Vivah panchami 2024: क्यों इतना विशेष था सीता स्वयंवर का धनुष? जिसे उठा पाना नहीं था आसान
विवाह पंचमी का पर्व बहुत ही शुभ माना जाता है। यह पर्व हर साल मार्गशीर्ष महीने में शुक्ल पक्ष के पांचवें दिन मनाया जाता है। यह तिथि पूरी तरह से प्रभु श्रीराम और देवी जानकी को समर्पित है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल विवाह पंचमी (Vivah panchami 2024) 06 दिसंबर 2024 को मनाई जाएगी तो चलिए इस दिन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातों को जानते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में सभी तिथि और त्योहार का अपना-अपना महत्व है। उन्हीं में से एक विवाह पंचमी भी है, जो भगवान राम और देवी सीता के विवाह का प्रतीक है। इसे हर साल उनकी शादी की सालगिरह के तौर पर मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, विवाह पंचमी (Vivah panchami 2024) 06 दिसंबर 2024 को मनाई जाएगी। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पूजा-पाठ करने से और व्रत रखने से भगवान राम के साथ सीता मैया की कृपा प्राप्त होती है।
वहीं, जब इस शुभ अवसर को कुछ ही घंटे बाकी रह गए हैं, तो आइए सीता स्वयंवर के उस धनुष (Sita Svayamvara Story) के बारे में जानते हैं, जिसे हिला पाना भी मुश्किल था।
ऐसे हुआ था मां जानकी संग राम जी का विवाह
पौराणिक कथाओं और ग्रंथों के अनुसार, ऋषि विश्वामित्र के साथ भगवान राम और लक्ष्मण जी मिथिला नगरी जनकपुर पहुंचे थे। यह वही शुभ समय था जब राजा जनक ने अपनी पुत्री देवी सीता के लिए स्वयंवर का आयोजन किया था। इस दिव्य उत्सव (Vivah Panchami Utsav) में कई बड़े-बड़े और शक्तिशाली राजा शामिल हुए थे। वहीं, राजा जनक ने इस स्वयंवर में शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने की शर्त रखी थी, जिसे पूरा करने में हर कोई नाकाम रहा था, लेकिन अपने गुरु विश्वामित्र की आज्ञा का पालन करते हुए प्रभु श्रीराम ने शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा दी थी और जनक नंदिनी संग विवाह रचाया था।
माना जाता है कि प्रत्यंचा चढ़ाने के दौरान भगवान शंकर का धनुष टूट गया था, जिसका एक हिस्सा आकाश, दूसरा पाताल और तीसरा टुकड़ा धरती पर गिरा था। जो टुकड़ा धरती पर गिरा था उस स्थान को लोग आज धनुषा धाम (नेपाल) के नाम से जानते हैं।
क्यों खास था सीता स्वयंवर का धनुष?
इस शक्तिशाली धनुष को भगवान शिव ने स्वयं अपने हाथों से बनाया था, उसका नाम पिनाक था। यह इतना दिव्य और चमत्कारी था कि जब कभी भोलेनाथ इस धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाते थे, तब उसकी एक ही टंकार से बादल फटने लगते थे। पूरी धरती हिल जाती थी। यह भी कहते हैं कि इस धनुष के एक ही तीर से भगवान शिव ने त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया था।
प्रचलित हिंदू कथाओं के अनुसार, इस धनुष को इंद्रदेव को सौंप दिया गया था और बाद में इंद्र ने इसे राजा जनक के पूर्वज देवराज को प्रदान कर दिया था।
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