कैकेयी का वचन बना रावण की मृत्यु का कारण
राजा दशरथ की तीन रानियां कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी थीं, और उनके चार पुत्र श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुधन। श्रीराम की एक बहन भी थीं। जिनका उल्लेख महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में नहीं है। अयोध्या के राजा दशरथ पुत्र श्रीराम को प्राणों से भी ज्यादा स्नेह करते थे। श्रीराम के
राजा दशरथ की तीन रानियां कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी थीं, और उनके चार पुत्र श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुधन। श्रीराम की एक बहन भी थीं। जिनका उल्लेख महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में नहीं है।
अयोध्या के राजा दशरथ पुत्र श्रीराम को प्राणों से भी ज्यादा स्नेह करते थे। श्रीराम के प्रति उनका स्नेह किसी से छिपा नहीं था। लेकिन दूसरी ओर उनकी पत्नी कैकेयी को दिया हुआ वचन था। जिसके अनुसार उन्होंने भरत को अयोध्या का राजा और श्रीराम को 14 वर्ष के वनवास जाने का वचन दे चुके थे। लेकिन यह बात श्रीराम को पता नहीं थी।
जब श्रीराम को पता चली कि उन्हें 14 वर्ष के वनवास के लिए जाना होगा, तब वह बिल्कुल भी चिंतित नहीं हुए। वह जानते थे कि उनका वन जाना लोगों के लिए हितकारी है। रावण का अंत। उनके कई भक्तों का उद्धार। ऐसे कई कारण थे, जो श्रीराम जानते थे। वह जानते थे कि सौतेली माता को अयोध्या के राजा द्वारा दिए गए वचन रावण जैसे राक्षस के अंत का कारण है। जिसके लिए उन्होंने देवरूप से मनुष्य रूप में जन्म लिया है।
उधर, जब से कैकेयी को यह वचन दशरथ दे चुके थे। तभी से वह अपने आप को माफ नहीं कर पा रहे थे। उनकी तबियत दिनों दिन बिगड़ती जा रही थी। पिता की तबियत के बारे में सुन, श्रीराम उनके पास पहुंचे।
श्रीराम का राजा दशरथ से संवाद
जैसे-जैसे राजा दशरथ की मृत्यु निकट आ रही थी, वैसे-वैसे उनको उनके पूर्व कर्म याद आ रहे थे। उन्हें याद आ रहा था ऋर्षिकुमार श्रवण कुमार की हत्या, ऋर्षि कुमार के माता-पिता द्वारा दिया गया पुत्र शोक का शाप।
उस समय राजा दशरथ का एक-एक पल बहुत ही दुःख भरा बीत रहा था। श्रीराम वनवास के लिए जाने की तैयारी कर रहे थे उनके साथ माता सीता और अनुज लक्ष्मण भी थे। श्रीराम अपने पिता दशरथ के दर्शन के लिए उनके शयनकक्ष में पहुंचे। मुरझाए हुए चेहरे का मुखमंडल, आंखों में आंसू और चेहरे पर भीनी सी मुस्कान के साथ उनके मुख पर एक ही नाम, राम-राम-राम, बार-बार राजा दशरथ दोहरा रहे थे। वह दुःखी थे।
श्रीराम ने पहले अपने पिता के चरण स्पर्श किए। पास ही बैठीं माता कैकेयी को भी प्रणाम किया। लेकिन राजा दशरथ, श्रीराम की तरफ देख भी नहीं रहे थे। यह देखकर श्रीराम को चिंता होने लगी। उन्होंने अपनी सौतेली माता कैकेयी से पूछा, 'पिताश्री मेरे साथ इस तरह का व्यवहार क्यों कर रहे हैं।'
तब कैकेयी ने उत्तर दिया, 'राजा दशरथ ने रणभूमि में मेरी वीरता से प्रसन्न होकर दो वचन मांग लेने के लिए कहे थे। लेकिन मैंने उन्हें आज मांगा है। पहला कि भरत, अयोध्या का राजा बने और दूसरा राम तुम 14 वर्ष के वनवास पर जाओ। इस बात से राजा दशरथ काफी दुःखी हैं।' श्रीराम ने कहा, 'मुझे कोई समस्या नहीं, मैं वनवास पर जाने के लिए तैयार हूं।'
अंततः श्रीराम अपने अनुज और पत्नी के साथ वन जाने लगे। अयोध्या की प्रजा दुःखी थी। सभी श्रीराम से कह रहे थे कि 'मत जाओ हे राम।' लेकिन श्रीराम वन की ओर चले गए।
[साभार: नई दुनिया]