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    बच्चों की नजर में उनके माता-पिता ही उनके आदर्श होते हैं

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Fri, 16 Sep 2016 10:08 AM (IST)

    यदि आप स्वयं मर्यादाहीन होंगे तो सोचें कि आपके बच्चे पर इसका क्या असर पड़ेगा? अधिकांश लोग अपने पिता को पूच्य पिताजी कहते हैं।

    बच्चों की नजर में उनके माता-पिता ही उनके आदर्श होते हैं

    बच्चों की नजर में उनके माता-पिता ही उनके आदर्श होते हैं। इसलिए आप भी आदर्श न छोड़ें। हमेशा आदर्श व मर्यादा का पालन करें। बच्चों की नजर में आपका व्यक्तित्व आदरणीय व अनुकरणीय होता है। उसके लिए आप मर्यादा के प्रतीक हैं। यदि आपका बच्चा आपके लिए अपने मन में ऐसी भावना नहीं बनाता तो वह कभी भी आपके कपड़े, जूते, टोपी आदि को पहनकर चलने का प्रयास नहीं करता। उसकी धारणा होती है कि आप एक आदर्श पुरुष हैं। इसलिए आपके जैसा एक आदर्श पुरुष बनना चाहता है।
    यदि आप स्वयं मर्यादाहीन होंगे, आपका चरित्र संदेहास्पद होगा, आप अपनी प्रतिष्ठा से नीचे आ जाएंगे तो सोचें कि आपके बच्चे पर इसका क्या असर पड़ेगा? अधिकांश लोग अपने पिता को पूच्य पिताजी कहते हैं। पिता तो पूच्यनीय होते ही हैं, लेकिन पूच्यनीय बनने से पहले कौन-कौन से आचरण अपनाने हैं, इसे भी आपको ही सोचना होगा। हम सभी की भावना होती है कि जब बेटा बड़ा हो तो मुङो आदर की नजरों से देखे, आदरपूर्वक पुकारे, कहीं आए या जाए तो पैर छूकर मुङो प्रणाम करे। अब जरा विचार करें कि क्या आप इस योग्य हैं कि आपके बच्चे या आप से छोटे आपके पैर छूकर प्रणाम करें? क्या आप ऐसी मर्यादा का पालन करते हैं? यदि आप में यह सब है तो संभव है कि आप इसके द्वारा ही समाज में क्रांति पैदा कर सकें। यदि हम इस मर्यादा से नीचे खिसक गए तो हमें पूच्य पिताजी कहलाने का अधिकार नहीं है।
    पहले भारतीय पत्नियां अपने पतियों का नाम नहीं लेती थीं, लेकिन आजकल पति-पत्नी एक-दूसरे को नाम से पुकारने लगे हैं। यह अशालीन आचरण या व्यवहार नहीं है बशर्ते कि उन दोनों के बीच प्रेम और विश्वास बरकरार रहे। इसके साथ ही अगर पति व पत्नी आपस में सम्मानजनक शब्द बोलें तो यह स्थिति बेहतर रहेगी और परिवार में खुशहाली आएगी। पहले पति व पत्नी आपस में पर्दे के साथ बातें करते थे। इसलिए उनके बीच प्रेम व मिठास बनी रहती थी। आदर्शो का एक बड़ा आधार हमारे वार्तालाप का तरीका है। हम जब अपने सामने वाले के साथ सम्मानजनक तरीके से बात करते हैं तो अपने आप उस पर अपना प्रभाव जमा लेते हैं। ऐसा वार्तालाप सही संस्कारों से ही संभव है। इसलिए यह आवश्यक है कि हम अपने बच्चों को सही संस्कार दें। संस्कारों की पूंजी पूरे जीवन में काम आती है।

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