Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck

    कब और कैसे भगवान श्रीराम ने की थी रामेश्वरम शिवलिंग की स्थापना? मुहूर्त से जुड़ा है रोचक प्रसंग

    Updated: Mon, 27 Oct 2025 09:53 AM (IST)

    यात्रा के लिए शूल, नक्षत्र, योगिनी, भद्रा, चंद्र संचार देखा जाता है। इसी प्रकार हर कार्य के अलग-अलग नियम हैं। हर व्यक्ति के लिए अलग मुहूर्त हो सकता है, जो जन्मांग के अनुसार निकलता है। इसमें व्यक्ति की महादशा, अंतर्दशा तथा गोचर देखना होगा। बली ग्रह नक्षत्रों में कार्यारंभ करने पर कम प्रयास में बड़ी सफलता मिल जाती है।

    Hero Image

     रामेश्वरम शिवलिंग का धार्मिक महत्व

    रघोत्तम शुक्ल (सांस्कृतिक अध्येता व ज्योतिर्विद)। रतीय काल गणना की वैज्ञानिकता असंदिग्ध है। इसके सूत्र आदि ग्रंथ वेदों में मिलते हैं। वेद ने कहा है कि काल ‘गति’ पर निर्भर है, अन्यथा मिथ्या है। ‘कालो मिथ्या सतां गति:’। वेदांत ग्रंथ उपनिषदों की सारभूत गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने ‘कालःकलयातमहम्’ कहकर स्वयं को ‘गणना करने वालों का काल’ बताया है। हमारी गणना की व्यापकता सार्वभौम रही। अंग्रेजी का ‘आवर’ शब्द, जो घंटा का द्योतक है, हमारे ‘अहोरात्र’ शब्द से बना है, जिसे संक्षेप में होरा कहते हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    mahadev

    मुहूर्त’ एक कालखंड है। पूरे दिन-रात को अहोरात्र कहते हैं, जो आधुनिक मापदंड में 24 घंटे का होता है। इसमें 30 मुहूर्त होते हैं। ये मुहूर्त हैं रुद्र, आहि, मित्र, पितृ, वसु, वराह, विश्वेदेवा, विधि, सतमुखी, पुरहूत, वाहिनी, नक्तनकरा, वरुण, अर्यमा, भग, गिरीश, अजपाद, अहिर, बुध्न्य, पुष्य, अश्विनी, यम, अग्नि, विधातृ, कंड, अमृत, विष्णु, युमिगद्युति, ब्रह्म और समुद्रम।

    वेद व अन्यान्य धर्मग्रंथों में काल-मापक दिए हैं, जिनके नाम व परिमाण में अल्प भिन्नता है; जैसे वैदिक ग्रंथों में 15 निमेष = एक प्रश्वास; 15 प्रश्वास= एक उच्छ्वास; 15 उच्छ्वास = एक इदानि; 15 इदानि= एक एतर्हि; 15 एतर्हि = एक क्षिप्र; 15 क्षिप्र = एक मुहूर्त, 30 मुहूर्त = 1 अहोरात्र (दिन-रात)। वहीं श्रीमद्भागवत के अनुसार, 3 निमेष = एक क्षण; 5 क्षण = एक काष्ठा; 15 काष्ठा = एक लघु; 15 लघु = एक नाडिका; 2 नाडिका = एक मुहूर्त; 30 मुहूर्त = एक अहोरात्र। इसी प्रकार, वायु पुराण के अनुसार 15 निमेष = एक काष्ठा; 30 काष्ठा = एक कला; 30 कला = एक मुहूर्त; 30 मुहूर्त= एक अहोरात्र।

    इससे यह स्पष्ट है कि एक दिन-रात यानी 24 घंटे में 30 मुहूर्त होते हैं, जिनमें प्रत्येक की माप वर्तमान शब्दावली में 48 मिनट है। इनमें 15 दिन के तथा 15 रात्रि के मुहूर्त मान्य हैं। इनमें कुछ शुभ और कुछ अशुभ होते हैं।

    इसके अतिरिक्त कोई नवीन कार्यारंभ, विवाह या अन्य शुभ कार्य, पर्व, त्योहार, यात्रा आदि के लिए भी उचित समय विचारणीय होता है; इस अर्थ में भी मुहूर्त शब्द प्रयुक्त होता है। महापंडित एवं ज्योतिर्विद रावण श्रीराम के रामेश्वरम शिवलिंग स्थापना का पुरोहित था। वह सीता जी को लेकर पौरोहित्य हेतु वहां आया था, क्योंकि विवाहित राम का धार्मिक अनुष्ठान बिना अर्द्धांगिनी के पूर्ण नहीं हो सकता था।

    हनुमान जी शिवलिंग लाने हेतु कैलास पर्वत भेजे गए। उन्हें लौटने में विलंब हो रहा था और स्थापना का मुहूर्त निकला जा रहा था, अतः रावण ने सीता जी से वहीं बालुका का शिवलिंग प्रतिष्ठित करवा दिया। तब तक हनुमान जी भी शिवलिंग लेकर आ गए, जिसे राम ने स्थापित किया। सही मुहूर्त में लिंग प्रतिष्ठा होने पर श्रीराम का लक्ष्य पूर्ण हुआ। पुरोहित रावण ने उन्हें ‘विजयी भव’ का आशीर्वाद भी दिया और सीता जी को लेकर पुष्पक विमान से लंका वापस चला गया।

    भिन्न भिन्न कार्यों के लिए ज्योतिषी की सलाह से मुहूर्त निकलवाने होते हैं। इसमें अनेक तथ्यों के साथ पंचांग यानी तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण द्रष्टव्य होते हैं। विवाह आदि मे गुरु, सूर्य और शुक्र की स्थिति विशेष रूप से देखी जाती है। सूर्य गुरु के गृह में और गुरु सूर्य के घर में नहीं होना चाहिए। शुक्र बली होना चाहिए।

    यात्रा के लिए शूल, नक्षत्र, योगिनी, भद्रा, चंद्र संचार देखा जाता है। इसी प्रकार हर कार्य के अलग-अलग नियम हैं। हर व्यक्ति के लिए अलग मुहूर्त हो सकता है, जो जन्मांग के अनुसार निकलता है। इसमें व्यक्ति की महादशा, अंतर्दशा तथा गोचर देखना होगा। बली ग्रह नक्षत्रों में कार्यारंभ करने पर कम प्रयास में बड़ी सफलता मिल जाती है।

    वैसे सभी को चाहिए कि दैनिक स्थिति जानने के लिए चंद्रमा की संचरण स्थिति, मासिक स्थिति के लिए सूर्य और बुध का गोचर, मध्यम कालावधि के लिए मंगल, शुक्र की स्थिति और लंबी कालावधि का फल/मुहूर्त जानने हेतु गुरु, शनि व राहु की स्थिति देखनी चाहिए। कर्म, पुरुषार्थ का अपना महत्व सदा रहता है, जिसे ज्योतिष शास्त्र भी मान्यता देता है। भगन्नाम से तमाम अशुभत्व का उन्मूलन हो जाता है।

    यह भी पढ़ें- Dev Uthani Ekadashi 2025: कब और क्यों मनाई जाती है देवउठनी एकादशी? यहां जानें धार्मिक महत्व

    यह भी पढ़ें- एक नवंबर से उठेंगे देव, मांगलिक कार्यों की होगी शुरुआत; दो महीने रहेंगे शुभ मुहुर्त