Adhik Maas 2026: इसे क्यों कहा जाता है भगवान विष्णु का पुरुषोत्तम मास? जानें अधिक मास का रहस्य
हिंदू पंचांग में चंद्र और सौर वर्ष के बीच के अंतर को संतुलित करने के लिए हर ढाई से तीन साल में एक अतिरिक्त मास जोड़ा जाता है, जिसे अधिक मास (Adhik Maa ...और पढ़ें

Adhik Maas 2026: अधिक मास का महत्व।

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अभी पढ़ेंदिव्या गौतम, एस्ट्रोपत्री। Adhik Maas 2026: हिंदू पंचांग की गणना चंद्रमा और सूर्य की गति पर आधारित होती है। सामान्य रूप से एक वर्ष में बारह मास होते हैं, लेकिन कुछ वर्षों में मासों की संख्या तेरह (13) हो जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि चंद्र वर्ष और सौर वर्ष की अवधि समान नहीं होती। चंद्र वर्ष सौर वर्ष से कुछ दिन छोटा होता है, जिससे हर वर्ष दोनों के बीच अंतर बनता जाता है। जब यह अंतर एक पूरे मास के बराबर हो जाता है, तब पंचांग में एक अतिरिक्त मास जोड़ा जाता है। इसी मास को अधिक मास कहा जाता है। इसका उद्देश्य समय, ऋतु और पर्वों के बीच संतुलन बनाए रखना होता है।
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हिंदू पंचांग और समय गणना
हिंदू पंचांग की समय गणना दो अलग अलग खगोलीय आधारों पर टिकी होती है। चंद्रमा की गति के अनुसार एक चंद्र मास तय होता है, जो लगभग उन्तीस से तीस दिनों का होता है। जब ऐसे बारह चंद्र मास पूरे होते हैं, तो कुल अवधि लगभग तीन सौ चौवन (354) दिनों की बनती है। दूसरी ओर, सूर्य की गति के आधार पर तय होने वाला सौर वर्ष लगभग तीन सौ पैंसठ (365) दिनों का होता है, जो ऋतुओं और प्राकृतिक चक्रों से जुड़ा होता है। इसी अंतर के कारण हर वर्ष चंद्र वर्ष सौर वर्ष से लगभग ग्यारह दिन छोटा रह जाता है। यह अंतर समय के साथ जुड़ता जाता है।
चंद्र और सौर वर्ष का अंतर
चंद्र और सौर वर्ष के बीच बनने वाला अंतर ही अधिक मास का मुख्य कारण होता है। चंद्र वर्ष सौर वर्ष से लगभग ग्यारह दिन छोटा होता है। यह ग्यारह दिनों का अंतर हर साल धीरे धीरे जुड़ता रहता है। जब यह अंतर लगभग तीस दिनों के बराबर हो जाता है, तब पंचांग की गणना को संतुलित रखने के लिए एक अतिरिक्त मास जोड़ा जाता है। इसी अतिरिक्त मास को अधिक मास कहा जाता है। सामान्य रूप से यह स्थिति ढ़ाई से तीन वर्ष में एक बार बनती है। इस व्यवस्था से पंचांग, ऋतुएं और त्योहार सही समय पर बने रहते हैं और समय गणना में कोई गडबड़ी नहीं होती।
अधिक मास कब लगता है
अधिक मास का सीधा संबंध सूर्य के राशि परिवर्तन से होता है। सामान्य रूप से हर चंद्र मास के दौरान सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, जिसे संक्रांति कहा जाता है। लेकिन जब किसी पूरे चंद्र मास में सूर्य अपनी राशि नहीं बदलता और एक ही राशि में बना रहता है, तब उस मास को अधिक मास माना जाता है। यानी उस अवधि में कोई संक्रांति नहीं होती। इसी खगोलीय स्थिति के कारण पंचांग की गणना में संतुलन बनाने के लिए उस वर्ष एक मास अतिरिक्त जुड़ जाता है। यही कारण है कि उस वर्ष बारह के बजाय तेरह मास हो जाते हैं और उस अतिरिक्त मास को अधिक मास कहा जाता है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अधिक मास को बहुत पवित्र माना गया है। इसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है, क्योंकि यह भगवान विष्णु को समर्पित होता है। ऐसी मान्यता है कि इस मास में की गई पूजा, जप और भक्ति का फल कई गुना बढ़ जाता है। इस समय दान, सेवा, व्रत और साधना करना विशेष पुण्यदायी माना जाता है। लोग भगवान विष्णु के मंत्रों का जप करते हैं और धार्मिक ग्रंथों का पाठ करते हैं। हालांकि, विवाह, गृह प्रवेश और अन्य मांगलिक कार्य इस मास में नहीं किए जाते, लेकिन आत्मिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए यह समय अत्यंत शुभ और अनुकूल माना जाता है।
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लेखक: दिव्या गौतम, Astropatri.com अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए hello@astropatri.com पर संपर्क करें।

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