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    अपने विचारों को कैसे बदलें और बनें अधिक जागरूक?

    By Jagran NewsEdited By: Vaishnavi Dwivedi
    Updated: Mon, 15 Dec 2025 05:02 PM (IST)

    पूरे ब्रह्मांड में मनुष्य कणमात्र भी नहीं है, लेकिन वह स्वयं को, अपनी समस्याओं को बड़ा करके आंकता है। जब दृष्टिकोण में विस्तार आ जाता है, तब हम सभी सम ...और पढ़ें

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    अपने विचारों को कैसे बदलें।

    सद्गुरु, (ईशा फाउंडेशन के संस्थापक आध्यात्मिक गुरु)। मन मुख्य रूप से स्मृति के एक विशेष संग्रह के आधार पर काम करता है। यह स्मृति का एक जटिल जाल है। यह स्मृति आपके जीवन में जागते और सोते हुए हर पल में जमा हो रही है। आपने जो स्मृति जमा की है, उसके अधिकांश भाग के बारे में आप अचेतन हैं, क्योंकि वह बहुत बड़ी मात्रा में जमा हो रही है। कई काम हम आसानी से करते हैं। उदाहरण के लिए दो टांगों पर चलने जैसा साधारण काम मात्र आपकी हड्डियों और मांसपेशियों के कारण नहीं होता, बल्कि आपके पास संचित स्मृति के कारण भी होता है। शरीर याद रखता है कि चलते कैसे हैं, अगर आप वह भूल जाएं तो आप चल नहीं सकते।

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    शरीर की स्मृति मन की स्मृति से कहीं बड़ी है

    जब हम स्मृति या याद्दाश्त कहते हैं, तो लोग मन के बारे में सोचने लगते हैं, लेकिन शरीर में मन की अपेक्षा बहुत ज्यादा स्मृति होती है। यदि आपके दादा के दादा के दादा की नाक से आपके चेहरे की नाक मिलती है, तो आपके शरीर के अंदर किसी चीज को याद है कि उनकी नाक कैसी थी। आपका शरीर अब भी याद रखता है कि दस लाख साल पहले कोई व्यक्ति कैसा था, उसका असर अब भी दिखता है।

    तो शरीर की स्मृति मन की स्मृति से कहीं बड़ी है। इस स्मृति को हम कर्मगत छाप कहते हैं। एक ऐसा समय था, जब भारत में, समाज आपकी कर्मगत छाप को संभालने की कोशिश कर रहा था। इसी उद्देश्य से जातियां और गोत्र इत्यादि शुरू किए गए थे।

    कर्म-तत्व का अचेतन 

    आपके विचार किस तरह के हैं, वह उस स्मृति से तय होता है, जो आपने इस जीवन में अपने जन्म से अब तक सचेतन रूप से जमा की है। इस सचेतन स्मृति को प्रारब्ध कहते हैं। लेकिन आपके अंदर ये विचार किस तरह की भावनाएं पैदा करते हैं, वह मुख्यतया स्मृति की एक अचेतन प्रक्रिया से आता है। वह स्मृति सचेतन स्मृति से कहीं बड़ी है और ‘संचित’ कहलाती है। संचित का अर्थ है कर्म-तत्व का अचेतन संग्रह, जो अपने ही तरीके से कार्य करता रहता है। यह स्वयं को अभिव्यक्त करने के संदर्भ में सक्रिय नहीं है, लेकिन यह आपको लाखों अलग-अलग तरीकों से प्रभावित करने में सक्रिय है।

    क्या इसका मतलब यह है कि आप पूरी तरह से पूर्व निर्धारित हैं और आप कुछ बदल नहीं सकते? नहीं। इसी आधार की वजह से आप मौजूद हैं। आप स्वयं को क्या बनाना चाहते हैं, वह अब भी आपके ऊपर है। नियति कोई निर्धारित वस्तु नहीं है। नियति आपके शरीर के ढांचे की तरह है। यह आपकी लंबाई तय करती है, लेकिन यह हर चीज तय नहीं करती।

    छोटी-सी घटना 

    तो क्या आप अपने सोच को बदल सकते हैं? इस बात पर गौर करने के बजाय कि आप में कैसे विचार और भावनाएं आ रही हैं, आप यह देखिए कि आप धूल के बस एक कण हैं इस पूरे ब्रह्मांड में। हमारी आकाशगंगा भी एक छोटी-सी घटना है। आकाशगंगा में, यह सौर मंडल एक छोटा कण है। उस छोटे कण में, पृथ्वी एक और छोटा कण है। उसमें, आपका शहर एक अत्यंत छोटा कण है। उस अत्यंत छोटे कण में, आप एक बड़े आदमी हैं! अगर आप अनुभव के स्तर पर इसे नहीं देख सकते, तो कम से कम बौद्धिक स्तर पर इस अस्तित्व में आप अपना स्थान समझ सकते हैं।

    अगर आप इतना समझ जाते हैं, तो एक नई आध्यात्मिक संभावना खुल जाती है - आप अलग तरह से घूमेंगे, अलग तरह से बैठेंगे, अलग तरह से सांस लेंगे, और जीवन को अलग तरह से अनुभव करेंगे।

    अन्य महत्वपूर्ण बातें 

    यह अत्यंत छोटा कण क्या सोचता और महसूस करता है, वह महत्वपूर्ण नहीं है। लेकिन ज्यादातर लोगों के लिए, वे जो सोचते और महसूस करते हैं, वह घटित हो रहे अद्भुत ब्रह्मांडीय नृत्य से ज्यादा महत्वपूर्ण है। पूरे ब्रह्मांड में आज सब कुछ बहुत बढ़िया चल रहा है, लेकिन बस एक विचार आपको परेशान और उदास कर सकता है। अगर आप बस यह देखते हैं, ‘मैं जो सोचता हूं और महसूस करता हूं वह बहुत महत्वपूर्ण नहीं है,’ अगर आप अपने और अपने विचार और भावनाओं के बीच इस दूरी को ले आते हैं, तब वह एक सचेतन प्रक्रिया बन जाती है। तब आप कई तरीकों से कर्मगत प्रक्रिया से स्वतंत्र होते हैं। अभी, आपके विचार और आपकी भावनाएं दोनों ही विवशतापूर्ण प्रक्रियाएं हैं।

    जब यह एक सचेतन प्रक्रिया होती हैं, तब आप एक ऐसे तरीके से अचानक सशक्त हो जाते हैं कि लोग सोचते हैं कि आप अतिमानव हैं। आपका उद्देश्य अतिमानव होना नहीं, बस मनुष्य होना है।

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