Nirjala Ekadashi 2025: निर्जला एकादशी व्रत से मिलते हैं कई चमत्कारी लाभ, रखें इन बातों का ध्यान
उपवास केवल शारीरिक प्रक्रिया नहीं है यह मानसिक शुद्धि भी होती है। उपवास से शरीर हल्का होता है साथ ही मन स्वाभाविक रूप से अधिक सजग और तीक्षण हो जाता है। आप देखेंगे कि उपवास के दिनों में आपकी सोच अधिक स्पष्ट हो जाती है और आप अपनी भावनाओं तथा विचारों को बेहतर तरीके से समझने लगते हैं।

श्री श्री रविशंकर, आध्यात्मिक गुरु, आर्ट ऑफ लिविंग। भारतीय संस्कृति में उपवास को एक आध्यात्मिक अनुशासन के रूप में देखा गया है, लेकिन समय के साथ इसकी मूल भावना कहीं खो सी गई है। बहुत से लोग उपवास को ईश्वर को प्रसन्न करने का एक मार्ग मानते हैं, लेकिन मेरी दृष्टि में उपवास का उद्देश्य कहीं अधिक व्यावहारिक और गहरा है। यह शरीर और मन की शुद्धि, सजगता और आंतरिक संतुलन को प्राप्त करने का एक सशक्त माध्यम है। यह जान लें कि हम ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए नहीं, बल्कि अपने शरीर को शुद्ध करने के लिए उपवास करते हैं। हमारा शरीर एक अद्भुत यंत्र है, जो निरंतर कार्य करता रहता है।
पाचन तंत्र दिन-रात भोजन को पचाने में लगा रहता है। उपवास एक अवसर है, इस यंत्र को थोड़ी देर के लिए विराम देने का। जब हम उपवास करते हैं, तो लीवर, पेट और अग्न्याशय जैसे महत्त्वपूर्ण अंगों को तरोताजा होने का समय मिलता है। उपवास शरीर में जमा विषाक्त तत्वों को बाहर निकालने में मदद करता है और एक नई ऊर्जा का संचार करता है। मैंने हज़ारों साधकों में यह अनुभव देखा है कि उपवास के बाद वे अधिक हल्का, सक्रिय और स्वस्थ अनुभव करते है।
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अगर उपवास के दौरान भी मन बार-बार स्वाद और खाने की ओर जा रहा हो, तो फिर वह उपवास नहीं रह जाता - वह बस एक दिखावा बन जाता है। ऐसा तो आपके साथ भी कभी न कभी हुआ होगा कि जब आप कोई काम मन से कर रहे हों, कोई लक्ष्य पूरा करना हो, तो भूख ही नहीं लगती है। खाना भूल जाते हैं।
ठीक वैसे ही, जब मन ईश्वर में तल्लीन होता है, प्रेम में डूबा होता है, तब भोजन करना याद ही नहीं रहता। यही असली उपवास है। हमेशा मन और शरीर की बनी बनाई परिधि में सीमित रहना ठीक नहीं। कभी-कभी साल में कुछ समय अपने इन दायरों से बाहर आना आवश्यक है। तभी हमें अपने अंदर की छिपी हुई क्षमताओं का पता चलता है।
हमें यह पता चलता है कि हमारा शरीर पत्थर की तरह जड़ नहीं है, उसमें लचीलापन है, और वह नई परिस्थितियों के अनुसार ढल सकता है। लेकिन इस लचीलेपन को हमने भुला दिया है। उपवास जैसी साधनाएं हमें अनुभव कराती हैं कि मन शरीर से कहीं अधिक शक्तिशाली है।
उपवास केवल शारीरिक प्रक्रिया नहीं है, यह मानसिक शुद्धि भी होती है। उपवास से शरीर हल्का होता है साथ ही मन स्वाभाविक रूप से अधिक सजग और तीक्षण हो जाता है। आप देखेंगे कि उपवास के दिनों में आपकी सोच अधिक स्पष्ट हो जाती है, और आप अपनी भावनाओं तथा विचारों को बेहतर तरीके से समझने लगते हैं। यह सजगता हमें आत्मनिरीक्षण की ओर ले जाती है।
दुनिया भर के सभी धर्मों में उपवास को प्रार्थना के साथ क्यों जोड़ा जाता है? कई लोग अनुभव करते हैं कि उपवास के दौरान ध्यान अधिक गहरा और प्रार्थना अधिक प्रभावशाली होती है। इसका कारण यही है कि जब शरीर शुद्ध होता है और मन शांत होता है, तब सत्व गुण की वृद्धि होती है। सत्व गुण के होने से हमारी प्रार्थना खिल उठती है।
उपवास का अर्थ है इंद्रियों पर विजय। उपवास केवल भोजन से दूर रहना नहीं है, यह उन सभी विकर्षणों से दूर रहने की एक साधना है, जो हमें हमारे आत्मस्वरूप से अलग करती हैं। यह आत्मा को चित्त की परतों से मुक्त करने की प्रक्रिया है। मैं हमेशा यह सलाह देता हूं कि उपवास को संतुलन के साथ अपनाएं।
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यह एक आंतरिक संवाद की प्रक्रिया है - शरीर से, मन से और आत्मा से। यदि शरीर उपवास के लिए तैयार नहीं है, तो उसे मजबूर करना उचित नहीं। यदि किसी को स्वास्थ्य संबंधी समस्या है, तो उपवास से पहले चिकित्सक, विशेषकर आयुर्वेदिक सलाहकार से परामर्श अवश्य लीजिए।
उपवास, जब सही दृष्टिकोण से किया जाए, तो यह जीवन को रूपांतरित करने वाली साधना बन सकता है। उपवास कोई रूढ़ि या मजबूरी नहीं है, अपितु यह एक अवसर है अपने भीतर की यात्रा पर निकलने का। यह हमें यह समझने का अवसर देता है कि हमारे जीवन की सच्ची शक्ति बाहर नहीं, भीतर है।
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