पंढरपुर में भक्त के आदेश पर भगवान ने किया था इंतजार, जानिए श्रीकृष्ण के इस मंदिर का इतिहास
महाराष्ट्र में पंढरपुर का विट्ठल रुक्मिणी मंदिर भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। वहां भगवान विट्ठल कमर पर हाथ रखे ईंट पर खड़े हैं अपने भक्त पुंडलिक की प्रतीक्षा कर रहे हैं। 12वीं शताब्दी में बने इस मंदिर में हर साल लाखों भक्त 250 किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। महाराष्ट्र में स्थित विट्ठल रुक्मिणी मंदिर भगवान श्री कृष्ण के ही एक रूप को समर्पित है। मंदिर के गर्भ गृह में भगवान विट्ठल एक ईंट पर अपने दोनों हाथ कमर पर रखकर खड़े हैं। इस मुद्रा में वह अपने भक्ति पुंडलिक की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
इस मंदिर के इतिहास की अगर बात करें, तो कहा जाता है कि मंदिर की स्थापना 11वीं शताब्दी में हुई थी। हालांकि, मुख्य मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में देवगिरी की यादव शासकों ने करवाया था। महाराष्ट्र में भगवान श्री कृष्ण को विट्ठल नाम से भी पुकारा जाता है। इसीलिए इस मंदिर को विट्ठल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
पंढरपुर में इस मंदिर के स्थित होने की वजह से यहां भगवान को पंढरीनाथ के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर में भगवान विट्ठल के साथ माता रुक्मणी की मूर्ति है।
कहां बना है यह मंदिर
महाराष्ट्र के शोलापुर शहर में भीमा नदी के किनारे बसे पंढरपुर में विट्ठल का मंदिर बना हुआ है। पिछले 800 सालों से लगातार यहां पर हर साल पंढरपुर की यात्रा चल रही है। इस यात्रा में लाखों की संख्या में भक्ति शामिल होते हैं और करीब ढाई सौ किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हैं।
इस मंदिर के पास में चंद्रभागा नाम की पवित्र नदी है। कहते हैं इस नदी में स्नान करने से भक्तों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
भक्त के इंतजार में क्यों खड़े हुए भगवान
यह मंदिर इस बात का भी गवाह है कि भक्त ही भगवान का इंतजार नहीं करते हैं। यदि भक्ति में शक्ति हो, तो भगवान भी भक्त की न सिर्फ आज्ञा मानते हैं, बल्कि उसकी प्रतीक्षा में खड़े भी रहते हैं। यह कहानी 6वीं शताब्दी की है। जब मात-पितृ भक्त पुंडलिक अपने आराध्य श्रीकृष्ण की पूजा करते थे।
उस समय पुंडलिक की भक्ति से प्रसन्न होकर एक बार श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी के साथ पुंडलिक को दर्शन दिए। उन्होंने पुंडलिक से कहा कि हम तुम्हारा आतिथ्य स्वीकार करने लाए हैं। मगर, उस वक्त पुंडलिक के पिता सो रहे थे और वह अपने पिता के पैर दबा रहे थे।
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इस तरह से तीर्थ बन गई यह जगह
पुंडलिक ने भगवान से कहा कि वह ईंट पर खड़े होकर उनका इंतजार करें। यह कहकर वह फिर से पिता के पैर दबाने लगे। भगवान काफी समय तक कमर में दोनों हाथ रखे ईंट पर खड़े रहे। जब पिता जागे, तब पुंडलिक कमरे से बाहर आए। मगर, तब तक वहां ईंट पर पत्थर की मूर्ति बन चुकी थी।
पुंडलिक ने विट्ठल रूप का अपने घर में पूजन शुरू कर दिया। कालांतर में यह जगह पंढरपुर के नाम से प्रसिद्ध हो गई और महाराष्ट्र का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल बन गई। बाद में यहां पंढरपुर वारी यानी पैदलयात्रा की शुरुआत हो गई।
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