क्यों देह त्याग के बाद भी परम प्रतापी राजा दशरथ को मोक्ष नहीं मिला था?
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने जीवन भर दुखों का सामना किया था। वनवास के दौरान सर्वप्रथम पिता का वियोग मिला था। वनवास के दौरान पत्नी का वियोग मिला। वनवास से लौटने के बाद पुनः पत्नी एवं पुत्र का वियोग मिला। इसी दौरान मां सीता को अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ा था। वहीं राजा दशरथ का निधन (Dasharatha Death Story) पुत्र वियोग के चलते हुआ था।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। राजा दशरथ इक्ष्वाकु वंश के राजा थे। उनके पिता का नाम रघु था। अतः राजा दशरथ रघुवंशी कहलाये। राजा दशरथ की तीन पत्नियां थीं। इनमें कौशल्या के पुत्र भगवान श्रीराम थे। तत्कालीन समय में राजा दशरथ की वीरता की चर्चा तीनों लोक में थी। कई बार उन्होंने देवताओं के तरफ से असुरों के खिलाफ युद्ध किया था। सनातन शास्त्रों में निहित है कि एक समय पर राजा दशरथ को दस दिशाओं में युद्ध करने का कौशल प्राप्त था।
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एक बार युद्ध के दौरान ऐसी स्थिति आ गई थी, जब राजा दशरथ घायल हो गये थे। उस समय असुरों ने चारों तरफ से राजा दशरथ को घेर लिया था। कहते हैं कि रानी कैकेयी को भी युद्ध कला का ज्ञान था। उस समय रानी कैकेयी ने राजा दशरथ की जान बचाई थी। यह देख राजा दशरथ ने रानी कैकेयी को दो वरदान मांगने को कहा था। हालांकि, उस समय रानी कैकेयी ने वर नहीं मांगा। राजा दशरथ के जिद करने पर रानी कैकेयी बोलीं- सही समय आने पर वह वरदान मांग लेगी।
कालांतर में राजा दशरथ को यह आभास हुआ कि अब अयोध्या की कमान कौशल नंदन राम को सौंप दी जाये। इसके लिए राजा दशरथ ने कुल पंडित, ज्योतिष और मंत्रियों से सलाह भी ली थी। राज्याभिषेक होने से एक दिन पहले मंथरा के कान भरने के चलते रानी कैकेयी ने राजा दशरथ से दो वरदान देने की मांग की। राजा दशरथ बेहद प्रसन्न थे। उन्होंने उसी समय वर देने का वचन दिया। राजा दशरथ को जरा भी आभास नहीं था कि विधि के विधान में कुछ और निहित है।
रानी कैकेयी ने पहले वरदान में रामजी का वनवास मांगा। वहीं, दूसरे में भरत को अयोध्या नरेश बनाने का वरदान मांगा। यह सुन राजा दशरथ के पैर से जमीन खिसक गई। रात भर राजा दशरथ रानी कैकेयी को अन्य वरदान मांगने के लिए मनाते रहे, लेकिन रानी कैकेयी नहीं मानीं। तब राजा दशरथ ने रामजी को यह जानकारी दी। पिता की आज्ञा को अंतिम मान रामजी वनवास जाने के लिए तैयार हो गये।
उनके साथ माता जानकी और अनुज लक्ष्मण जी भी वनवास गये। वनवास जाने के दौरान पुत्र वियोग में राजा दशरथ का निधन हो गया। राजा दशरथ का अंतिम संस्कार भरत ने किया था। धर्म का पालन कर रामजी अपने पिता के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हुए। कहते हैं कि मृत्यु के अंतिम क्षण तक राजा दशरथ भगवान श्रीराम को अयोध्या नरेश बनते देखना चाहते थे।
इसके लिए राजा दशरथ को मोक्ष नहीं प्राप्त हुआ था। उस समय राजा दशरथ के स्वर्ग में ठहरने के लिए उत्तम व्यवस्था की गई थी। वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण में निहित है कि भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने के बाद अनुज भरत ने उनका भव्य स्वागत किया। साथ ही अयोध्या की राजगद्दी ज्येष्ठ भाई रामजी को सौंप दी। भगवान राम के अयोध्या का राजा बनने के बाद राजा दशरथ को मोक्ष की प्राप्ति हुई। राजा बना देख राजा दशरथ को आत्म संतुष्टि हुई।
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