जब पृथ्वी के पुत्र बने देवी सीता के भाई, श्रीराम संग विवाह में निभाई थी रस्में
विवाह पंचमी को राम-जानकी विवाह के उत्सव में मनाया जाता है, जो इस बार 25 नवंबर को है। रामायण में एक प्रसंग मिलता है कि सीता जी के विवाह में भाई की रस्म निभाने को लेकर सभी चिंता में पड़ गए थे। तब एक युवक ने इन सभी रस्मों को निभाया। चलिए जानते हैं कि वह कौन थे।

Mata sit Brother story in hindi
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। त्रेता युग में मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी पर भगवान श्रीराम और माता सीता का विवाह हुआ था। इस विवाह का साक्षी बनने के लिए सभी देवी-देवता वहां उपस्थित थे। राम-जानकी विवाह के दौरान सभी रस्में भी निभाई गईं। आज हम आपको एक ऐसा ही प्रसंग के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसमें यह वर्णन मिलता है कि भगवान राम और सीता के विवाह (Ram Sita Wedding) में किसने सीता जी के भाई का दायित्व निभाया था।
मिलता है ये प्रसंग
रामायण में वर्णित प्रसंग के अनुसार, राम-सीता विवाह के दौरान त्रिदेवों समेत, अन्य देवी-देवता भी उनके विवाह के साक्षी बनें। जब जानकी जी और प्रभु श्री राम का विवाह हो रहा था, तो इस दौरान पुरोहित ने भाई द्वारा निभाई जाने वाली रस्मों के लिए कन्या के भाई को बुलाने कहा।
तब विवाह में मौजूद सभी लोग इस सोच में पड़ गए कि अब इस रस्म को कौन निभाएगा। अपनी पुत्री के विवाह में इस प्रकार बाधा पड़ते देख पृथ्वी माता दुखी हो गई। तभी अचानक से एक सांवले रंग का युवक उठा और उसने विनम्रता से कहा कि वह यह रस्म निभाने की आज्ञा चाहता है।

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चिंता में पड़ गए राजा जनक
एक अनजान व्यक्ति को सीता जी के भाई की भूमिका निभाते हुए देख राजा जनक दुविधा में पड़ गए। तब उन्होंने उस युवक का परिचय जानना चाहा। तब उस युवक न कहा कि वे इस कार्य के लिए पूर्णतः योग्य हैं और इसकी पुष्टि आप (राजा जनक) ऋषि वशिष्ठ और विश्वामित्र से कर सकते हैं।
वह व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि स्वयं मंगलदेव थे। चूंकि मंगल देव पृथ्वी के ही पुत्र थे। वहीं माता सीता को भी पृथ्वी की पुत्री माना जाता है। इस नाते से मंगल देव, सीता जी के भाई हुए।
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(Picture Credit: Freepik) (AI Image)
इस तरह सम्पन्न हुआ विवाह
मंगल देव वेश बदलकर नवग्रहों के साथ भगवान श्रीराम और माता सीता के विवाह का साक्षी बनने आए थे। महर्षि वशिष्ठ और विश्वामित्र ने राजा जनक को मंगल देव का परिचय दिया। इसके बाद ऋषियों की अनुमति से मंगल देव जानकी जी के भाई के रूप में सारी रस्में पूरी की और इस तरह भगवान राम और माता सीता का विवाह संपन्न हुआ।
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