Chaurchan Puja 2023: कब है चौरचन? जानें-शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं महत्व
Chaurchan Puja 2023 मिथिला पंचांग के अनुसार चौरचन 18 सितंबर को है। वहीं देशभर में गणेश चतुर्थी का त्योहार 19 सितंबर को मनाया जाएगा। इस दिन चंद्र देव की विधि विधान से पूजा-उपासना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को चंद्र देव की पूजा करने से साधक को शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क । Chaurchan Puja 2023: हर वर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को चौरचन मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 18 सितंबर को मनाया जा रहा है। मिथिला पंचांग के अनुसार, चौरचन का पर्व 18 सितंबर को है। वहीं, देशभर में गणेश चतुर्थी का त्योहार 19 सितंबर को मनाया जाएगा। इस दिन चंद्र देव की विधि विधान से पूजा-उपासना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को चंद्र देव की पूजा करने से साधक को शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। साथ ही घर में सुख, समृद्धि और खुशहाली आती है। आइए, बिहार के पावन पर्व चौरचन की शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं महत्व जानते हैं-
शुभ मुहूर्त
सनातन पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी 18 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 39 मिनट से शुरू होकर अगले दिन यानी 19 सितंबर को दोपहर 01 बजकर 43 मिनट पर समाप्त होगी। चौरचन पर संध्याकाल में चंद्र देव की पूजा की जाती है। अतः 18 सितंबर को चौरचन मनाया जाएगा।
महत्व
छठ पूजा में सूर्य देव की पूजा जाती है। वहीं, चौरचन में चंद्र देव की पूजा की जाती है। इस पूजा में भी छठ पूजा की तरह संध्याकाल में चंद्र देव को अर्घ्य दिया जाता है। पूरे बिहार में चौरचन का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इस व्रत के पुण्य प्रताप से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है। साथ ही चंद्र दोष भी दूर होता है।
पूजा विधि
इस दिन व्रती ब्रह्म बेला में उठती हैं। इसके पश्चात, भगवान शिव और चंद्र देव को प्रणाम कर दिन की शुरुआत करती हैं। इस समय से निर्जला उपवास रखा जाता है। वहीं, दिन के समय नाना प्रकार के पूरी-पकवान पकाए जाते हैं। इसके पश्चात, पूरी पकवान और फलों को अर्घ्य हेतु पात्र में सजाया जाता है। वहीं, मिट्टी के बर्तन में दही जमाया जाता है। घर को गंगाजल छिड़ककर शुद्ध किया जाता है। साथ ही गाय के गोबर से आंगन को लीपकर रंगोली बनाई जाती है। संध्याकाल में व्रती स्नान-ध्यान करने के बाद चंद्र उदय के समय विधि-विधान से पूजा कर अर्घ्य देती हैं। साथ ही चंद्र देव को भोग लगाया जाता है। पूजा स्थल पर ही घर के पुरुष प्रसाद ग्रहण करते हैं। चंद्र देव का दर्शन करने के बाद व्रत पूर्ण होता है।
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