जीवन दर्शन: मौन से इंसान की बढ़ती है आंतरिक शक्ति
ध्यान में जब किसी व्यक्ति के मन से सभी प्रश्न लुप्त हो जाते हैं तब भीतर की सर्वोच्च बुद्धि बोलने (Jeevan Darshan) लगती है। यदि कोई पूरी तरह से मौन हो जाए तो वह बुद्धिमत्ता गंभीर समस्याओं का भी सर्वोत्तम समाधान प्रकट करने में असफल नहीं होगी। मौनी अमावस्या (9 फरवरी) पर विशेष। तो आइए इस महत्वपूर्ण विषय के बारे में विस्तार से जानते हैं -
नई दिल्ली,श्रीश्री रविशंकर (आर्ट आफ लिविंग के प्रणेता आध्यात्मिक गुरु): आज सभी के जीवन में करने के लिए बहुत कुछ है, पर समय बहुत कम है, जो लगभग हर एक के जीवन में तनाव पैदा कर रहा है। कार्य से अवकाश होने पर भी मन को विश्राम नहीं मिलता। जागने से लेकर सोने तक मन हमेशा किसी न किसी चीज में लगा रहता है। हालांकि काम को कम करना संभव नहीं है और समय को बढ़ाना भी असंभव है, ऐसे में हमारे पास एकमात्र विकल्प भीतर की ऊर्जा के स्तर को बढ़ाना है।
जब हमारे पास पर्याप्त ऊर्जा और उत्साह होता है तो हम किसी भी चुनौती से निपटने में सक्षम हो जाते हैं, लेकिन प्रश्न यह है कि ऊर्जा कैसे बढ़ाई जाए? वस्तुत: आध्यात्मिक अभ्यास, जैसे ध्यान, योग और प्राणायाम यही काम करते हैं।
मौन के गुण अनगिनत हैं
वे व्यक्ति को मौन के क्षेत्र ले जाते हैं। यह क्षेत्र ऊर्जा से भरपूर होता है। आंतरिक मौन समस्त विश्राम और सारी रचनात्मकताओं का स्रोत है। इसी मौन के क्षेत्र में महान वैज्ञानिक खोजें हुईं, पथ-प्रदर्शक आविष्कार किए गए तथा अद्भुत कविताएं व धुनें उभरी हैं। मौन का आशय मात्र मुंह बंद रखना नहीं है। यह इंद्रियों को बाहरी गतिविधियों से हटाकर भीतर की ओर मोड़ने से भी कहीं अधिक है। पांचों इंद्रियों में से किसी में भी मन का शामिल न होना, भीतर एक निश्चित मात्रा में शांति प्रदान करता है।
इससे पूर्ण संतुष्टि की स्थिति प्राप्त होती है। मौन के गुण अनगिनत हैं। आत्मज्ञान के स्रोत से लेकर संबंधों में आई दरार को ठीक करने वाले मरहम तक, मौन को प्रतिदिन के जीवन में हमारे सामने आने वाली कई सांसारिक समस्याओं के लिए रामबाण के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। मौन विचारों को अधिक सुसंगत बनाता है, व्यक्ति को अधिक बुद्धिमान बनाता है।
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वास्तविक संचार शब्दों से परे है
आमने-सामने बात करने से लेकर दर्शकों के विशाल समूह को संबोधित करने तक एक अमूर्त गुण लोगों को शब्दों से अधिक प्रभावित करता है। हम इसका श्रेय आकर्षण, करिश्मा, उपस्थिति, शारीरिक भाषा आदि को देकर तर्कसंगत बनाने का प्रयास करते हैं। हां, ये सभी अपनी भूमिका निभाते हैं, लेकिन इन सबका सार भीतर के मौन से है। वास्तविक संचार शब्दों से परे है। यदि आप दृढ़ता से शांति के क्षेत्र में स्थित हैं, यदि आपका मन शांत है, तो आप अचानक ही स्वयं को व्यक्तियों, समूहों और जनता को प्रभावित करने में सक्षम पाएंगे। जो बात केवल एक दृष्टि अभिव्यक्त कर सकती है, वह हजार वार्तालाप अभिव्यक्त नहीं कर सकते। जब हम मौन की गहराई में जाते हैं तो हमें बिना विचारों के संचार का एकरूप अनुभव होता है।
यह तब होता है, जब किसी व्यक्ति के मन से सभी प्रश्न लुप्त हो जाते हैं, तब भीतर की सर्वोच्च बुद्धि बोलने लगती है। यदि कोई पूरी तरह से मौन हो जाए और मन के शोर को समाप्त कर दे, तो वह बुद्धिमत्ता सबसे गंभीर समस्याओं का भी सर्वोत्तम समाधान प्रकट करने में कभी असफल नहीं होगी। प्रतिदिन थोड़े समय के लिए ध्यान करें और मौन रहें। जब आप ध्यान के माध्यम से मौन के उस स्थान पर पहुंचते हैं, तो आपको हमेशा निर्देशित किया जाएगा कि क्या करने की आवश्यकता है। मौन व्यक्ति की आंतरिक शक्ति को बढ़ाता है और बुद्धि को तीव्र करता है।
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ध्यान का महत्व
व्यक्ति को प्रसन्नचित्त रखता है और आनंद का आह्वान करता है। अब यह ज्ञात हो चुका है कि ध्यान से प्राप्त होने वाली ऊर्जा नींद से कहीं अधिक होती है। बीस मिनट का ध्यान आठ घंटे की अच्छी नींद के बराबर हो सकता है। यह सूत्र कामकाजी लोगों की सबसे आम समस्या, हर समय कार्य करने और पर्याप्त नींद न ले पाने को आसानी से हल कर सकता है। अक्सर लोग सोचते हैं कि तनावग्रस्त हुए बिना कोई व्यक्ति सफल नहीं हो सकता। उन्हें यह विश्वास दिलाया जाता है कि दुनिया छोड़े बिना निर्वाण नहीं है, लेकिन भारतीय आध्यात्मिकता संसार का त्याग किए बिना स्वयं को फिर से जीवंत करने के कई तरीके प्रदान करती है।
शरीर द्वारा आपको छोड़ देना मृत्यु है और आपके द्वारा शरीर को छोड़ देना ही ध्यान है। अब समय आ गया है कि इससे पहले कि संसार हमें छोड़ दे, हम सभी प्रतिदिन कुछ मिनटों के लिए संसार को छोड़ने की कला सीखें। यह हमें संसार में बेहतर खिलाड़ी बना सकता है।
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