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    Sri Yukteswar Giri Jayanti 2024: जानें, स्वामी श्री युक्तेश्वर जी के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

    Swami Shri Yukteswar Jayanti date बाबाजी ने पश्चिम में योग के प्रसार के प्रशिक्षण हेतु श्रीयुक्तेश्वरजी के पास एक युवा शिष्य (जो श्री श्री परमहंस योगानंद जी थे) भेजने का वचन दिया था। बाबाजी ने उनसे सनातन धर्म और ईसाई पंथ के ग्रंथों में निहित एकता पर संक्षिप्त पुस्तक लिखने के लिए भी कहा था। श्रीयुक्तेश्वरजी ने अल्प समय में ही कैवल्य दर्शनम पुस्तक की रचना पूर्ण कर ली।

    By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 06 May 2024 01:16 PM (IST)
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    Sri Yukteswar Giri Jayanti 2024: जानें, कैवल्य दर्शनम के रचनाकार स्वामी श्री युक्तेश्वर जी के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

    संध्या एस नायर (आध्यात्मिक अध्येता)। Yukteswar Giri Kaivalya Darshanam: मैं तुम्हें अपना अहैतुक प्रेम प्रदान करता हूं- इस वचन के साथ स्वामी श्री युक्तेश्वर गिरि ने अपने आश्रम में युवा मुकुंद का स्वागत किया। यही मुकुंद कालांतर में परमहंस योगानंद के नाम से पश्चिम में योग के जनक तथा लोकप्रिय आध्यात्मिक ग्रंथ योगी कथामृत के लेखक के रूप में प्रसिद्ध हुए। जनवरी 1894 में प्रयागराज के कुंभ मेले में श्री युक्तेश्वर जी की भेंट हिमालय के अमर गुरु महावतार बाबाजी से हुई थी।

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    बाबाजी ने पश्चिम में योग के प्रसार के प्रशिक्षण हेतु श्री   युक्तेश्वर जी के पास एक युवा शिष्य (जो श्री श्री परमहंस योगानंद जी थे) भेजने का वचन दिया था। बाबाजी ने उनसे सनातन धर्म और ईसाई पंथ के ग्रंथों में निहित एकता पर संक्षिप्त पुस्तक लिखने के लिए भी कहा था। श्री युक्तेश्वर जी ने अल्प समय में ही कैवल्य दर्शनम पुस्तक की रचना पूर्ण कर ली।

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    पुस्तक के विभिन्न सूत्रों में श्री युक्तेश्वर    जी ने मनुष्य के चित्त की अवस्थाओं की व्याख्या की है। श्री युक्तेश्वर जी का जन्म 10 मई, 1855 को बंगाल के श्रीरामपुर में हुआ था। उनका घर का नाम प्रियनाथ कड़ार था। वे महान योगी श्री लाहिड़ी महाशय के शिष्य थे। आगे चलकर उन्हें नया नाम स्वामी श्री युक्तेश्वर गिरि मिला। महावतार बाबाजी द्वारा भेजे गए युवा योगानंद जी को उन्होंने एक दशक तक प्रशिक्षण प्रदान किया।

    योगानंद जी ने योगी कथामृत में अपने गुरु के साथ आश्रम में व्यतीत किए अपने जीवन का भावपूर्ण वर्णन किया है। वे लिखते हैं कि उन्होंने अपने गुरुदेव को कभी माया के किसी आकर्षण से ग्रस्त या लोभ व क्रोध अथवा किसी अन्य भावना में उत्तेजित नहीं देखा। वे शांतिरूप थे। उन्होंने अपने मार्गदर्शन में अनेक शिष्यों को क्रिया योग का अभ्यास कराया। जो शिष्य उनका परामर्श चाहते थे, श्री युक्तेश्वर जी उनके प्रति एक गंभीर उत्तरदायित्व का अनुभव करते थे।

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    वे उन्हें कठोर प्रशिक्षण की अग्नि में तपाकर शुद्ध करने का प्रयास करते थे। योगानंद जी अपने प्रिय गुरुदेव के बारे में लिखते हैं, उनके विलक्षण स्वभाव को पूरी तरह पहचानना कठिन था। उनका स्वभाव गंभीर, स्थिर और बाह्य जगत के लिए दुर्बोध था, जिसके सारे मूल्यों को कब के पीछे छोड़कर वे आगे बढ़ गए थे।