आरती के समय क्यों दाईं ओर ही घुमाया जाता है दीपक? जानें दक्षिणावर्त दिशा का विज्ञान और शास्त्र
हिंदू धर्म में पूजा के अंत में आरती दक्षिणावर्त (घड़ी की दिशा में) की जाती है, जिसके पीछे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण हैं। यह ब्रह्मांड की स्वाभाविक ...और पढ़ें

वास्तु शास्त्र टिप्स (AI-generated image)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में पूजा-पाठ का समापन 'आरती' के साथ होता है। मंदिर की घंटियों की गूंज के बीच जब भक्त भगवान की आरती उतारते हैं, तो एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। लेकिन, क्या आपने कभी गौर किया कि आरती करते समय दीपक को हमेशा दक्षिणावर्त (Clockwise) यानी दाईं ओर ही क्यों घुमाया जाता है? आइए जानते हैं शास्त्रों के अनुसार इसके पीछे की मुख्य वजहें।
यह बात जानकर आपको हैरानी होगी कि यह केवल एक परंपरा नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरा आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण छिपा है।
1. ब्रह्मांड के साथ तालमेल (Cosmic Alignment)
शास्त्रों के अनुसार, हमारा पूरा ब्रह्मांड एक खास गति से चल रहा है। पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर यानी घड़ी की दिशा में (Clockwise) घूमती है। इतना ही नहीं, सौरमंडल के अधिकतर ग्रह भी इसी दिशा में गति करते हैं। जब हम दक्षिणावर्त दिशा में आरती करते हैं, तो हम अपनी ऊर्जा को ब्रह्मांड की स्वाभाविक गति के साथ जोड़ते हैं। यह प्रकृति के साथ तालमेल बिठाने का एक तरीका है।
2. वास्तु और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह
वास्तु शास्त्र में दिशाओं का बहुत महत्व है। माना जाता है कि दाईं ओर से शुरू होने वाली आरती गति ऊर्जा को संचित करती है और उसे बढ़ाती है। जब हम दीपक को दक्षिणावर्त घुमाते हैं, तो वह स्थान सकारात्मक तरंगों से भर जाता है। इसके उलट, अगर आरती को उल्टी दिशा में घुमाया जाए, तो वह नकारात्मक ऊर्जा को जन्म दे सकती है और मन की शांति को भंग कर सकती है।
3. 'ॐ' की आकृति का निर्माण
आरती करने का एक विशेष नियम शास्त्रों में बताया गया है। कहा जाता है कि आरती इस तरह की जानी चाहिए कि हवा में 'ॐ' की आकृति बने। जब हम भगवान के चरणों से शुरू करके उनके मुख मंडल तक दीपक को दाईं ओर से ले जाते हैं, तो वह पवित्र 'ॐ' की छवि बनाता है। यह आकृति ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण और एकाग्रता का प्रतीक है।
4. आरती करने का सही क्रम
शास्त्रों में आरती करने का एक सटीक वैज्ञानिक क्रम बताया गया है, जिसे हर भक्त को जानना चाहिए:
चरणों में: सबसे पहले भगवान के चरणों में 4 बार आरती घुमाएं।
नाभि पर: इसके बाद नाभि के पास 2 बार दीपक घुमाएं।
मुख पर: अंत में भगवान के मुख मंडल के पास 1 बार आरती उतारें।
संपूर्ण शरीर: यह प्रक्रिया पूरी करने के बाद भगवान के पूरे शरीर के चारों ओर 7 बार आरती घुमानी चाहिए।
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