Vrat Niyam: आत्म संयम सिखाते हैं व्रत और उपवास, जानिए इसके बीच का अंतर
Vrat Importance हिंदू धर्म में व्रत और उपवास का विशेष महत्व है। इसके द्वारा व्यक्ति ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है। कई लोग इन्हें एक ही समझने की भूल कर बैठते हैं लेकिन इन दोनों में अंतर होता है। क्या आपको पता हैं व्रत और उपवास के बीच का अंतर अगर नहीं तो चलिए जानते हैं कि इस दोनों के बीच क्या फर्क है।

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Vrat Udyapan vidhi: हिंदू धर्म में प्रत्येक दिन या तिथि किसी देवी-देवता को समर्पित होती है और उसी के आधार पर व्रत और उपवास आदि किए जाते हैं। इस दौरान कई तरह की के नियमों का भी पालन किया जाता है। यह न केवल धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व रखते हैं बल्कि इसके कई शारीरिक लाभ भी मौजूद हैं।
व्रत का अर्थ और महत्व (Vrat Importance)
व्रत का अर्थ होता है किसी चीज का संकल्प लेकर व्रत का पालन करना। असल में व्रत का अर्थ है प्रण या प्रतिज्ञा। व्रत में भोजन किया जा सकता है। आप व्रत के दौरान किसी भी एक समय भोजन ग्रहण कर सकते हैं। एकादशी, पूर्णिमा, सोमवार, मंगलवार या किसी भी अन्य दिन पर उस देवी-देवता को समर्पित व्रत किया जाता है। व्रत हमारे आत्मिक बल और स्व-नियंत्रण को बढ़ाते में मदद करते हैं। व्रत करने से व्यक्ति को कई तरह के शारीरिक लाभ भी मिलते हैं।
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जानिए उपवास का सही अर्थ (Upvas Ka Mahatva)
उपवास दो शब्दों से मिलकर बना है, पहला उप और दूसरा वास। यहां उप का अर्थ है समीप और वास का अर्थ है बैठना या रहना। ऐसे में उपवास का अर्थ हुआ भगवान में ध्यान लगाकर बैठना, उनका नाम जपना या उनकी स्तुति करना। अर्थात इस प्रक्रिया में साधक, ईश्वर के समीप पहुंचने की कोशिश करता है उसे उपवास कहते हैं। उपवास में आहार ग्रहण नहीं किया जाता। इस दौरान अपना पूरा ध्यान ईश्वर की भक्ति में ही लगाना होता है। उपवास द्वारा इंद्रियों को वश में रखने की शक्ति मिलती है।
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