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    Ramayan Katha: राक्षस कुल की होकर भी त्रिजटा ने की थी सीता जी की मदद, लंका छोड़ यहां बिताया था जीवन

    Updated: Thu, 16 Jan 2025 01:30 PM (IST)

    त्रिजटा (Trijata Story) रामायण की एक पात्र है जिसे एक राक्षस होने के बाद भी उसकी दयालुता और उत्तम स्वभाव के लिए याद किया जाता है। कम ही लोग इस बारे में जानते हैं कि त्रिजटा राम भक्त विभीषण की बेटी थीं। अपने पिता के कुछ गुण होने के कारण ही कि त्रिजटा का स्वभाव अन्य राक्षसों से अगल था।

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    Trijata story कहां होती है त्रिजटा की पूजा।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। भगवान श्रीराम की धर्मपत्नी, सीता जी, रामायण का एक प्रमुख पात्र (Ramayana characters) रही हैं। कथा के अनुसार, रावण द्वारा सीता जी का हरण कर उन्हें अशोक वाटिका में रखा गया था। जहां उनकी सहायता एक राक्षसी ने की थी, जिसका नाम त्रिजटा था। क्या आप जानते हैं कि युद्ध के बाद त्रिजटा का क्या हुआ।

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    इस तरह करती थी सीता जी की मदद

    जब रावण, माता सीता को हरण कर अपनी लंका में लाया, तो उसने सीता जी को अपनी अशोक वाटिका में रखा और सीता (trijata and sita) माता की सेवा और सुरक्षा के लिए त्रिजटा को नियुक्त किया था। राक्षस प्रवृत्ति की होने के बाद भी त्रिजटा ने रावण की कैद में सीता जी का ध्यान रखा और उनकी हर संभव सहायता भी की।

    जब अन्य राक्षसियां माता सीता को परेशान करती थीं, जब एक त्रिजटा ही थी, जो इन सभी से सीता जी का बचाव करती थी। साथ ही वह राम जी के लंका में आगमन से लेकर युद्ध तक की सारी जानकारी माता सीता को देती थी, जिससे सीता जी का ढांढस बंधा रहता था।

    कहां गई त्रिजटा

    रामायण की कथा के अनुसार, त्रेतायुग में भगवान राम द्वारा रावण पर विजय प्राप्ति के बाद उन्होंने सोने की लंका, रावण के छोटे भाई विभीषण को सौंप दी। अन्य भाषाओं में लिखी गई रामायण में इस बात का वर्णन मिलता है कि युद्ध के बाद सीता जी की सहायता के लिए भगवान राम और सीता जी ने त्रिजटा को कई मूल्यवान पुरस्कार दिए थे। इंडोनेशिया में प्रचलित “काकाविन रामायण” में भी इस बात का जिक्र मिलता है। वहीं बालरामायण में इस बात का भी वर्णन मिलता है कि त्रिजटा युद्ध के बाद माता सीता के साथ अयोध्या भी गई थी।

    (Picture Credit: Freepik)

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    यहां होती है पूजा

    कहा जाता है कि सीता जी ने त्रिजटा को आशीर्वाद दिया था कि कलयुग में तुम्हारी भी पूजा एक देवी की तरह होगी। साथ ही सीता जी ने उसे राक्षसी योनि से मुक्ति पाने के लिए शिव जी की आराधना करने की सलाह दी। इसके बाद त्रिजटा काशी में निवास कर शिव की पूजा-अर्चना करने लगी। वाराणसी में त्रिजटा का एक मंदिर स्थापित है, जो काशी विश्वनाथ मंदिर के करीब है और यहां उनकी एक देवी के रूप में पूजा की जाती है।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।

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