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    Mahakumbh 2025: साधु संत और ऋषि-मुनियों का संगम है महाकुंभ, यहां पढ़ें इसका धार्मिक महत्व

    Updated: Mon, 06 Jan 2025 04:42 PM (IST)

    सनातन धर्म ऐसी दिव्य परंपरा है जो कालांतर से आस्था और मानवता के सर्वोत्तम आदर्शों को संगठित करती आ रही है। सनातन धर्म की जड़ें इतनी गहरी हैं कि यह न केवल व्यक्ति को बल्कि समाज और राष्ट्र को भी दिशा प्रदान करता है। इसके भीतर निहित प्रत्येक तत्व परंपरा उत्सव पर्व अनुष्ठान का उद्देश्य जीवन को श्रेष्ठ पवित्र दिव्य बनाना है। कुंभ मेला सनातन धर्म का अभिन्न अंग है।

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    साधु संत समाज का करते हैं मार्गदर्शन

    स्वामी चिदानंद सरस्वती (परमाध्यक्ष, परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश)। कुंभ मेला हमारी गौरवशाली संस्कृति का अभिन्न अंग है, जो भारतीय समाज के धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन के प्रत्येक पहलू को संजोए हुए है। यह मेला केवल एक धार्मिक आयोजन या स्नान का पर्व नहीं, बल्कि समाज के सुधार, सामाजिक समरसता और आध्यात्मिक उन्नति का महत्वपूर्ण मंच है। कुंभ मेला भारतीय संस्कृति की धरोहर है, जो प्रत्येक पीढ़ी को अपनी जड़ों से जुड़ने का अवसर प्रदान करता है। यह मेला भारतीय संस्कृति और समाज के लिए एक अद्भुत अवसर है, जहां समस्त समाज के समक्ष कई महत्वपूर्ण समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया जाता था। यहां संत-महात्मा और ऋषि-मुनियों का संगम होता है, जो समाज का मार्गदर्शन और व्याप्त समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करते थे।

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    सनातन धर्म, ऐसी दिव्य परंपरा है, जो कालांतर से आस्था और मानवता के सर्वोत्तम आदर्शों को संगठित करती आ रही है। सनातन धर्म की जड़ें इतनी गहरी हैं कि यह न केवल व्यक्ति को, बल्कि समाज और राष्ट्र को भी दिशा प्रदान करता है। इसके भीतर निहित प्रत्येक तत्व, परंपरा, उत्सव, पर्व, अनुष्ठान का उद्देश्य जीवन को श्रेष्ठ, पवित्र और दिव्य बनाना है। कुंभ मेला, सनातन धर्म का अभिन्न अंग है।

    Pic Credit-AI

    आस्था का प्रतीक है महाकुंभ

    कुंभ मेला, भारतीय समाज में व्याप्त शुद्धता, समानता, भाईचारा और दिव्यता के संदेश को प्रसारित करता है। प्रत्येक 12 वर्ष में आयोजित होने वाला कुंभ मेला न केवल व्यक्तिगत आस्था, बल्कि सामाजिक एकता का भी प्रतीक है। यहां सभी धर्म, जाति, वर्ग और समुदायों के लोग एकत्र होते हैं। इस एकता में न केवल सामाजिक समरसता की भावना होती है, बल्कि यहां भारतीय संस्कृति के मूल्यों की भी अभिव्यक्ति होती है।

    कुंभ मेला वह अवसर है, जिसमें हम तनाव और अपनी व्यक्तिगत समस्याओं को त्यागकर आत्मशुद्धि के लिए गंगा स्नान करते हैं, ताकि हमारी आत्मा पवित्र हो सके और हम अंतर्मन की गहराई में जाकर आत्म साक्षात्कार करने का प्रयास करें। साथ ही इस मेले में एक-दूसरे के प्रति प्रेम, सम्मान और भाईचारे का भाव जाग्रत होता है। यही है सनातन धर्म का संदेश 'वसुधैव कुटुंबकम अर्थात संपूर्ण पृथ्वी एक परिवार है'। कुंभ मेला भारतीय संस्कृति का प्रतीक है, क्योंकि यहां प्रत्येक व्यक्ति अपने दायित्वों को आत्मसात कर धर्म के प्रति जागरूक होता है।

    सनातन धर्म के अनुसार, जीवन केवल भौतिक सुखों के लिए नहीं है, बल्कि आत्मा के शुद्धीकरण और जीवन को उच्चतम आदर्शों पर जीने के लिए है। कुंभ मेले में श्रद्धालु कल्पवास कर इस भाव को जाग्रत करते हैं और जीते हैं। कुंभ मेला सिखाता है कि हर व्यक्ति में समान दिव्यता और परमतत्व का समावेश है, फिर चाहे वह किसी भी जाति, धर्म या समुदाय से हों।

    कुंभ मेला समाज में प्रेम, एकता, भाईचारा और रिश्तों के दिव्य संबंध का उदाहरण भी है। यहां लोग अपनी सभी भौतिक चिंताओं को त्यागकर आत्मा के उत्थान और मानवता की सेवा के लिए आते हैं। कुंभ मेला सिखाता है कि अगर हम समाज के हर व्यक्ति से प्रेम और सम्मान नहीं करेंगे तो हमारी संस्कृति व आस्थाएं अधूरी रहेंगी।

    एक महोत्सव है कुंभ मेला

    यह भारतीय संस्कृति के मूल्यों को जीवंत और जाग्रत रखने का सशक्त माध्यम है। यही कारण है कि कुंभ मेला केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि दिव्य महोत्सव है, क्योंकि यहां सब समान और सबका सम्मान है। यहां चारों ओर एक ही भाव व्याप्त होता है कि किस माध्यम से आने वाले श्रद्धालुओं की सेवा करें, क्योंकि हम सभी एक ही ब्रह्मांड का अंग हैं और हमारा दायित्व है कि दूसरों का सहयोग करें और उनके सुख-दुख में भागीदार बनें। यह मेला मानवता के उच्चतम आदर्शों का प्रतीक है, जो बताता है कि सच्ची पूजा और धर्म वही है, जो दूसरों के कल्याण के लिए काम करे। यहां आकर श्रद्धालु केवल आध्यात्मिक उन्नति नहीं करते, बल्कि एक-दूसरे की मदद करने और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का संकल्प भी लेते हैं।

    कुंभ मेला एक आदर्श उदाहरण करता है प्रस्तुत

    कुंभ मेला एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करता है कि कैसे विभिन्न संस्कृति और पृष्ठभूमि के लोग एकजुट होकर आध्यात्मिक एवं सामाजिक उद्देश्य को पूरा करते हैं। यह दिखाता है कि कैसे हजारों वर्ष पुरानी आस्थाएं न केवल धार्मिक जीवन को, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय जीवन को भी प्रभावित करती हैं। यह मेला एकात्मता, समरसता और परंपराओं के संरक्षण का प्रतीक है, साथ ही यह मानवता और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी का भी संदेश देता है।

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    कुंभ मेला हर 12 वर्ष में आयोजित होने वाला ऐसा अद्वितीय धार्मिक एवं सामाजिक आयोजन है, जो भारतीय सभ्यता व संस्कृति के अस्तित्व को जीवित रखता है और उसे समय के साथ समृद्ध बनाता है। इस बार का कुंभ तो अद्भुत, अलौकिक और अवर्णनीय होने जा रहा है। भारत के यशस्वी, ऊर्जावान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाया है। उन्होंने पूरी शक्ति लगा दी कि सनातन का पर्व समरसता एवं एकता का पर्व बने और संगम के तट से संगम का संदेश प्रसारित हो।

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