Dattatreya Jayanti 2024: भगवान दत्तात्रेय की उपासना से ज्ञान और मुक्ति मिलती है
भगवान दत्तात्रेय को गुरु के रूप में भी पूजा जाता है जो मानव जीवन के गूढ़ ज्ञान को प्रदान करते हैं। उन्होंने अपने जीवन का सबसे बड़ा गुरु स्वयं की आत्मा को माना। फिर उन्होंने पृथ्वी जल वायु आकाश सूर्य चंद्रमा पक्षी मछली सहित कुल 24 विभिन्न प्राकृतिक तत्वों जानवरों और घटनाओं से शिक्षा ली जो समग्र रूप से जीवन और ब्रह्मज्ञान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

डॉ. प्रणव पण्ड्या (कुलाधिपति, देवसंस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार)। हमारे पौराणिक ग्रंथों में भगवान दत्तात्रेय को सृष्टि के प्रथम गुरु के रूप में माना है। इन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समेकित रूप में पूजा जाता है। इन्हें आदिगुरु और सर्वज्ञ के रूप में माना गया है। उन्हें गुरु वंश का प्रथम गुरु, साधक, योगी और वैज्ञानिक माना जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार दत्तात्रेय ने पारद से व्योमयान उड्डयन की शक्ति का पता लगाया और चिकित्सा विज्ञान में एक महत्वपूर्ण शोध किया, जिसे आज तक चिकित्सा वैज्ञानिक शिरोधार्य करते हैं।
भगवान दत्तात्रेय का जीवन और उनकी शिक्षाएं अद्भुत दृष्टिकोण से जीवन और ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति के मार्ग को प्रकट करती हैं। दत्तात्रेय को शैवपंथी शिव के अवतार तथा वैष्णवपंथी विष्णु के अंशावतार के रूप में मानते हैं। दत्तात्रेय को नाथ संप्रदाय की नवनाथ परंपरा का भी अग्रज माना जाता है। उनके संबंध में यह भी मान्यता है कि रसेश्वर संप्रदाय के प्रवर्तक भी दत्तात्रेय ही हैं। दत्तात्रेय महर्षि अत्रि और माता अनुसूया के पुत्र हैं। वे ब्रह्मा के सृजनात्मक गुण, विष्णु के पालनकारी गुण और महेश के संहारक गुण पूर्ण माने जाते हैं। उन्हें निराकार और साकार दोनों रूपों में पूजा जाता है। ऐसा माना जाता है कि उनकी उपासना से भक्ति, ज्ञान और मुक्ति प्राप्त होती है।
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भगवान दत्तात्रेय को गुरु के रूप में भी पूजा जाता है, जो मानव जीवन के गूढ़ ज्ञान को प्रदान करते हैं। उन्होंने अपने जीवन का सबसे बड़ा गुरु स्वयं की आत्मा को माना। फिर उन्होंने पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, सूर्य, चंद्रमा पक्षी, मछली सहित कुल 24 विभिन्न प्राकृतिक तत्वों, जानवरों और घटनाओं से शिक्षा ली और प्रत्येक से एक अलग ज्ञान की सीख दी, जो समग्र रूप से जीवन और ब्रह्मज्ञान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। भगवान दत्तात्रेय ने यह सिद्ध किया कि सही ज्ञान कहीं भी और किसी से भी प्राप्त किया जा सकता है, यदि हमारी दृष्टि पवित्र और समझदार हो।
भगवान दत्तात्रेय मानते हैं कि हम आत्मा हैं, शरीर नहीं। शरीर और आत्मा अलग-अलग है। आत्मा चेतन है। आत्मा न तो जन्म लेती है, न मरती है और न ही वह भौतिक शरीर के अधीन होती है। शरीर जड़ है और परिवर्तनशील है। हमने आत्मा को नहीं, केवल शरीर को अपना माना है, इसी से सारा आडंबर है।
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संसार के विषय-भोगों से आसक्ति छोड़ो। हम अपनी असल पहचान, जो आत्मा है, उससे अंजान होकर केवल शारीरिक और भौतिक सुखों के प्रति आसक्त हो जाते हैं। यही कारण है कि हम सारा आडंबर रचते हैं, जो हमारे भीतर और बाहर भटकाव पैदा करता है। भगवान दत्तात्रेय ने अपनी उपदेशों से यह सिखाया कि हमें अपनी आत्मा के अस्तित्व का अनुभव करना चाहिए और शरीर तथा भौतिक सुखों से ऊपर उठकर ईश्वर के साथ समन्वय कर आत्मसात करना चाहिए।
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