Jeevan Darshan: जीवन में सुखी और प्रसन्न रहने के लिए इन बातों का जरूर रखें ध्यान
श्री श्री रवि शंकर कहते हैं कि आध्यात्मिक स्तर पर पहुंचने का अर्थ है जीवन की पहचान करना क्योंकि चेतना हर जगह है। अध्यात्म का मतलब जीवन से कटना नहीं बल्कि उत्साहित रहना है। प्रार्थना विस्मय से शुरू होती है जिससे हमारी चेतना फैलती है। मनुष्य शरीर नहीं ऊर्जा है। अतीत और भविष्य स्वप्न समान हैं।

श्री श्री रवि शंकर (आर्ट आफ लिविंग के प्रणेता आध्यात्मिक गुरु)। आध्यात्मिक स्तर पर पहुंचने का अर्थ यह पहचानना है कि जीवन हर जगह है, चेतना हर जगह है। मैं आध्यात्मिक और भौतिक को अलग नहीं मानता। पदार्थ की सबसे सूक्ष्म अवस्था चेतना है और चेतना की सबसे स्थूल अवस्था पदार्थ है। यही संगम इस सृष्टि को रचता है।
इसलिए अध्यात्म का मतलब जीवन से कटना नहीं, बल्कि उत्साहित, करुणामय, प्रेमपूर्ण और आनंदमय रहना है। हर प्रार्थना का आरंभ विस्मय से होता है। जब हम आकाश को देखते हैं और कहते हैं, “वाह! कितने ग्रह, कितने तारे, कितना विराट यह ब्रह्मांड है!” तभी हमारी चेतना फैलती है। यही ध्यान है। सृष्टि और सृष्टिकर्ता अलग नहीं हैं। जिस तरह नृत्य नर्तक से अलग नहीं होता, उसी तरह सृष्टि भी ईश्वर से अलग नहीं है।
पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत हुए अरबों वर्ष बीत चुके हैं। इसकी तुलना में 80-100 वर्ष का मानव जीवन कुछ भी नहीं। इस विराट ब्रह्मांड में हम कहां खड़े हैं? जब हम स्वयं को इस दृष्टि से देखते हैं, तो हमारा सोच बदल जाता है और चेतना ऊंचे स्तर पर पहुंच जाती है।
विज्ञान भैरव में चेतना को जानने के 112 मार्ग दिए गए हैं। उनमें से एक है- निर्मल आकाश को देखना और छोड़ देना। धीरे-धीरे मन शांत हो जाता है।
शास्त्रों में तीन प्रकार के आकाश का वर्णन मिलता है -
- भूताकाश : यह भौतिक अंतरिक्ष है, जहां पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु विद्यमान हैं।
- चित्ताकाश : चित्ताकाश मन का आकाश है, जो विचारों और भावनाओं का स्रोत है। प्रत्येक व्यक्ति की जन्म कुंडली अलग होती है, जिससे उसके चित्ताकाश की जानकारी मिल सकती है कि उसके विचार और भावनाएं कैसे होंगे।
- चिदाकाश: चिदाकाश सबसे सूक्ष्म स्तर का आकाश है- शुद्ध, मौन और निर्विचार चेतना का स्थान। यहां न कोई विचार होता है, न भावना। केवल ऊर्जा का अनुभव होता है। गहरी ध्यानावस्था या सुदर्शन क्रिया के बाद आप इस प्रेम, शांति और ऊर्जा से भरे स्थान का अनुभव कर सकते हैं। यात्रा यही है कि हम भूताकाश से चित्ताकाश होते हुए चिदाकाश तक पहुंचें।
मनुष्य केवल शरीर नहीं
मनुष्य केवल शरीर नहीं, ऊर्जा और तरंग से बना है। जब आप आंखें बंद करके पूछते हैं- मैं कौन हूं? तो कोई उत्तर नहीं मिलता, केवल शून्यता का अनुभव होता है। और यही आपका उत्तर है, वही आप हैं। जब आत्मा इस शरीर से निकलता है, तो मन भी शरीर छोड़ देता है। मानव शरीर ही वह साधन है, जहां हम अपने पुराने संस्कारों को मिटा सकते हैं। बुद्ध ने निर्वाण का जो मार्ग बताया, उसका अर्थ है - बैठना और यह मानना कि मैं कोई नहीं हूं, कुछ भी नहीं हूं। जब यह स्पष्टता आती है तो मन लेजर किरण की तरह तेज और शक्तिशाली हो जाता है। ऐसे मन में संकल्प जल्दी फलित होते हैं और वही मन स्वयं को अच्छा भी कर लेता है।
हमारा सारा अतीत एक स्वप्न जैसा है। थोड़ा विचार कीजिए, आज सुबह से अब तक आपने क्या-क्या किया? क्या अब वे सब स्मृति मात्र नहीं हैं? सपने भी स्मृति ही हैं। इसलिए अपने पूरे अतीत को स्वप्न की तरह देखिए। भविष्य भी ऐसा ही है। अगले दस-बीस वर्षों में आप बहुत कुछ करेंगे, पर अंततः सब स्वप्न-सा बीत जाएगा।
अतीत और भविष्य
जब हम यह समझने लगते हैं कि अतीत और भविष्य दोनों स्वप्न समान हैं, तब भीतर का आकाश खुलने लगता है। चेतना का विस्तार होता है और जीवन का नया आयाम दिखाई देता है। अध्यात्म का अर्थ यह भी है कि हम जीवन को बोझ न मानें। छोटी-छोटी बातों से दुखी होने की आदत छूट जाए। भीतर से जब स्पष्टता आती है कि मैं शाश्वत हूं, तभी करुणा सहज होती है और सेवा स्वाभाविक। सेवा कोई कर्तव्य नहीं रह जाती, वह हमारे स्वभाव से प्रस्फुटित होती है। यही कारण है कि ध्यान करने वाला व्यक्ति अधिक सहनशील, अधिक प्रसन्न और अधिक करुणामय होता है।
प्रसन्न या आनंदमय रहना कोई भविष्य का लक्ष्य नहीं, बल्कि वर्तमान क्षण की अवस्था है। जब हम इस पल में टिक जाते हैं, तो जीवन में एक अद्भुत सहजता आती है। मन शांत होता है और हृदय प्रेम से भर जाता है। यही सच्चा अध्यात्म है- अभी, यहीं, पूरी तरह जाग्रत होकर जीना। तो बस, ठहरिए, अपने भीतर झांकिए और जाग जाइए। अध्यात्म कोई परलोक की वस्तु नहीं, बल्कि इसी क्षण को पूरी तरह जीने का नाम है।
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