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    Ram Navami 2025: कब और क्यों मनाई जाती है रामनवमी? यहां जानें सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व

    By Jagran News Edited By: Pravin Kumar
    Updated: Mon, 31 Mar 2025 12:29 PM (IST)

    कौशल्या जी ने कहा कि हे प्रभु! तुम्हारे प्रत्येक रोम में माया से रचित अनेकानेक ब्रह्मांडों का वास है। अत्यंत धीरबुद्धि वाले विवेकी लोगों की बुद्धि भी स्वीकार नहीं कर सकेगी कि आप मेरे गर्भ में कैसे आ गए? प्रभु आपका यह विराट रूप हमसे देखा नहीं जा रहा है कृपा कर आप बालकों वाली लीला कीजिए ताकि मैं आपको हृदय से लगा सकूं।

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    Ram Navami 2025: रामनवमी का धार्मिक महत्व

    स्वामी मैथिलीशरण (संस्थापक अध्यक्ष, श्रीरामकिंकर विचार मिशन)। धन्य है भारत की यह पवित्र भूमि, जहां श्रीराम प्रकट हुए। श्रुति वाक्यों का चिंतन-मनन करना, श्रुति सम्मत कार्य करना, कर्म को कर्मयोग बनाने के लिए प्रत्येक कार्य के फल को भगवान की कृपा का फल मानना और उन्हें ही अर्पित करना, सांसारिक कामनाओं का दृष्टा बने रहना, संसार और संसार से मिलने वाले सुखों की अल्पायु और सीमा को समझना, अपना स्वरूप समझना...। श्रीराम के दिव्य स्वरूप को समझने और उसे धारण कर धन्य होने के लिए आवश्यक है यह क्रम। लंबी साधना का फल होता है भगवान का प्राकट्य।

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    देखराबा मातहि निज अद्भुत रूप अखंड।

    रोम रोम प्रति लागे कोटि कोटि ब्रह्मण्ड।।

    श्रीरामचरितमानस इसलिए सारे ग्रंथों का सार है, क्योंकि श्रीराम वेदांतवेद्यं विभुं हैं। सारे आचार्य राममय हैं। सारे दर्शन और मत इससे सहमत हैं कि राम निर्गुण और सगुण दोनों हैं। वे ही अजन्मे हैं, वे ही जन्म लेते हैं।

    भगवान श्रीराम जब चार भुजाओं से युक्त प्रकट हुए, शरीर पर दिव्य आभूषण और वनमाला धारण किए हुए थे। सुंदर और विशाल नेत्र। शरीर ऐसा, जैसे जल से भरे हुए श्रावण माह के मेघ हों। माता कौशल्या ने दोनों हाथ जोड़कर अपने नन्हे पुत्र को हे अनंत! कहकर संबोधित किया। वे इतनी भावुक थीं कि रोमावलि पुलकित हो रही थी। वात्सल्य और तत्व का संगम हो रहा था।

    कौशल्या जी ने कहा कि हे प्रभु! तुम्हारे प्रत्येक रोम में माया से रचित अनेकानेक ब्रह्मांडों का वास है। अत्यंत धीरबुद्धि वाले विवेकी लोगों की बुद्धि भी स्वीकार नहीं कर सकेगी कि आप मेरे गर्भ में कैसे आ गए? प्रभु, आपका यह विराट रूप हमसे देखा नहीं जा रहा है, कृपा कर आप बालकों वाली लीला कीजिए, ताकि मैं आपको हृदय से लगा सकूं। भगवान रोने लगे और उनका रोना ही अयोध्या के आनंद का कारण हो गया। तुलसीदास जी को लगा कि अब तो वाद्य बजने लगेंगे, शोर-शराबा हो जाएगा, जरा इनके बारे में एक अर्धाली तो लिख दें, तब बोले : यह चरित जे गाबहिं हरि पद पावहिं ते न परहिं भवकूपा।।

    अर्थात इनके दिव्य चरित्र को जो लोग गाएंगे, सुनेंगे अथवा इनकी लीलाओं का अनुमोदन करेंगे, वे लोग इस संसार के कूप में न फंसकर आनंद के उस महासागर में डूब जाएंगे, जहां से कोई पुन: लौटने की इच्छा नहीं करता है। शिशु के रुदन का स्वर सुनकर सारी दासियां और रानियां आनंद में इधर-उधर दौड़ती दिखाई देने लगीं। जब दशरथ जी ने सुना कि पुत्र का जन्म हुआ है तो भक्त दशरथ जी को उस दिन ज्ञानियों वाला सुख मिला।

    दसरथ पुत्र जन्म सुनि काना। मानहुं ब्रह्मानंद समाना।।

    दशरथ जी को पहली बार ब्रह्मानंद के सुख का अनुभव हुआ। उन्होंने अपनी बुद्धि को धैर्य बंधाकर स्वयं को स्थिर किया। बाजे बजने लगे। गुरु वशिष्ठ के द्वारा नंदीमुख श्राद्ध किया गया। आकाश से देवता पुष्पवर्षण करने लगे। अवधपुरी की सौभाग्यवती स्त्रियां भगवान के दर्शनों की लालसा के वशीभूत होकर सामान्य शृंगार करके ही चल दीं। स्वयं को सजाने की इच्छा का अभाव ही तो भगवान के दर्शन की लालसा का सुफल है।

    कैकेयी जी से श्रीभरत और सुमित्रा जी के गर्भ से श्रीलक्ष्मण और शत्रुघ्नजी ने जन्म लिया। गुरु वशिष्ठ ने श्रीराम का नाम पहले रखा और श्रीलक्ष्मण का अंत में, भरत और शत्रुघ्न को श्रीराम तथा लक्ष्मण के नामों से संपुटित कर दिया। श्रीलक्ष्मण जगत के और राम के सुख और आनंद के और शेष के रूप में सारी पृथ्वी के आधार हैं।

