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    Makar Sankranti 2025: कब और क्यों मनाई जाती है मकर संक्रांति? शनिदेव से जुड़ा है कनेक्शन

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Sun, 12 Jan 2025 08:57 PM (IST)

    वैदिक पंचांग के अनुसार 14 जनवरी को मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2025) है। ज्योतिषियों की मानें तो मकर संक्रांति के दिन दुर्लभ शिववास योग का निर्माण हो रहा है। इस शुभ अवसर पर भगवान शिव कैलाश पर मां पार्वती के साथ विराजमान रहेंगे। शिववास योग में देवों के देव महादेव और मां पार्वती की पूजा करने से सुख और सौभाग्य में वृद्धि होगी।

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    Makar Sankranti 2025: मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में मकर संक्रांति का विशेष महत्व है। यह पर्व हर साल सूर्य देव के मकर राशि में गोचर करने की तिथि पर मनाया जाता है। इस दिन साधक गंगा समेत पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान करते हैं। साथ ही सूर्य देव की पूजा-उपासना करते हैं। इसके बाद दान-पुण्य करते हैं। सनातन शास्त्रों में निहित है कि मकर संक्रांति तिथि पर गंगा स्नान करने से साधक को अक्षय फल की प्राप्ति होती है। साथ ही सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि मकर संक्रांति सूर्य गोचर के अलावा क्यों मनाई जाती है? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-

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    मकर संक्रांति शुभ मुहूर्त (Makar Sankranti 2025)

    मकर संक्रांति पुण्य काल: सुबह 07 बजकर 33 मिनट से शाम 06 बजकर 56 मिनट तक

    मकर संक्रांति महा पुण्य काल: सुबह 07 बजकर 33 मिनट से सुबह 09 बजकर 45 मिनट तक

    मकर संक्रांति का क्षण: सुबह 07 बजकर 33 मिनट तक

    कथा

    सनातन शास्त्रों में निहित है कि शनिदेव के वर्ण यानी रूप को देख सूर्य देव ने उन्हें अपनाने से मना कर दिया। उस समय माता छाया ने सूर्यदेव को कुष्ट रोग से पीड़ित होने का श्राप दिया। यह सुन सूर्य देव क्रोधित हो उठे। इसके बाद सूर्य देव ने शनिदेव और माता छाया के ठहरने वाले स्थान को भस्म (आग से जला दिया) कर दिया। कालांतर में यम देव ने सूर्य देव के क्रोध को शांत किया। साथ ही सूर्य देव को माता छाया के लिए अपने क्रोध को स्नेह में बदलने का अनुरोध किया। तब सूर्य देव ने माता छाया को क्षमा प्रदान की।

    इसके बाद सूर्य देव अपने पुत्र शनिदेव से मिलने पहुंचे। कहते हैं कि सूर्य देव के मकर राशि में गोचर करने की तिथि पर ही दोनों की भेंट (मिलन) हुई थी। आसान शब्दों में कहें तो मकर संक्रांति तिथि पर सूर्य देव अपने पुत्र शनिदेव से मिलने पहुंचे थे। उस समय घर पर कुछ न होने पर शनिदेव ने अपने पिता सूर्य देव को तिल अर्पित किया था। अत: मकर संक्रांति तिथि पर सूर्य देव को तिल अर्पित की जाती है। इस दिन से पिता और पुत्र यानी सूर्य देव और शनिदेव के संबंध मधुर हुए थे।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।