Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    होलिका दहन 2014

    By Edited By:
    Updated: Tue, 11 Mar 2014 01:27 PM (IST)

    [प्रीति झा] होलिका दहन हिंदू धर्म के सबसे प्रमुख त्योहार होली पर्व से एक दिन पूर्व किया जाता है। होलिका दहन का तात्पर्य है बुरे कर्मो का नाश और सत्कर्म की विजय। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन बुराई का प्रतीक राक्षस राज हिरणकश्यपु की बहन होलिका अग्नि की ज्वाला में भस्म हो गई थी और अच्छाई के प्रतीक भक्त प्रहलाद सही सलामत उसी अग्नि की ज्वाला

    होलिका दहन 2014

    [प्रीति झा] होलिका दहन हिंदू धर्म के सबसे प्रमुख त्योहार होली पर्व से एक दिन पूर्व किया जाता है। होलिका दहन का तात्पर्य है बुरे कर्मो का नाश और सत्कर्म की विजय। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन बुराई का प्रतीक राक्षस राज हिरणकश्यपु की बहन होलिका अग्नि की ज्वाला में भस्म हो गई थी और अच्छाई के प्रतीक भक्त प्रहलाद सही सलामत उसी अग्नि की ज्वाला में बच गए थे। इसी विजय की खुशी में प्राचीनकाल से हिन्दू धर्मानुयायियों द्वारा प्रदोष व्यापिनी फाल्गुन पूर्णिमा के दिन भ्रद्रारहित काल में होलिका दहन किया जाता है और उसके अगले ही दिन होली का त्योहार धूम-धाम से मनाया जाता है।
    हिंदू शास्त्रों में होलिका दहन को होलिका दीपक या छोटी होली के रूप में जाना जाता है। इसे प्रदोष काल [जो सूर्यास्त के बाद शुरू होता है] के दौरान किया जाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि गलत समय पर होलिका दहन करने से दुख और दुर्भाग्य आता है।
    गौरतलब है कि इस वर्ष 16 मार्च [रविवार] को होलिका दहन व 17 मार्च [सोमवार] को रंगों वाली होली है। स्नान-दान-व्रत की फाल्गुनी पूर्णिमा, हुताशनी पूर्णिमा-होलिका दहन सूर्यास्त से रात्रि 10.38 बजे के मध्य शुभफलदायक है।
    होलिका दहन 18:44 से 21:09
    अवधि 2 घंटा 24 मिनट
    भद्र पक्ष- 05: 33 से 06: 49
    भाद्रा मुख- 6:49 से 8:55
    धर्म ग्रथों के मुताबिक होलिका दहन जिसको छोटी होली या फिर होलिका दीपक भी कहा जाता है पूर्णमासी के दौरान प्रदोष काल के तहत मनाई जाती है। भद्र के पहले चरण के दौरान किसी भी तरह के शुभ काम नहीं किया जाता है।
    मालूम हो कि भद्रा के मुख का त्याग करके निशा मुख में होली का पूजन करना शुभफलदायक सिद्ध होता है, च्योतिष शास्त्र के अनुसार भी पर्व-त्योहारों को मुहूर्त शुद्धि के अनुसार मनाना शुभ एवं कल्याणकारी है।
    वर्ष 2012 में भी सायं 5.54 बजे पूर्णिमा आने के बाद अर्धरात्रि बाद होलिका दहन हुआ था। अब आगे 22 मार्च 2016 में दोपहर 2.56 बजे पूर्णिमा आने के बाद चतुर्दशीयुक्त होली मनाई जाएगी।
    होलिका दहन में कुछ वस्तुओं की आहुति देना अत्यंत ही शुभ माना जाता है। उसमें कच्चे आम, नारियल, भुट्टे या सप्तधान्य, चीनी के बने खिलौने और नई फसलों का कुछ भाग। सप्त धान्य में आता है- गेंहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर। होलिका दहन करने से पहले होली की पूजा की जाती है। इस पूजा के समय पूजा करने वाले व्यक्ति को होलिका के पास पूर्व या उतर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए। पूजा में निम्न सामग्रियों का प्रयोग उचित है:- एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल आदि। इसके अलावे नई फसल के धान्य जैसे- पके चने की बालियां व गेंहूं की बालियां भी सामग्री के रुप में रखें। इसके बाद होलिका के पास गोबर से बनी ढाल तथा अन्य खिलौने रख दिये जाते है
    होलिका दहन मुहुर्त समय में जल, मोली, फूल, गुलाल तथा गुड आदि से होलिका का पूजन करना चाहिए। गोबर से बनाई गई ढाल व खिलौनों की चार मालाएं अलग से घर लाकर सुरक्षित रख ली जाती है। इसमें से एक माला पितरों के नाम की, दूसरी हनुमान जी के नाम की, तीसरी शीतला माता के नाम की तथा चौथी अपने घर- परिवार के नाम की होती है।
    कच्चे सूत को होलिका के चारों ओर तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटा जाता है। उसके बाद लोटे का शुद्ध जल व अन्य पूजन की सभी वस्तुओं को एक-एक करके होलिका को समर्पित किया जाता है। रोली, अक्षत व गंध- पुष्प का प्रयोग करते हुए पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन किया जाता है। पूजन के पश्चात जल से अर्धय दिया जाता है। सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में होलिका में अग्नि प्रच्जवलित कर दी जाती है। अंत में सभी पुरुष रोली का टीका लगाते है और बड़ों का आशीर्वाद लेते है।
    ये रंगों का त्यौहार सभी राग-द्वेष को भूल कर प्यार और सौहार्द का अपने आप में अद्भूत, अनुपम, उत्साहवर्धक, उल्लासित कर देने वाला पर्व है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
    comedy show banner
    comedy show banner