Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Pitru Paksha 2024: क्यों किया जाता है पिंडदान और क्या है पितरों का तर्पण करने का धार्मिक महत्व?

    By Jagran News Edited By: Pravin Kumar
    Updated: Sun, 15 Sep 2024 03:37 PM (IST)

    जन्मदाता माता-पिता को मृत्यु-उपरांत (Pitru Paksha 2024) लोग विस्मृत न कर दें इसलिए उनका श्राद्ध करने का विशेष विधान बताया गया है। भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार मनुष्य पर तीन प्रकार के प्रमुख ऋण माने गए हैं-पितृ-ऋण देव-ऋण तथा ऋषि-ऋण। इनमें पितृ-ऋण सर्वोपरि है। पितृ-ऋण में पिता के अतिरिक्त माता तथा वे सब बुजुर्ग भी सम्मिलित हैं जिन्होंने हमें अपना जीवन धारण करने तथा उसका विकास करने में सहयोग दिया।

    Hero Image
    Pitru Paksha 2024: कब से शुरू हो रहा है पितृ पक्ष

    स्वामी अवधेशानन्द गिरि (जूनापीठाधीश्वर आचार्यमहामंडलेश्वर)। अर्पण, तर्पण और समर्पण भारतीय संस्कृति के आधारभूत स्तंभ हैं। आज हम जो कुछ भी हैं, यह माता-पिता और पूर्वजों के आशीर्वाद से हैं, इसलिए पितृपक्ष आत्म-अस्तित्व और जड़ों से जुड़ने का पाक्षिक दिव्य महोत्सव है। दैव सत्ता की ही भांति सामर्थ्यवान और अनुग्रहशील परम कृपालु पितृसत्ता हम सभी का सर्वथा मंगल करे। इस अवसर पर अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा भाव रखें। वेदों में कहा गया है : 'पुनंतु मा पितर: सौम्यास: पुनंतु मा पितामहा: पुनंतु प्रपितामहा: पवित्रेण शतायुषा। पुनंतु मा पितामहा: पुनंतु प्रपितामहा: पवित्रेण शतायुषा विश्वमायुर्व्यश्नवै।।'

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    पितृ परिवार की प्रसन्नता देखकर प्रसन्न होते हैं। पितृ पक्ष में प्रसन्न रहकर दान-पुण्य करना चाहिए। 'श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌ ...' (जो श्रद्धा से किया जाए, वह श्राद्ध है।) अपने पूर्वजों के प्रति स्नेह, विनम्रता, आदर व श्रद्धा भाव से विधिपूर्वक किया जाने वाला मुक्त कर्म ही श्राद्ध है। यह पितृ ऋण से मुक्ति पाने का सरल व सहज उपाय है। इसे पितृयज्ञ भी कहा गया है। सनातन धर्म में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना गया है, इसलिए हमारे धर्म शास्त्रों में पितरों का उद्धार करने के लिए पुत्र की अनिवार्यता मानी गई है।

    यह भी पढें: 2 शुभ योग में मनाई जाएगी विश्वकर्मा पूजा, प्राप्त होगा दोगुना फल

    जन्मदाता माता-पिता को मृत्यु-उपरांत लोग विस्मृत न कर दें, इसलिए उनका श्राद्ध करने का विशेष विधान बताया गया है। भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार मनुष्य पर तीन प्रकार के प्रमुख ऋण माने गए हैं-पितृ-ऋण, देव-ऋण तथा ऋषि-ऋण। इनमें पितृ-ऋण सर्वोपरि है। पितृ-ऋण में पिता के अतिरिक्त माता तथा वे सब बुजुर्ग भी सम्मिलित हैं, जिन्होंने हमें अपना जीवन धारण करने तथा उसका विकास करने में सहयोग दिया।

    भारत के पास कोई शाश्वत, सार्वभौमिक, समीचीन, सत्य को उजागर करने में और अपने पूर्वजों के साथ संबंध स्थापित करने में कोई यदि वैज्ञानिक विधि है तो उसका नाम है-श्राद्ध विधि और तर्पण-विधि, जो गंगा के किनारे अथवा तीर्थों में होती है। वो ब्रह्मकपाल में होती है, मेघंकर में होती है, लोहागर में होती है, सिद्धनाथ में होती है, प्रयाग में होती है, पिंडारक में होती है, लक्ष्मणबाण में होती है, गया में होती है अथवा जहां-जहां अन्य स्थान है, वहां होती है। गंगा के जल में वह तत्व है, जो सीधा पितरों के साथ संवाद करा देता है।

    श्राद्धों का पितरों के साथ अटूट संबंध है। पितरों के बिना श्राद्ध की कल्पना नहीं की जा सकती। सनातन धर्म में ऋषियों ने वर्ष में एक पक्ष को पितृपक्ष का नाम दिया, जिस पक्ष में हम अपने पितरेश्वरों का श्राद्ध, तर्पण, मुक्ति हेतु विशेष क्रिया संपन्न कर उन्हें अर्घ्य समर्पित करते हैं। यदि किसी कारण से उनकी आत्मा को मुक्ति प्रदान नहीं हुई है तो हम उनकी शांति के लिए विशिष्ट कर्म करते हैं, जिसे 'श्राद्ध' कहते हैं। श्राद्ध पितरों को आहार पहुंचाने का माध्यम मात्र है। मृत व्यक्ति के लिए जो श्रद्धायुक्त होकर तर्पण, पिंड, दानादि किया जाता है, उसे 'श्राद्ध' कहा जाता है। श्राद्ध प्रथा वैदिक काल के बाद शुरू हुई। उचित समय पर शास्त्रसम्मत विधि द्वारा पितरों के लिए श्रद्धा भाव से, मंत्रों के साथ जो दान-दक्षिणा आदि दिया जाए, वही श्राद्ध कहलाता है।

    यह भी पढें: क्यों भगवान शिव और विष्णु के सहयोगी नाग देवता को कहा जाता है क्षेत्रपाल ?

    श्राद्ध पूर्वजों के प्रति सच्ची श्रद्धा का प्रतीक है। हिंदू धर्म के अनुसार, प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारंभ में माता-पिता, पूर्वजों को नमस्कार या प्रणाम करना हमारा कर्तव्य है। हमारे पूर्वजों की वंश परंपरा के कारण ही हम आज यह जीवन देख रहे हैं। इस जीवन का आनंद प्राप्त कर रहे हैं। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्षभर तक प्रसन्न रहते हैं। धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिंडदान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है। श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिंडदान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे। इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। यही कारण है कि हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक हिंदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य करने के लिए कहा गया है।