प्रेम ही वह गुण है, जो इंसान को इंसान से जोड़े रखने में समर्थ है
प्रेम के बिना मनुष्य जीवन का कोई अस्तित्व ही नहीं है और न ही प्रेम के अभाव में दुनिया की कल्पना की जा सकती है।
प्रेम के बिना मनुष्य जीवन का कोई अस्तित्व ही नहीं है और न ही प्रेम के अभाव में दुनिया की कल्पना की जा सकती है। प्रेम ही वह गुण है, जो इंसान को इंसान से जोड़े रखने में समर्थ है। श्रीराम, महावीर, श्रीकृष्ण, बुद्ध के संदेशों का सार एक ही है, शांति, प्रेम और भाईचारा। दुनिया में ऐसे तमाम उदाहरण मौजूद हैं, जहां प्रेम को एक ऊर्जा, प्रेरणा और सबक के रूप में देखा गया। किसी गांव में दो भाई रहते थे। बड़े की शादी हो गई थी। उसके दो बच्चे भी थे, लेकिन छोटा भाई अभी कुंवारा था। दोनों साझा खेती करते थे। एक बार दोनों ने मिलकर फसल काटी और दोनों ने आधा-आधा गेहूं बांट लिया। अब उन्हें खेत से घर ले जाना था, लेकिन रात हो जाने की वजह से यह काम अगले दिन होना था।
रात में दोनों को फसल की रखवाली के लिए खेत पर ही रुकना था। दोनों को भूख भी लगी थी। दोनों ने बारी-बारी से खाने की सोची। पहले बड़ा भाई खाना खाने घर चला गया। छोटा भाई खेत पर ही रुक गया। वह सोचने लगा कि भैया की शादी हो गई है, उनका परिवार है, इसलिए उन्हें ज्यादा अनाज की जरूरत होगी। यह सोचकर उसने अपने ढेर से कई टोकरी गेहूं निकालकर बड़े भाई वाले ढेर में मिला दिया। बड़ा भाई थोड़ी देर में खाना खाकर लौटा। उसके बाद छोटा भाई खाना खाने घर चला गया। बड़ा भाई सोचने लगा कि मेरा तो परिवार है, बच्चे हैं, वे मेरा ध्यान रख सकते हैं, लेकिन मेरा छोटा भाई तो एकदम अकेला है, इसे देखने वाला कोई नहीं है। इसे मुझसे ज्यादा गेहूं की जरूरत है। उसने अपने ढेर से उठाकर कई टोकरी गेहूं छोटे भाई वाले गेहूं के ढेर में मिला दिया। इस तरह दोनों के गेहूं की कुल मात्र में कोई कमी नहीं आई, लेकिन दोनों के आपसी प्रेम और भाईचारे में काफी वृद्धि हो गई। कहने का सार यही है कि आपसी प्रेम ही परिवार को जोड़कर रखता है। इसके बिना दूसरी सभी बातों का कोई महत्व नहीं होता है। जिन परिवारों में प्रेम नहीं होता है, वहां एकता और सुख नहीं होता है। परिवार में प्रेम बनाए रखने के लिए जरूरी है कि सभी सदस्यों को अहंकार का भाव छोड़ देना चाहिए। आज की बदलती सामाजिक परिस्थितियों में भी केवल प्रेम ही एकमात्र अस्त्र है, जिससे दुनिया भर में फैली इंसानी वैमनस्यता को खत्म किया जा सकता है।
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