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    Yogini Ekadashi 2025: योगिनी एकादशी पर करें तुलसी जी की खास पूजा, होगा कल्याण

    Updated: Mon, 09 Jun 2025 02:17 PM (IST)

    योगिनी एकादशी (Yogini Ekadashi 2025) भगवान विष्णु के भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है जो आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और तुलसी माता की पूजा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और तुलसी चालीसा का पाठ करने से धन और यश में वृद्धि होती है तो चलिए यहां पढ़ते हैं।

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    Yogini Ekadashi 2025: तुलसी चालीसा का पाठ।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। योगिनी एकादशी का पर्व भगवान विष्णु के भक्तों के लिए बहुत खास होता है। इसे हर साल साधक बड़ी श्रद्धा के साथ रखते हैं। यह भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह व्रत आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। इस साल यह व्रत 21 जून को रखा जाएगा। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सच्चे भाव के साथ उपवास करने से श्री हरि खुश होते हैं। वहीं, इस दिन (Yogini Ekadashi 2025) देवी तुलसी की पूजा का भी बड़ा महत्व है, क्योंकि नारायण की पूजा तुलसी के बिना अधूरी मानी जाती है।

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    ऐसे में इस दिन स्नान के बाद तुलसी के पौधे के पास दीपक जलाएं। तुलसी चालीसा का पाठ और आरती करें। इससे धन और यश में वृद्धि होती होती है।

    ।।तुलसी चालीसा।।

    श्री तुलसी महारानी, करूं विनय सिरनाय।

    जो मम हो संकट विकट, दीजै मात नशाय।।

    नमो नमो तुलसी महारानी, महिमा अमित न जाय बखानी।

    दियो विष्णु तुमको सनमाना, जग में छायो सुयश महाना।।

    विष्णुप्रिया जय जयतिभवानि, तिहूँ लोक की हो सुखखानी।

    भगवत पूजा कर जो कोई, बिना तुम्हारे सफल न होई।।

    जिन घर तव नहिं होय निवासा, उस पर करहिं विष्णु नहिं बासा।

    करे सदा जो तव नित सुमिरन, तेहिके काज होय सब पूरन।।

    कातिक मास महात्म तुम्हारा, ताको जानत सब संसारा।

    तव पूजन जो करैं कुंवारी, पावै सुन्दर वर सुकुमारी।।

    कर जो पूजन नितप्रति नारी, सुख सम्पत्ति से होय सुखारी।

    वृद्धा नारी करै जो पूजन, मिले भक्ति होवै पुलकित मन।।

    श्रद्धा से पूजै जो कोई, भवनिधि से तर जावै सोई।

    कथा भागवत यज्ञ करावै, तुम बिन नहीं सफलता पावै।।

    छायो तब प्रताप जगभारी, ध्यावत तुमहिं सकल चितधारी।

    तुम्हीं मात यंत्रन तंत्रन, सकल काज सिधि होवै क्षण में।।

    औषधि रूप आप हो माता, सब जग में तव यश विख्याता,

    देव रिषी मुनि औ तपधारी, करत सदा तव जय जयकारी।।

    वेद पुरानन तव यश गाया, महिमा अगम पार नहिं पाया।

    नमो नमो जै जै सुखकारनि, नमो नमो जै दुखनिवारनि।।

    नमो नमो सुखसम्पति देनी, नमो नमो अघ काटन छेनी।

    नमो नमो भक्तन दुःख हरनी, नमो नमो दुष्टन मद छेनी।।

    नमो नमो भव पार उतारनि, नमो नमो परलोक सुधारनि।

    नमो नमो निज भक्त उबारनि, नमो नमो जनकाज संवारनि।।

    नमो नमो जय कुमति नशावनि, नमो नमो सुख उपजावनि।

    जयति जयति जय तुलसीमाई, ध्याऊँ तुमको शीश नवाई।।

    निजजन जानि मोहि अपनाओ, बिगड़े कारज आप बनाओ।

    करूँ विनय मैं मात तुम्हारी, पूरण आशा करहु हमारी।।

    शरण चरण कर जोरि मनाऊं, निशदिन तेरे ही गुण गाऊं।

    क्रहु मात यह अब मोपर दाया, निर्मल होय सकल ममकाया।।

    मंगू मात यह बर दीजै, सकल मनोरथ पूर्ण कीजै।

    जनूं नहिं कुछ नेम अचारा, छमहु मात अपराध हमारा।।

    बरह मास करै जो पूजा, ता सम जग में और न दूजा।

    प्रथमहि गंगाजल मंगवावे, फिर सुन्दर स्नान करावे।।

    चन्दन अक्षत पुष्प् चढ़ावे, धूप दीप नैवेद्य लगावे।

    करे आचमन गंगा जल से, ध्यान करे हृदय निर्मल से।।

    पाठ करे फिर चालीसा की, अस्तुति करे मात तुलसा की।

    यह विधि पूजा करे हमेशा, ताके तन नहिं रहै क्लेशा।।

    करै मास कार्तिक का साधन, सोवे नित पवित्र सिध हुई जाहीं।

    है यह कथा महा सुखदाई, पढ़े सुने सो भव तर जाई।।

    तुलसी मैया तुम कल्याणी, तुम्हरी महिमा सब जग जानी।

    भाव ना तुझे माँ नित नित ध्यावे, गा गाकर मां तुझे रिझावे।।

    यह श्रीतुलसी चालीसा पाठ करे जो कोय।

    गोविन्द सो फल पावही जो मन इच्छा होय।।

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