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    उपवास का मतलब

    By Edited By:
    Updated: Sun, 21 Oct 2012 08:07 AM (IST)

    नवरात्र पर देवी मां के भक्त श्रद्धानुसार उपवास करते हैं। लेकिन उपवास का सही मतलब भूखे रहना नहीं, बल्कि अपने अंतस के निकट रहना है। ओशो का चिंतन..

    उपवास का मतलब होता है, अपने पास रहना। इसका अन्य कोई मतलब ही नहीं होता। आत्मा के पास निवास करना उपवास है। जैसे उपनिषद का अर्थ है गुरु के पास बैठना। लेकिन अब उपवास का अर्थ फास्टिंग या अनशन हो रहा है - भूखे रहना। यह ठीक नहीं।

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    यह उपवास नहीं चल सकता, न खाने वाला। अगर न खाने पर जोर दिया, तो वह दमन और काया को कष्ट देने वाली बात है। क्या महावीर की तरह चार महीने तक कोई आदमी बिना खाए रह सकता है? हां, उपवास में रहकर रह सकता है। क्योंकि उपवास का मतलब न खाना नहीं है। उपवास का मतलब है कि एक व्यक्ति अपनी आत्मा (अंतस) में इतना लीन हो गया कि शरीर का उसे पता ही नहीं है। जब शरीर का पता नहींहै, तो भोजन भी नहीं करेगा। अपने भीतर ऐसा लीन हो गया है कि दिन बीत जाते हैं, रातें बीत जाती हैं, उसे शरीर का पता नहीं।

    एक संन्यासी मेरे पास आए। मैंने कहा, आप खाना खा लें। तो उन्होंने कहा, आज तो मेरा उपवास है। मैंने कहा, कैसा उपवास करते हैं? उन्होंने कहा, आप इतना भी नहीं जानते कि उपवास कैसे करते हैं? खाना नहीं लेते दिन भर। मैंने कहा, इसको आप उपवास समझते हैं? फिर अनशन क्या है? उन्होंने कहा, दोनों एक ही चीज हैं। नाम बदल जाने से क्या फर्क पड़ता है। तो मैंने कहा, फिर आप अनशन ही करते हैं, उपवास नहीं।

    जब आप अनशन करेंगे, तो ध्यान रहे, आप पूरे समय शरीर के पास रहेंगे। तब आप आत्मा के पास रह भी नहीं सकते। अनशन का मतलब ही यही है कि नहीं खाया, जबकि खाने का खयाल है। ऐसे में दिन भर शरीर के पास ही मन घूमेगा। बार-बार खयाल आएगा कि भूख लगी है, प्यास लगी है। सोचेंगे कि कल क्या खाएंगे, परसों क्या खाएंगे। .. तो मैंने उनसे कहा कि उपवास से अनशन तो बिलकुल उल्टा है। दोनों में भोजन नहीं किया जाता, फिर भी दोनों उल्टी ही बातें हैं, क्योंकि अनशन में आदमी शरीर के पास रहता है- चौबीस घंटे, जितना कि खाना खाने वाला भी नहीं रहता। दो बार खा लिया और बात खत्म हो गई।

    वहीं अनशन करने वाला दिन भर खाता रहता है, मन ही मन में खाना चलता रहता है। जबकि उपवास का मतलब है कि किसी दिन ऐसी मस्ती में अपने भीतर चले आएं कि शरीर की कोई याद ही न रहे।

    संन्यासी से मैंने कहा कि आप जिस दिन भी ध्यान करें, तो उस दिन ध्यान में ऐसे डूब जाएं कि उठने का मन न हो तो उठें मत। जब उठने का मन हो, तब उठ जाएं। उन्हें मैं तब ध्यान कराता था। उनके साथ एक युवक भी आया हुआ था। उसने एक दिन सुबह आकर मुझसे कहा, आज चार बजे से वे ध्यान में गए हैं तो नौ बज गया, अभी तक उठे नहीं हैं। उन्होंने कह दिया है कि उठाना मत। लेकिन मुझे बहुत डर लग रहा है, वे पड़े हैं। मैंने कहा, उन्हें पड़ा रहने दो। उठाना मत।

    ग्यारह बजे रात वे संन्यासी मेरे पास फिर आए और उन्होंने कहा कि आज समझा कि उपवास का क्या अर्थ है! कितना भेद है उपवास और अनशन में। आज सच में मेरा उपवास हो गया। हद दरजे का हुआ है।

    जब आप भीतर चले जाते हैं, तो बाहर का स्मरण छूट जाता है। हमारा शरीर इतना अद्भुत यंत्र है कि जब हम भीतर होते हैं तो शरीर आटोमैटिक हो जाता है, अपनी व्यवस्था पूरी करने लगता है। आपको कोई चिंता करने की जरूरत नहीं रहती। साधना का मतलब यह है कि शरीर ऐसा हो कि जब आप भीतर चले जाएं, तो उसे आपकी कोई जरूरत न हो। वह अपनी व्यवस्था कर ले। वह स्वचालित यंत्र की तरह अपना काम करता रहे और आपकी प्रतीक्षा करे कि जब आप बाहर आएंगे, तब वह आपको खबर देगा कि मुझे भूख लगी है, मुझे प्यास लगी है। अन्यथा वह चुपचाप झेलेगा और आपको खबर भी नहीं देगा।

    इसलिए उपवास को फास्टिंग या अनशन मत कहो। उपवास को कहो आत्मा के निकट होना। आत्मा के निकट होकर शरीर भूल जाता है कि उसे क्या चाहिए।

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