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    Sawan 2025: सावन महीने में रोजाना करें ये आसान उपाय, शिवजी की कृपा से बन जाएंगे सारे बिगड़े काम

    By Jagran News Edited By: Pravin Kumar
    Updated: Mon, 14 Jul 2025 01:44 PM (IST)

    श्रावण मास (Sawan 2025 Upay) उपासना का मास है। भगवान शिव श्रीरामभक्ति के आचार्य हैं वे कथातत्व के मर्मज्ञ उपदेष्टा हैं। श्रीपार्वती को उन्होंने श्रीरामकथा प्रदान करके जगत को मानो अमृतपान कराया है। श्रावण मास में उनका विशेष आराधना जगत को विष से बचाने की निष्ठा का कृतज्ञ अभिनंदन है।

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    Sawan 2025: गीत-कहावतों का एक बड़ा संसार सावन से ही सम्बद्ध है

    आचार्य मिथिलेशनन्दिनीशरण (सिद्धपीठ श्रीहनुमन्निवास, अयोध्या)। श्रावण मास प्रारंभ हो गया है। भारतीय कालबोध के अंतर्गत छह ऋतुओं के क्रम में वर्षा ऋतु का प्रथम महीना सावन है। इस मास की पूर्णिमा को श्रवण नक्षत्र का योग होने से इसका नाम श्रावण है। श्रवण-रूप भक्ति को व्यंजित करने से भी यह श्रावण कहलाता है। भारतीय परंपरा में सावन मास विशेष महत्व का है।

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    धार्मिक-पौराणिक व्रत-पर्वों से युक्त यह मास अपनी सांस्कृतिक विशेषताओं के लिए भी उल्लेखनीय है। मधुश्रवा, नागपंचमी, तुलसी-जयंती, श्रावणी उपाकर्म और रक्षाबंधन जैसे उत्सव सावन महीने को हमारी संस्कृति के गहरे विचारों से जोड़ते हैं। ग्रीष्म के ताप को पानी की शीतल फुहारों से मिटाता हुआ सावन, बहन-बेटियों के लिए झूला झूलने का अवसर रचता है।

    गीत-कहावतों का एक बड़ा संसार सावन से ही सम्बद्ध है। इस महीने में सूखी पड़ी धरती तरु-तृणदल से हरी-भरी हो जाती है। महाकवि कालिदास ऋतुसंहार में पावस का वर्णन करते हुए इसका निरूपण करते हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि सदा सुहावनी लगने वाली अयोध्या सावन में विशेष सुंदर हो जाती है- ‘सब बिधि सुखप्रद सो पुरी पावस अति कमनीय।’ उल्लास-विलास से सजे सावन महीने का धार्मिक पक्ष इसे एक अलग गरिमा प्रदान करता है।

    स्कंद महापुराण में सनकादि महर्षि को भगवान शिव ने सावन के माहात्म्य का उपदेश करते हुए कहा है कि बारहों महीनों में सावन मुझे अत्यधिक प्रिय है - “द्वादशस्वपि मासेषु श्रावणो मेऽति वल्लभः। यश्च श्रवणमात्रेण सिद्धिदः श्रावणोप्यतः।।” गोस्वामी तुलसीदास जी ने इसे भक्ति के दो महीनों में एक कहा है- ‘राम नाम बर बरन जुग सावन भादो मास।’ नवधा भक्ति में श्रवण को प्रथम भक्ति कहा गया है।

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    श्रावण मास के जल बिंदुओं की भांति ही सतत श्रवण से चित्त की भूमि में दबे पड़े संस्कार अंकुरित होते हैं। सावन में बादल मधुर वृष्टि करके तपती हुई धरती को आर्द्र कर रहे हैं। धूल शांत हो गई है। प्रकृति चतुर्दिक हरीतिमा को प्रकट कर रही है। ऐसे में आहार-विहार का अनुशासन, भगवान शिव की उपासना एवं विविध व्रतोपवास का विधान सावन महीने में प्राप्त होता है। प्रसिद्ध है कि देवासुर संग्राम में उत्पन्न हलाहल का पान करके भगवान शिव ने समस्त जगत की रक्षा की।

    विष की ज्वाला से रक्षित हुआ कृतज्ञ संसार भगवान शिव की आराधना करता है। श्रीरामचरितमानस के अनुसार, “जरत सकल सुर बृंद बिषम गरल जेहि पान किय। तेहि न भजसि मन मंद को कृपालु संकर सरिस॥” अर्थात देवासुर वृंद को विष की ज्वाला से जलते देख, जिन्होंने असह्य विष का पान कर लिया, उन महादेव शिव के समान कृपाशील कौन होगा।

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    सावन मास के माहात्म्य क्रम में ही यह बात कही गई है कि इस महीने का कोई भी दिन व्रत से रहित नहीं है। स्वयं भगवान शिव सनत्कुमार को बताते हैं कि श्रावण मास में नक्त व्रत अर्थात एक समय भोजन करना चाहिए। प्रतिदन रुद्राभिषेक करना चाहिए- ‘रुद्राभिषेकं कुर्वीत मासमात्रं दिने-दिने।’ किसी एक विशेष प्रिय वस्तु का परित्याग, भगवान शिव का बिल्वपत्र तथा धान्य पुष्प आदि पदार्थों से लक्षार्चन करे।

    लक्ष्मी की कामना से बिल्वपत्र, शांति की कामना से दूर्वा, विद्या की कामना से मल्लिका पुष्प तथा आयु की कामना से चंपा से शिवार्चन करे। पार्थिव आदि लिंग का निर्माण करके उनका विधिपूर्वक पूजन करे। सावन मास में साग का आहार न करे तथा सत्यनिष्ठा से युक्त रहकर धर्मपूर्वक मास व्यतीत करे।

    वस्तुतः श्रावण मास उपासना का मास है। भगवान शिव श्रीरामभक्ति के आचार्य हैं, वे कथातत्व के मर्मज्ञ उपदेष्टा हैं। श्रीपार्वती को उन्होंने श्रीरामकथा प्रदान करके जगत को मानो अमृतपान कराया है। श्रावण मास में उनका विशेष आराधना जगत को विष से बचाने की निष्ठा का कृतज्ञ अभिनंदन है।