krishna Janmashtami 2025: कब है कृष्ण जन्माष्टमी और सिंह संक्रांति? नोट करें व्रत-त्योहार की सही डेट
भाद्रपद महीने का विशेष महत्व है। यह महीना भगवान कृष्ण (krishna Janmashtami 2025) और गणेश जी को समर्पित होता है। इस माह के कृष्ण पक्ष में कृष्ण जन्माष्टमी और शुक्ल पक्ष में राधा अष्टमी और गणेश चतुर्थी मनाई जाती है। कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। भाद्रपद महीने की शुरुआत हो चुकी है। यह महीना बेहद खास होता है। इस महीने में कई प्रमुख व्रत-त्योहार मनाए जाते हैं। इनमें कजरी तीज, अजा एकादशी, कृष्ण जन्माष्टमी, राधा अष्टमी, गणेश चतुर्थी, अनंत चतुर्दशी, हरितालिका तीज, मासिक शिवरात्रि, प्रदोष व्रत आदि प्रमुख हैं। इसके अलावा, परिवर्तिनी एकादशी, त्रयोदशी व्रत, कालाष्टमी समेत कई प्रमुख व्रत-त्योहार मनाए जाते हैं। आइए, इस सप्ताह में पड़ने वाले सभी व्रत और त्योहारों के बारे में जानते हैं-
व्रत-त्योहार सूची (Weekly Vrat Tyohar 11 Aug To 17 August 2025)
- 12 अगस्त को हेरम्ब चतुर्थी है। यह पर्व हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर भगवान गणेश की पूजा की जाती है। साथ ही चतुर्थी तिथि का व्रत रखा जाता है।
- 12 अगस्त को कजरी तीज का पर्व भी मनाया जाएगा। यह पर्व हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा की जाती है। इस दिन विवाहित महिलाएं अखंड सौभाग्य के लिए व्रत रखती हैं।
- 14 अगस्त को बलराम जयंती है। यह पर्व भाद्रपद महीने में मनाया जाता है। इस दिन दाऊ भैया यानी बलराम जी का प्राकट्य दिवस मनाया जाता है।
- 16 अगस्त को जन्माष्टमी है। यह पर्व हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर जगत के पालनहार भगवान कृष्ण की भक्ति भाव से पूजा की जाती है। साथ ही अष्टमी का व्रत रखा जाता है।
- 17 अगस्त को दही हांडी है। यह पर्व हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। वैष्णव जन 16 अगस्त को भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव मनाएंगे। यह पर्व महाराष्ट्र और गुजरात समेत देश के कई राज्यों में मनाया जाता है।
- 17 अगस्त को सिंह संक्रांति है। इस दिन सूर्य देव कर्क राशि से निकलकर सिंह राशि में गोचर करेंगे। संक्रांति तिथि पर गंगा स्नान किया जाता है। साथ ही सूर्य देव की पूजा की जाती है। इसके बाद दान-पुण्य किया जाता है।
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