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    Krishna Janmashtami 2025: भगवान कृष्ण की पूजा के समय करें इन मंत्रों का जप, पूरी होगी मनचाही मुराद

    Updated: Sun, 10 Aug 2025 01:48 PM (IST)

    धार्मिक मत है कि भगवान कृष्ण (Krishna Janmashtami 2025) की पूजा एवं भक्ति करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही घर में सुख शांति और समृद्धि बनी रहती है। कृष्ण जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर कई मंगलकारी योग बन रहे हैं। इन योग में भगवान कृष्ण की पूजा एवं भक्ति की जाएगी।

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    Krishna Janmashtami 2025: कृष्ण जन्माष्टमी का धार्मिक महत्व

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, शुक्रवार 15 अगस्त को जगत के पालनहार भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाएगा। यह पर्व हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर जग के नाथ कृष्ण कन्हैया की भक्ति भाव से पूजा की जाएगी। साधक माखन चोर कृष्ण कन्हैया की कृपा पाने के लिए व्रत भी रखते हैं।

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    सनातन शास्त्रों में निहित है कि जगत के पालनहार भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था। इसके लिए हर साल भाद्रपद माह में कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। अगर आप भी जगत के नाथ भगवान कृष्ण की कृपा-दृष्टि पाना चाहते हैं, तो कृष्ण जन्माष्टमी के दिन भक्ति भाव से बांके बिहारी की पूजा करें। वहीं, पूजा के समय इन मंत्रों का जप करें।

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    भगवान कृष्ण के मंत्र

    1. अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव।

    अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।।

    2. कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ।

    प्रणत क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः।

    3. तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।

    धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया ।।

    लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।

    तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया ।।

    4. श्री विष्णु स्तोत्र

    किं नु नाम सहस्त्राणि जपते च पुन: पुन: ।

    यानि नामानि दिव्यानि तानि चाचक्ष्व केशव: ।।

    मत्स्यं कूर्मं वराहं च वामनं च जनार्दनम् ।

    गोविन्दं पुण्डरीकाक्षं माधवं मधुसूदनम् ।।

    पदनाभं सहस्त्राक्षं वनमालिं हलायुधम् ।

    गोवर्धनं ऋषीकेशं वैकुण्ठं पुरुषोत्तमम् ।।

    विश्वरूपं वासुदेवं रामं नारायणं हरिम् ।

    दामोदरं श्रीधरं च वेदांग गरुड़ध्वजम् ।।

    अनन्तं कृष्णगोपालं जपतो नास्ति पातकम् ।

    गवां कोटिप्रदानस्य अश्वमेधशतस्य च ।।

    कन्यादानसहस्त्राणां फलं प्राप्नोति मानव:

    अमायां वा पौर्णमास्यामेकाद्श्यां तथैव च ।।

    संध्याकाले स्मरेन्नित्यं प्रात:काले तथैव च ।

    मध्याहने च जपन्नित्यं सर्वपापै: प्रमुच्यते ।।

    5. वृंदा, वृन्दावनी,विश्वपुजिता,विश्वपावनी |

    पुष्पसारा,नंदिनी च तुलसी,कृष्णजीवनी ।।

    एत नाम अष्टकं चैव स्त्रोत्र नामार्थ संयुतम |

    य:पठेत तां सम्पूज्य सोभवमेघ फलं लभेत।।

    6. महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी ।

    आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते ।

    देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः !

    नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।

    7.

    कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा ।

    बुद्ध्यात्मना वा प्रकृतिस्वभावात् ।

    करोमि यद्यत्सकलं परस्मै ।

    नारायणयेति समर्पयामि ॥

    कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा

    बुद्ध्यात्मना वानुसृतस्वभावात् ।

    करोति यद्यत्सकलं परस्मै

    नारायणयेति समर्पयेत्तत् ॥

    8. ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय॥

    9. ॐ अंगिरो जाताय विद्महे वाचस्पतये धीमहि तन्नो गुरु प्रचोदयात्।।

    10. शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं

    विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभांगम

    लक्ष्मीकांतं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं।

    वंदे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।