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    भगवान इंद्र के कहने पर दधीचि ने किया था 'अस्‍थि दान'

    By Monika minalEdited By:
    Updated: Wed, 10 Aug 2016 04:05 PM (IST)

    अहंकार से समाज का विनाश हो सकता है, लेकिन जनकल्याण की भावना संपूर्ण मानव जाति का भला कर सकती है।

    एक बार देवराज इंद्र को अपनी शक्तियों का अहंकार हो गया और उन्होंने गुरु बृहस्पति को अपनी बातों से दुखी कर दिया। बृहस्पति के देवलोक छोड़ते ही देवताओं की शक्तियां कम हो गईं और असुरों ने उन पर आक्रमण कर
    दिया। नाना प्रकार की कोशिशें करने के बाद महर्षि विश्वरूप की कृपा से देवता जीत तो गए, लेकिन इंद्र ने दोबारा गलती कर दी। उन्होंने अपनी बातों से विश्वरूप को दुखी कर दिया। विश्वरूप के साथ छोड़ते ही वृतासुर नाम के असुर ने देवराज इंद्र पर आक्रमण कर दिया। देवराज भागकर सीधे भगवान विष्णु की शरण में आ गए। विष्णु ने उनसे कहा कि अहंकार के वशीभूत होकर आपने जो गलती की है, वह अक्षम्य है। ऐसी स्थिति में महर्षि
    दधीचि ही आपकी रक्षा कर सकते हैं।

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    इंद्र ने दधीचि के पास जाकर कहा कि श्री विष्णु के बताए उपाय के अनुसार, यदि आप अपनी अस्थियां दान में दे दें तो उनसे वज्र बनाकर वृतासुर से युद्ध किया जा सकता है। तब दधीचि ने कहा कि यदि मेरी अस्थियां जनकल्याण के काम में लायी जाती हैं, तो मैं तैयार हूं। उन्होंने अपने शरीर पर मिष्ठान्न का लेपन किया और समाधिस्थ हो गए।

    कामधेनु गाय ने उनके शरीर को चाटना आरंभ कर दिया। कुछ देर में महर्षि के शरीर की त्वचा, मांस और मज्जा उनके शरीर से विलग हो गए। मानव देह के स्थान पर सिर्फ उनकी अस्थियां ही शेष रह गईं। इंद्र ने उन अस्थियों से ‘तेजवान’ नामक वज्र बनाया। इस वज्र के बल पर उन्होंने वृतासुर को ललकारा। ‘तेजवान’ वज्र से प्रहार कर इंद्र ने वृतासुर का वध कर डाला। सच ही कहा गया है कि अहंकार से समाज का विनाश हो सकता है, लेकिन जनकल्याण की भावना संपूर्ण मानव जाति का भला कर सकती है।

    चोटी रखना ऋषि-मुनियों की खोज का विलक्षण चमत्कार हैं