    भरत सारी धरती का भरण-पोषण करते हैं। जिनका नाम मात्र लेने से शत्रुओं का नाश हो जाता है, वे हैं शत्रुघ्न। मौन ही ऐसा शस्त्र है, जिससे शत्रुओं पर विजय प्राप्त की जा सकती है। वाद-विवाद से तो क्रिया-प्रतिक्रिया का ही विस्तार होता है। भगवान राम का जन्म जब-जब होगा, तो ये तीन विग्रह साथ में अवश्य ही अवतरित होंगे। श्री जनकनंदिनी जानकी भी एक मास के पश्चात अवतरित होंगी। मांडवी, उर्मिला, श्रुतिकीर्ति भी जन्म लेंगी। ये सब रामजन्म के हेतु हैं।

    तुलसीदास जी ने बालकराम के रूप का जो दिव्य वर्णन किया है, उसका लालित्य अद्भुत है। भगवान के जन्म का आनंद लेने और उनके रूपामृत को पीने के लिए सूर्य अयोध्या में एक महीने तक ठहर गए। उदय और अस्त की प्रक्रिया बाधित हो गई। विस्मृति में ही तो स्मृति की साधना का परम सुख है, पर यहां जो अद्वितीयता है, वह यह है कि सूर्य कैसे रुके, क्यों रुके और क्या हुआ इस रहस्य को कोई भी जान नहीं सका।

    शंकर जी अपने शिष्य काकभुशुंडि के साथ अयोध्या की वीथियों में विचर रहे हैं। सजी हुई अयोध्या का सौंदर्य और सुगंध का लाभ कौन नहीं ले रहा है। सारे तीर्थ अयोध्या में आ गए। देवताओं की भीड़ ऐसी कि आकाश दिखाई नहीं दे रहा है। दिन और रात कब हुआ, लोगों का पता ही नहीं चला। बधाइयों को गाने के लिए राग-रागिनियों ने सुंदर रूप धारण करके अपने नामों की सार्थकता जताई।

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    जिसको देखा नहीं जा सकता, माया रहित है, निर्गुण है, अजन्मा है, आज वही प्रेमाभक्ति के वशीभूत होकर माता की गोद में आ गया। शंकर जी ने देखा कि करोड़ों कामदेवों की सुंदरता को लजाने वाले बालक रूप में भगवान। नीलवर्ण तन, छोटे-छोटे गुलाबी चरणों पर नाखून ऐसे लग रहे हैं जैसे कमल के पत्तों पर ओस की बूंदे चमक रही हों। तलवों में वज्र, ध्वजा, अंकुश सुशोभित है। वज्र न हो तो रावण से युद्ध और वनमार्ग में कैसे चलते? और यह रघुकुल की ध्वजा आगे चलकर रामराज्य की पताका बनेगी।

    मर्यादा पुरुषोत्तम हैं तो अंकुश तो होगा ही, पर श्रीराम अंकुश दूसरों पर नहीं लगाते, उसका प्रयोग अपने लिए करते हैं। चरणों में नूपुर हैं, जिनके बजने से मुनियों का ध्यान भी डिग जाए। वह ध्यान भी क्या, जिसमें भगवान के चरणों के नूपुरों की ध्वनि न सुनाई दे। वह तो जड़ता है। ध्यान योग तब बनता है, जब वह भगवान के लिए हो और उनका रूप, स्वर, सुगंध, चाल, हंसना, बोलना सब अनुभव हो। कमर में करधनी है, नाभि गंभीर और सुंदर है, जो किसी का भी चित्त हर ले। नाभि के ऊपर पेट पर तीन रेखाएं हैं। यही वे रेखाएं हैं, जिनकी मर्यादाओं के ऊपर श्रीराम, श्रीसीता और श्रीलक्ष्मण चले। राम के जीवन, शरीर, सोच, संकल्प में कुछ भी अनावश्यक और अतिरेक नहीं है। सब सार्थक है।

    भुजाएं विशाल हैं। हृदय पर बाघ का नाखून लटककर अनूठी शोभा दे रहा है, जो आगे चलकर विश्वामित्र जी के साथ जाते समय काम आया। यह बघनख किसी को डराने या भयभीत करने के लिए नहीं, बल्कि सबको निर्भीकता प्रदान करने के लिए है। कंठ पर शंख जैसी शोभा है। योग दृष्टि से ये कुंभक, पूरक और रेचक की प्रतीक रेखाएं हैं। भगवान की ठोढ़ी बहुत सुंदर और लाल लाल होंठ हैं।

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    भगवान की सुंदर नासिका लक्ष्यभेद की दिशा में सीधी है। दंत पंक्तियां कुंद कली की तरह हैं। कान और गाल बहुत सुंदर हैं। मन को चुराने बाला कार्य भगवान तब करते हैं, जब शुद्ध शब्द न बोलकर तोतली भाषा में बोलते हैं। पीले रंग का झीना कपड़ा है, जिसकी झंगुलिया भगवान पहने हैं, उसमें उनका सुंदर शरीर दिख रहा है। भगवान के सौंदर्य का वर्णन अनिर्वचनीय है।

    सारी सृष्टि,सारे ब्रह्मांड, सारा खगोल, भूगोल, तारा मंडल सब कुछ राम में ही है। कुछ बाहर नहीं है। वही रूप भगवान श्रीकृष्ण ने माता यशोदा को दिखाया और वही रूप माता कौशल्या को श्रीराम ने दिखाया। राम और कृष्ण की एकता सूर्य और चंद्र की एकता की भांति तदरूप है।