चाहिए और अपना जीवन-यापन करना चाहिए। शास्त्रों का आदेश है कि जब कभी हम किसी व्यक्ति के जीवन पर प्रतिबंध लगाते हैं या उसकी गति को रोकने का प्रयास करते हैं तो वह विरोध करता है। अगर सरलता से नदी बहती रहे तो उस बहती नदी के पानी का हम जैसा चाहें, उपयोग कर सकते हैं, लेकिन ज्योंही उसकी धारा को रोकने का प्रयास करेंगे तो नदी विद्रोह कर उठेगी।
उसी प्रकार हवा के वेग को जब हम जबरन रोकने का प्रयास करते हैं तो उसका वेग बड़ा प्रबल हो जाता है। इन उदाहरणों से मनुष्य की शक्ति अलग होती है, क्योंकि मनुष्य या तो क्रियात्मक बनता है या फिर विध्वंसात्मक बनता है। मनुष्य के जीवन में यही दो संभावनाएं हैं। प्रश्न यह है कि मनुष्य समाज की विपरीत दिशा में क्यों खड़ा हो जाता है? उपेक्षा का भाव मनुष्य बर्दाश्त नहीं कर सकता। यह मनुष्य की कमजोरी है कि वह कभी भी अपनी उपेक्षा को बर्दाश्त नहीं कर सकता। नेपोलियन एक बहुत गरीब घर का लड़का था। उपेक्षा के दंश का विष उसके पूरे शरीर में फैल गया और वह समाज के सामने विद्रोही बनकर खड़ा हो गया। ऐसे बहुत से नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं, जो बचपन में बहुत ही साधारण, सरल, कोमल और मोहक थे, लेकिन वे एक दिन समाज के सीने पर खड़े हो गए। कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारी उपेक्षा से तंग आकर वह विद्रोही बन गए हों। जो बालक कभी ऐसा था कि सभी लोग उसे गोद में उठाकर चूमते थे, आखिर क्या कारण है कि वही मोहक बालक आज समाज में एक विद्रोही, एक आतंक बनकर खड़ा हो गया है? जरूर इसमें कोई भूल हुई है। अभिभावकों और समाज से कोई भूल जरूर हुई है। भविष्य में ऐसी भूल न हो, इसके लिए अभिभावकों और समाज को भूल के बुनियादी कारणों को जानकर उन्हें दूर करना चाहिए।
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