चिंतन धरोहर: चेतना का मूल आधार है अस्तित्व का ज्ञान
जन्म जीवन मरण ये सब भ्रम मात्र हैं। न कोई कभी मरता है और ना कोई कभी जन्म लेता है। जीवन का अस्तित्व एक ऐसा आश्चर्यमय सत्य है कि तुम एक क्षण भी उसका विस्मरण नहीं कर सकते क्योंकि अपने अस्तित्व के बिना यह विस्मरण भी बिल्कुल ही असंभव है।

नई दिल्ली, स्वामी विवेकानंद; जब हम दर्शनशास्त्र का अध्ययन करते हैं, तो हमें यह ज्ञान होता है कि संपूर्ण विश्व एक है। आध्यात्मिक, भौतिक, मानसिक तथा प्राण-जगत भिन्न-भिन्न नहीं हैं। समस्त विश्व, यहां से वहां तक, एक है। बात इतनी ही है कि अलग-अलग दृष्टिकोण से देखे जाने के कारण वह विभिन्न प्रतीत होता है। 'मैं शरीर हूं, इस भावना से जब तुम अपनी ओर देखते हो तो यह भूल जाते हो कि मैं मन भी हूं'। और, जब तुम अपने को मनोरूप में देखने लगते हो, तो तुम्हें अपने शरीरत्व की विस्मृति हो जाती है। विद्यमान वस्तु केवल एक है और वह तुम हो। वह तुम्हें जड़ या शरीर के रूप में अथवा मन या आत्मा के रूप में दिख सकती है।
जन्म, जीवन, मरण ये सब भ्रम मात्र हैं। न कोई कभी मरता है और ना कोई कभी जन्म लेता है। होता इतना ही है कि मनुष्य एक स्थिति से दूसरी स्थिति में चला जाता है। लोगों को मृत्यु से इतना भय पाते देख मुझे बहुत दुख होता है। वे मानो जीवन को पकड़ कर रखने की सतत चेष्टा करते रहते हैं। वे कहते हैं कि मृत्यु के बाद हमें जीवन दो। हमें मरणोत्तर जीवन दो। यदि कोई आए और उन्हें बताए कि मृत्यु के बाद भी वे विद्यमान रखेंगे, तो वे कितने आनंदित होते हैं? वस्तुत: मनुष्य के अमरत्व में मैं अविश्वास ही किस तरह कर सकता हूं? मैं मृत हूं, यह कल्पना ही मैं किस प्रकार कर सकता हूं? तुम यदि अपने को मृत सोचने की कोशिश करो तो देखोगे कि तुम अपने मृत शरीर को देखने के लिए वर्तमान हो ही।
जीवन का अस्तित्व एक ऐसा आश्चर्यमय सत्य है कि तुम एक क्षण भी उसका विस्मरण नहीं कर सकते, क्योंकि अपने अस्तित्व के बिना यह विस्मरण भी बिल्कुल ही असंभव है। मैं हूं, यह अस्तित्व-विषयक ज्ञान ही चेतना का मूल आधार है। जिसका कभी अस्तित्व ही न था, उसकी कल्पना ही कौन कर सकता है? इसलिए चैतन्य का अबाधित अस्तित्व स्वयंसिद्ध सत्य है। इसी कारण अमरत्व की भावना मनुष्य में स्वभावत: विद्यमान रहती है। इसीलिए इस विषय पर किसी विवाद के लिए न कोई गुंजाइश है और ना कोई प्रयोजन।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।